सनातन धर्म की परंपराओं में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। यह पितृपक्ष हमारे उन पूर्वजों को स्मरण करने और उन्हें तृप्त करने का समय है, जिनके त्याग, तपस्या और संस्कारों से हमें यह जीवन प्राप्त हुआ है। वे भले ही इस नश्वर शरीर को त्यागकर सूक्ष्म लोक में चले गए हों, परंतु उनकी स्मृति, उनके संस्कार और उनका ऋण हमारे साथ जीवनभर चलता है। श्राद्ध पक्ष, जिसे पितृपक्ष या महालय भी कहा जाता है, उसी ऋण को श्रद्धा और समर्पण से चुकाने का दिव्य अवसर है।
पितरों का श्राद्ध करने की शुरुआत वैदिक काल से हुई है। सनातन धर्म के कई ग्रंथों में श्राद्ध का उल्लेख किया गया है जिनमें ब्रह्म, विष्णु, वायु, वराह और मत्स्य पुराण प्रमुख हैं। ब्रह्म पुराण में श्राद्ध का उल्लेख करते हुए कहा गया है, “जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है।”
Shradh 2025 dates: साल 2025 में पितृपक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है, जिसका समापन 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या के साथ होगा। इस अवधि के दौरान सभी सनातन धर्मावलम्बी तिथि के अनुसार अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। जिन्हें अपने पितरों के देवलोकगमन तिथि की जानकारी नहीं है वो सर्व पितृ अमावस्या के पुण्यदायी अवसर पर अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं।
शास्त्रों एवं ग्रंथों में वसु, रुद्र और आदित्य को श्राद्ध का देवता बताया गया है। इस पक्ष में हर व्यक्ति के तीन पूर्वजों पिता, दादा और परदादा को क्रम से वसु, रुद्र और आदित्य माना जाता है। जब पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है तब वे ही सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। श्राद्ध कर्म के दौरान जो भी मंत्र उच्चारित किए जाते है या आहुतियां दी जाती हैं वह ये सभी अन्य पितरों तक ले जाते हैं।
माना जाता है कि पिता, दादा और परदादा श्राद्ध कराने वाले व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके रीति-रिवाजों के अनुसार कराये गये श्राद्ध-कर्म से तृप्त होकर परिवार को सुख-समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं।
जिस मृत व्यक्ति को इस भवसागर से मुक्त हुए एक साल से अधिक समय हो जाता है उसे ‘पितर’ कहा जाता है। श्राद्ध पितरों तक आहार पहुंचाने का एक साधन है। मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान आहार पाकर पितर विभिन्न माध्यमों से हमारे निकट आते हैं और तृप्त होते हैं।
पितरों के बारे में ऋग्वेद के 10वें मण्डल के 15वें सूक्त के द्वितीय श्लोक में स्पष्ट रूप से उल्लेख है-
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः ।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥
अर्थात् सर्वप्रथम और अंतिम दिवंगत पितृ तथा अंतरिक्षवासी पितृ श्रद्धेय हैं। यह श्लोक उन सभी पितरों के लिए सम्मान व्यक्त करता है, जो पहले से मौजूद थे, जो अब निवास कर रहे हैं, और जो भविष्य में आएंगे।
Pitra rin ka mahatv: शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य तीन प्रकार के ऋणों के साथ जन्म लेता है; देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। देवताओं की उपासना और यज्ञादि से देवऋण मुक्त होता है, वेद-शास्त्रों का अध्ययन और गुरुजनों का सम्मान करके ऋषिऋण से मुक्ति मिलती है, किंतु पितृऋण से मुक्ति केवल श्राद्ध और तर्पण से ही संभव है।
“पितृदेवो भव” वेदों में स्पष्ट कहा गया है कि पितरों को देवता समान मानकर उनकी सेवा और स्मरण करना चाहिए। पितृकृपा से ही वंश की वृद्धि, संतान-सुख, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
जब हम पितरों के नाम से तर्पण और दान करते हैं, तब हमारे द्वारा की गई अर्पण की सामग्री देवताओं और पितरों तक दिव्य माध्यमों से पहुँचती है। श्राद्ध कर्मकांड के साथ ही आत्मा से आत्मा का सीधा संवाद है। गरुड़ पुराण में कहा गया है, “पुत्र या वंशज द्वारा श्रद्धा से किया गया श्राद्ध पितरों को तीनों लोकों में सुख प्रदान करता है और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।”
श्राद्ध का अर्थ ही है, “श्रद्धा से किया गया कर्म।” बिना श्रद्धा के किए गए अनुष्ठान केवल औपचारिकता बनकर रह जाते हैं। इसलिए यह पक्ष साधकों के लिए आंतरिक शुद्धि, कृतज्ञता और आत्मिक उन्नति का साधन है।
