साल 2001 का वह दौर, जब दिव्यांगों के लिए नौकरी का सपना किसी दूर की कौड़ी जैसा था। समाज की ऊंची-नीची दीवारें और रोजगार की राह में कांटे उनकी राह रोकते थे। तभी नारायण सेवा संस्थान ने एक साहसी पहल शुरू की और स्थापित किया कौशल प्रशिक्षण केंद्र। यह कहानी है उस जज्बे की, जो आज अनगिनत जिंदगियों में रोशनी की नई उम्मीद बनकर सामने आया है।
दिव्यांगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है परिवार पर निर्भरता और पैसों की तंगी। अगर परिवार का सहारा हो तो ठीक, वरना रोजमर्रा की जिंदगी—खाना, चलना और अपनी देखभाल करना एक चुनौती बन जाती है। नारायण सेवा संस्थान ने इस तकलीफ को गहराई से महसूस किया। जिसके फलस्वरूप नि:शुल्क कौशल प्रशिक्षण प्रोग्राम की शुरुआत हुई, जहां हर दिव्यांग के हाथ को कौशल और हर दिल को हौसला मिला।
कौशल की ताकत से आत्मनिर्भरता की राह
यह कोई आम ट्रेनिंग नहीं थी, बल्कि एक चमत्कारी चाबी थी, जो दिव्यांगों को नौकरी की दुनिया में कदम रखने के लिए तैयार कर रही थी। सिलाई की बारीकियां हों, मोबाइल रिपेयर का हुनर हो या कंप्यूटर की दुनिया—हर कोर्स में उन्हें सिखाया गया कि वे किसी से कम नहीं। यह पहल सिर्फ रोजगार का रास्ता नहीं बनी, बल्कि दिव्यांगों के चेहरों पर आत्मसम्मान की मुस्कान और परिवारों में आर्थिक स्थिरता की किरण भी लेकर आई। यह व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आज दिव्यांगों की जिंदगी का वह मजबूत स्तम्भ बन गया है, जो उन्हें बेरोजगारी के अंधेरे से निकालकर रोजगार की सुनहरी राह पर ले गया है। यह बदलाव एक इंसान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे समाज को नई ताकत और तरक्की देता है।
दिव्यांगों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण क्यों जरूरी है?
भारत में दिव्यांगों की राह आसान नहीं है। शिक्षा का अभाव, नौकरी के मौके न मिलना, गरीबी की मार, पहुंच की कमी, भेदभाव का दंश, स्वास्थ्य सेवाओं से दूरी, समाज में सही पहचान न मिलना और कमजोर शैक्षिक ढांचा—हर कदम पर मुश्किलें हैं। शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य सेवाएं, परिवहन और सरकारी सुविधाओं तक दिव्यांगजनों की पहुंच सीमित है। समाज में पहुंच का अभाव उन्हें निजी और पेशेवर तरक्की से रोकता है, जिससे अपनी पहचान बनाना एक सपना बनकर रह जाता है। ऊपर से गलत धारणाएं कंपनियों को उन्हें नौकरी देने से हतोत्साहित करती हैं, जिससे मौके और कम हो जाते हैं। बुनियादी ढांचे की कमी, अवसरों का अभाव और सरकारी योजनाओं, संसाधनों व ट्रेनिंग प्रोग्राम्स की जानकारी न होना उन्हें आर्थिक रूप से खुद के पैरों पर खड़ा होने से रोकता है। ऐसा देखा जाता है कि कई विद्यालय और कार्यस्थल भी जरूरी संसाधन मुहैया कराने में असफल रहते हैं।
लेकिन नारायण सेवा संस्थान ने इन जंजीरों को तोड़ने का संकल्प लिया है। संस्थान का कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम दिव्यांगजनों को व्यावहारिक कौशल से लैस करता है, और आर्थिक आजादी की राह दिखाता है। उनकी कमियों पर नहीं, बल्कि उनकी ताकत पर जोर देकर यह प्रोग्राम उन्हें समाज का सशक्त हिस्सा बनाता है। संस्थान ने दिव्यांग भाई-बहनों की जरूरतों को समझते हुए खास ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किए हैं।
नारायण सेवा संस्थान: आशा की किरण
व्यावसायिक प्रशिक्षण पहल में नारायण सेवा संस्थान की भूमिका
सिलाई, मोबाइल रिपेयर और कंप्यूटर क्लासेस जैसे मुफ्त कोर्सेज दिव्यांगों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। संस्थान के द्वारा यह सभी कौशल प्रशिक्षण दिव्यांगजनों को प्रदान किए जा रहे हैं।
