सर्व पितृ अमावस्या, जिसे महालया अमावस्या भी कहते हैं, पितृ पक्ष की अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध और दान किया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन को पितरों को विदाई देने और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का द्वार खोलने वाला दिन कहा गया है।
शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन विधिपूर्वक किया गया श्राद्ध और दान पितरों की आत्मा को तृप्त करता है और अनजाने में रह गए पितृ ऋण से मुक्ति दिलाता है। यह दिन उन आत्माओं के लिए भी विशेष माना जाता है, जिनका विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं हो पाया है।
सर्व पितृ अमावस्या का महत्व
सर्व पितृ अमावस्या संयम, श्रद्धा और सेवा का प्रतीक है। इस दिन गंगा स्नान, पितृ तर्पण, पिंडदान, मौन साधना, ब्राह्मण भोजन और असहायों की सेवा करना अत्यंत पुण्यकारी होता है। इस दिन किया गया सात्त्विक दान घर-परिवार में सुख-शांति, रोग-निवारण और पितृ कृपा का साधक बनता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन पितृ तर्पण करने से पितरों के साथ-साथ समस्त कुल के दोष भी शांत होते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता में दान का महत्व
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।
अर्थात, जो दान उचित समय, योग्य पात्र को और बिना स्वार्थ के दिया जाए, वही सात्त्विक दान कहलाता है।
दिव्यांग और असहायों को कराएं भोजन
सर्व पितृ अमावस्या के इस पावन अवसर पर दिव्यांग, असहाय और दीन-दुखियों को भोजन कराना पितरों की आत्मा की शांति, मोक्ष और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का सुलभ और श्रेष्ठ साधन है। नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग, अनाथ और बेसहारा बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहयोग कर पितृ ऋण से मुक्ति का पुण्य प्राप्त करें और अपने जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और पितृ कृपा का संचार करें।
सर्व पितृ अमावस्या पर दीन-हीन, असहाय, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने में सहयोग करें