शिव वह ऊर्जा हैं जो इस ब्रह्मांड के हर जीव के भीतर मौजूद है। यही ऊर्जा ब्रह्मांड को चलाने के लिए काम करती है। भगवान शिव रूपी यह ऊर्जा जीवित प्राणियों के साथ निर्जीव चीजों को चलाने के लिए काम करती है। इस प्रकार शिव इस दुनिया के अस्तित्व को संचालित करने का काम करते हैं।
महाशिवरात्रि का पर्व हमारी चेतना को बढ़ाने के साथ ही ध्यान के माध्यम से प्राण शक्ति को बढ़ाकर अपने स्त्रोत की ओर ले जाने का काम करता है। वैसे तो महाशिवरात्रि मनाने को लेकर कई कहानियां प्रचिलित हैं, लेकिन हम यहां कुछ कहानियों के बारे में आपको अवगत करा रहे हैं-
महाशिवरात्रि की रात में भगवान शिव के सम्मान में इस जगत में पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन विशेष अनुष्ठानों तथा वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ भगवान शिव की आराधना की जाती है। भगवान शिव की पूजा से वातावरण में सकारात्मकता और पवित्रता का उदय होता है। यह नकारात्मक विचारों और भावनाओं को खत्म कर देती है। पूजा में बैठने से और मंत्रों को सुनने से मन को अपार शांति का अनुभव होता है।
शिवलिंग को निराकार शिव का प्रतीक माना जाता है। इसलिए महाशिवरात्रि के पवित्र दिन पर शिवलिंग का जल से अभिषेक करें, साथ ही बेलपत्र अर्पित करें। महादेव को जल और बेलपत्र अर्पित करने से जीवन में शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे मकाराय नमः शिवायः॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवायः॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवायः॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै यकाराय नमः शिवायः॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
महादेव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती के साथ हुआ था। दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे इसलिए उन्होंने महादेव को अपने दामाद के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया। एक बार दक्ष प्रजापति ने विराट यज्ञ का आयोजन कराया, जिसमें उन्होंने सभी को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को और माता सती को इस यज्ञ में शामिल होने का न्यौता नहीं भेजा। इस बात की जानकारी जब माता सती को लगी तो लगी उन्हें इस बात का बहुत दु:ख हुआ। आमंत्रित न किए जाने के बावजूद माता सती ने उस यज्ञ में शामिल होने का निर्णय लिया। जब महादेव को यह बात पता चली तब उन्होंने माता सती समझाया और माता सती से वहां न जाने का आग्रह किया। लेकिन माता सती वहां जाने के लिए दृढ़ निश्चय कर चुकी थीं, इसलिए यज्ञ में शामिल होने के लिए वो अपने पिता के घर पहुंच गईं। सती को देख प्रजापति दक्ष अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने सभी के सामने भगवान शिव का अपमान करना शुरू कर दिया। भगवान शिव के लिए दक्ष द्वारा कहे गए वाक्य और अपमान को माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में खुद को भस्म कर लिया।
इस घटना के कई हजार साल बाद देवी सती का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। पर्वतराज के घर जन्म लेने की वजह से उनका नाम पार्वती पड़ा। इस जन्म में माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए कठोर तपस्या की उनके तप को लेकर चारों तरफ हाहाकर मचा हुआ था। मां पार्वती ने अन्न, जल त्याग कर कई वर्षों तक भोलेनाथ की उपासना की। आखिरकार देवी पार्वती के तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने माता पार्वती को अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार किया। विवाह के बाद माता पार्वती खुशी-खुशी महादेव के साथ कैलाश पर्वत पर रहने लगीं।