- सिलाई प्रशिक्षण: 90 दिनों का यह कोर्स दिव्यांगजनों को सिलाई का जादू सिखाता है—कपड़े काटना, नापना, डिजाइन करना, सिलाई मशीन चलाना, टी-शर्ट बनाना, कढ़ाई मशीन का इस्तेमाल और फैशन की बारीकियां। इससे वे अपना छोटा बिजनेस शुरू कर सकते हैं या टेक्सटाइल इंडस्ट्री में जगह बना सकते हैं। यह स्थिर आय का एक सशक्त जरिया है।
- मोबाइल रिपेयरिंग: 60 दिनों का कोर्स, जिसमें स्क्रीन ठीक करना, मदरबोर्ड रिपेयर, मोबाइल की खामियों को समझना और सॉफ्टवेयर अपडेट करना सिखाया जाता है। यह कौशल उन्हें मोबाईल या स्मार्टफोन हार्डवेयर सेक्टर में नौकरी दिला सकता है या अपनी रिपेयर शॉप खोलने का मौका देता है।
- कंप्यूटर ट्रेनिंग: बेसिक सॉफ्टवेयर से लेकर एडवांस्ड स्किल्स तक—डेटा एंट्री, हार्डवेयर, और बेसिक कंप्यूटर सिक्योरिटी। इससे IT इंडस्ट्री, ऑफिस, और कॉल सेंटर में नौकरी के रास्ते खुलते हैं।
नारायण सेवा संस्थान में निर्धन और दिव्यांग लोग नि:शुल्क ये कौशल सीखते हैं। अब तक 3,277 लोगों की जिंदगी इस पहल से संवर चुकी है। नि:शुल्क होने की वजह से पैसों की कमी उनके सपनों के आड़े नहीं आती।
जिंदगी बदलने वाली कहानियां
हरी ओम की प्रेरणा: आगरा के हरी ओम पोलियो से ग्रसित थे, लेकिन उनके हौसले तब भी बुलंद थे। उनके पिता उन्हें संस्थान लाए, जहां उनका नि:शुल्क उपचार किया गया, जिससे उन्हें सकलांग जिंदगी मिली। इसके बाद उन्होंने संस्थान में ही 45 दिन की नि:शुल्क सिलाई ट्रेनिंग ली। जिसने उनकी तकदीर बदल दी। संस्थान ने उन्हें सिलाई मशीन दी, जिसके बाद उन्होंने अपनी दुकान खोली। आज वे आत्मनिर्भर हैं और परिवार का सहारा बने हैं। यह कौशल की ताकत का जीता-जागता उदाहरण है।
श्रीपाल मिश्रा का संघर्ष: उत्तर प्रदेश के श्रीपाल मिश्रा का दो साल की उम्र में पोलियो से एक पैर कमजोर हॉप गया था। बुखार के बाद हाथों पर निर्भर यह शख्स तानों और गरीबी से जूझता रहा। स्कूल न जा सके, कुछ कर न पाए, लेकिन संस्थान में नि:शुल्क उपचार और कंप्यूटर ट्रेनिंग ने उन्हें नई जिंदगी दी। आज वे संस्थान के सिलाई विभाग में काम करते हैं और आत्मविश्वास से लबरेज हैं।
साथ आएं, बदलाव का हिस्सा बनें
नारायण सेवा संस्थान एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो चार दशकों से कमजोर तबकों के लिए काम कर रहा है। आप भी इस नेक मिशन में योगदान दे सकते हैं:
- आर्थिक मदद: हमारी वेबसाइट https://www.narayanseva.org/ पर जाकर दान करें। दिव्यांगों के उपचार और कौशल प्रशिक्षण के लिए आपका सहयोग अनमोल है।
- स्वयंसेवी बनें: नारायण सेवा संस्थान शिक्षण से लेकर कार्यक्रम आयोजन और सामुदायिक सेवा तक विभिन्न गतिविधियों में सहायता करने के लिए स्वयंसेवकों का स्वागत करती है। यह स्वयंसेवी कार्य दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद है। आप स्वयंसेवा करके अपने कौशल को बढ़ा सकते हैं।
- CSR के जरिए सहयोग: कंपनियां हमारे साथ जुड़कर सामाजिक जिम्मेदारी निभाएं। यह सहयोग दिव्यांगों को मजबूत करने का सुनहरा रास्ता है। सीएसआर के माध्यम से, हम कंपनियों को हमारे नेक काम में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। यह सहयोग कंपनियों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ-साथ दिव्यांग व्यक्तियों को मजबूत करने में भी मदद करता है।
देखभाल की शानदार विरासत
नारायण सेवा संस्थान चार दशकों से कमजोर तबकों को सशक्त बना रहा है। पहले दिन से संस्थान भूखों को नि:शुल्क खाना, जरूरतमंदों को नि:शुल्क इलाज और जिंदगी जीने के संसाधन बांटता आया है। अब हम दिव्यांगों के दर्द को समझते हुए उनके लिए नई राह बना रहे हैं।
यह व्यावसायिक प्रशिक्षण सिर्फ स्किल्स का प्रोग्राम नहीं, बल्कि दिव्यांगों की जिंदगी का नया अध्याय है—जहां संभावनाएं अनंत हैं, आत्मविश्वास है, सकारात्मकता है, सम्मान है और आर्थिक आजादी का सपना सच होता है। आपके सहयोग से हम रोजगार, भावनात्मक समर्थन, और मौके देकर जरूरतमंदों को सशक्त बनाते रहेंगे।