Avadhi, parampara aur daan ka mahatv: भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या (सर्व पितृ अमावस्या) तक 16 दिन पितृपक्ष के रूप में मनाए जाते हैं। प्रत्येक दिन किसी न किसी तिथि पर देह त्याग करने वाले पितरों का स्मरण किया जाता है। उनके निमित्त पूजा की जाती है। इन दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराना, अन्न, वस्त्र, तिल, जल और दक्षिणा अर्पित करना शुभ माना जाता है।
साथ ही इस दिन कौओं को खाना खिलाना भी बेहद जरूरी है। इसलिए साधक पितरों के मनपसंद भोजन को थाली में खाना रखकर कौओं का आवाहन करें। साथ ही गाय, बिल्ली और कुत्तों को भी भोजन दें।
श्राद्ध में जल, तिल और कुशा का विशेष महत्व है। तर्पण के समय जल में तिल और कुशा डालकर सूर्य की ओर मुख करके पितरों के नाम से आह्वान किया जाता है। यह तिलांजलि आत्माओं तक पवित्र जल के रूप में पहुँचकर उन्हें संतोष देती है। श्राद्ध के दिन शुद्ध आचरण, सात्त्विक भोजन, सत्य वाणी और संयम का पालन करना आवश्यक है।
पशु हिंसा, नशा, झूठ और अपवित्र कार्यों से दूर रहकर ही पितरों को संतुष्ट किया जा सकता है। पूजा में तिल, उड़द, चावल, जौ, जल, काश (कुशा) के फूल और फल का होना बेहद जरूरी है।
इस वर्ष का पितृ पक्ष खगोलीय दृष्टि से अत्यंत विशेष रहने वाला है। लगभग सौ वर्षों बाद ऐसा अद्भुत संयोग बना है, जब पितृ पक्ष का शुभारंभ और समापन दोनों ही ग्रहण के साये में होंगे।
पितृ पक्ष का आरंभ 7 सितंबर की रात्रि को लगने वाले चंद्र ग्रहण से होगा। भारतीय समयानुसार यह ग्रहण रात्रि 9 बजकर 58 मिनट से प्रारंभ होकर 1 बजकर 26 मिनट तक चलेगा। इस दौरान चंद्रमा लाल आभा लिए दिखाई देगा, जिसे खगोलशास्त्र में ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। भारत में यह ग्रहण प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकेगा।
साथ ही पितृ पक्ष का समापन सूर्य ग्रहण के साथ होगा। इस बार का सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को पड़ने जा रहा है, यह ग्रहण रात 10 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर भोर 3 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। चूंकि यह रात में लगेगा, इसलिए भारत में दिखाई नहीं देगा। किंतु धार्मिक दृष्टि से इसका प्रभाव रहेगा। शास्त्रों में उल्लेख है कि ग्रहण के समय में उपवास और भगवान का भजन विशेष फलदायी होते हैं।
धर्मशास्त्रों के अनुसार ग्रहण की समाप्ति के बाद ही स्नान करके तर्पण और दान करना चाहिए। पितृ पक्ष में पितरों की शांति और मोक्ष के लिए किए गए कर्म, ग्रहण काल के उपरांत कई गुना फलदायी माने गए हैं। विद्वानों का कहना है कि इस दुर्लभ संयोग में श्रद्धा से किया गया तर्पण एवं दान पीढ़ियों का कल्याण करता है।
श्राद्ध पितरों को तृप्त करने के साथ ही साधक की आत्मशुद्धि का भी अवसर है। जब हम अर्पण करते हैं, तो अहंकार गलता है, जब हम दान देते हैं तो लोभ क्षीण होता है, जब हम संयम रखते हैं तो मन निर्मल होता है। इस प्रकार पितृपक्ष हमें आत्मिक उन्नति की दिशा में ले जाता है। जो साधक श्राद्ध पक्ष का सम्मान करता है, वह न केवल पितरों की कृपा का पात्र बनता है, बल्कि स्वयं भी परमपद की ओर अग्रसर होता है।
प्रश्न: श्राद्ध क्या है?
उत्तर: यह पूर्वजों की आत्माओं की शांति और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए किया जाने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान है।
प्रश्न: 2025 में श्राद्ध पक्ष कब है ?
उत्तर:यह 7 सितंबर 2025 से शुरू होकर 21 सितंबर तक मनाया जाएगा।
प्रश्न: इसमें किन लोगों को दान देना चाहिए ?
उत्तर:इसमें ब्राह्मणों तथा दीन-दु:खी, निर्धन लोगों को दान देना चाहिए।
प्रश्न: इस शुभ अवसर पर किन चीजों का दान करना चाहिए ?
उत्तर: इस शुभ अवसर पर अन्न, भोजन, गाय, तिल, सोना, फल आदि दान में देना चाहिए।
प्रश्न: श्राद्ध पक्ष 2025 में चंद्र ग्रहण कब है?
उत्तर: श्राद्ध पक्ष 2025 में चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को लगेगा।
प्रश्न: इस श्राद्ध पक्ष 2025 में सूर्य ग्रहण कब है?
उत्तर: इस श्राद्ध पक्ष 2025 में सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को पड़ेगा।