सफला एकादशी
सनातन धर्म में एकादशी तिथियों का जो दिव्य महत्व है, वह वाणी से वर्णन करना कठिन है। इन्हीं में से सफला एकादशी, पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। यह एकादशी व्रत करने वाले साधक के समस्त पापों का नाश करती है और उसके जीवन को सफल और मंगलमय बनाती है। इस दिन का व्रत, उपवास और दान करने से समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं और भगवान श्रीहरि की कृपा से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
सफला एकादशी का पौराणिक महत्व
पद्म पुराण के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से सौ अश्वमेध यज्ञों और हजार राजसूय यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसके पाप क्षीण होकर आत्मा पवित्र होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत के बारे में बताया कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत, उपवास, दान और भक्ति करता है, उसके सभी पाप स्वयं भगवान विष्णु नष्ट करते हैं और उसे परम धाम की प्राप्ति होती है।
दान, सेवा और परोपकार का महत्व
सफला एकादशी केवल उपवास, जप और पूजा का ही नहीं, बल्कि परोपकार और सेवा का भी प्रतीक है। इस दिन दीन-हीन, भूखे, असहाय, दिव्यांग और वृद्धजनों को भोजन और अन्न दान करने से सौ गुना पुण्य प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—
‘यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्॥‘
अर्थात, यज्ञ, दान और तप—ये तीनों कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं, बल्कि इन्हें करना चाहिए क्योंकि ये साधक को पवित्र करते हैं।
सफला एकादशी पर दान और सेवा का पुण्य
इस पुण्य तिथि पर नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग, अनाथ और जरूरतमंद बच्चों के लिए आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें और सफला एकादशी का अद्भुत पुण्य प्राप्त करें। आपकी सेवा से इन दिव्य आत्माओं के जीवन में आशा, प्रेम और सम्मान का दीपक प्रज्वलित होगा और आपके पुण्य में अनंत वृद्धि होगी।