हिंदू पंचांग में कार्तिक मास को वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना गया है। यह महीना न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि जीवन और आत्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है। इस बार कार्तिक मास 8 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 5 नवंबर 2025 तक रहेगा।
इस कालखंड को “धर्म, तप और दान” का महीना कहा गया है, क्योंकि यह काल आत्म-शुद्धि और ईश्वर के निकट आने का अवसर प्रदान करता है।
पुराणों के अनुसार, कार्तिक मास में भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, धनवंतरि, सूर्य देव, गोवर्धन पर्वत और कार्तिकेय की पूजा करने से व्यक्ति को राजसी सुख और वैभव प्राप्त होता है। इस महीने में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, छठ पूजा और देवउठनी एकादशी जैसे प्रमुख पर्व आते हैं। यह वह समय है जब भक्ति और साधना का वातावरण पूरे देश में व्याप्त होता है।
कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह वही दिन है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इस दिन देवताओं ने आनंदोत्सव मनाया और तभी से यह पर्व “त्रिपुरी उत्सव” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी दिन विशेष पूजा, स्नान और दीपदान करने का विधान है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया गया एक भी दीपदान सहस्र यज्ञों के समान फलदायी होता है। यह दिन मोक्ष प्राप्ति, पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना गया है।
दीपक आशा, ज्ञान और ईश्वर-भक्ति का प्रतीक है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों और पुष्कर, नैमिषारण्य जैसे पवित्र सरोवरों में स्नान कर दीपदान करने से जीवन के अंधकार दूर होते हैं और आत्मा का आलोक प्रकट होता है।
पौराणिक ग्रंथों में दीपदान के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा गया है-
कीटा: पतंगा मशकाश्च वृक्षे जले स्थले ये विचरन्ति जीवा:
दृष्ट्वा प्रदीपं नहि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवति तत्र
अर्थात्, जो जीव इस दिन जल, स्थल या वृक्षों पर विचरते हैं और दीप का दर्शन करते हैं, वे पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
आध्यात्मिक शुद्धि: दीपदान करने से आत्मा की शुद्धि होती है। मन की नकारात्मकता दूर होकर जीवन में शांति का संचार होता है।
धन और समृद्धि की प्राप्ति: इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। दीपदान से घर में धन-धान्य और समृद्धि का प्रवाह होता है।
स्वास्थ्य लाभ: तिल या घी के दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
पारिवारिक सुख-शांति: परिवार के सभी सदस्यों द्वारा दीपदान करने से आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है, और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
ऋण-मुक्ति: मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा से दीपदान करता है, वह कर्ज और आर्थिक तंगी से मुक्त होता है।
दीपदान के लिए तिल का तेल, घी या सरसों के तेल का उपयोग करना चाहिए।
दीपक एक बार जलाने के बाद उसे बुझाना नहीं चाहिए।
दीप को पवित्र नदी या सरोवर के जल में प्रवाहित करें या तुलसी, पीपल जैसे पवित्र वृक्षों के नीचे रखें।
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान कर दीपदान करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। जो व्यक्ति इस दिन दीपदान करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन में सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
पुष्कर, जिसे तीर्थराज कहा गया है, हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह वही स्थान है जहाँ सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी का मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के ब्रह्म मुहूर्त में स्वयं ब्रह्मा जी मनुष्य के वेश में पुष्कर सरोवर में स्नान करने आते हैं।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन पुष्कर में किया गया दीपदान यज्ञों के समान फलदायी होता है। यह सरोवर श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, जहाँ स्नान और दीपदान से पापों का नाश होता है तथा आत्मा को मोक्ष का मार्ग मिलता है।
नारायण सेवा संस्थान इसी पवित्र परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भक्तों को यह अवसर प्रदान कर रहा है कि वे अपने नाम से पुष्कर सरोवर में दीपदान कर सकें। संस्थान की सेवा-टीम प्रत्येक दीप को आपके नाम और आपकी इच्छा के अनुसार सरोवर के जल में प्रवाहित करेगी, ताकि वह दीप किसी दिव्यांग, असहाय या जरूरतमंद के जीवन में नई रोशनी लेकर पहुँचे।
यह दीप किसी जीवन में आशा, करुणा और सेवा का प्रकाश बनकर बहेगा। इस कार्तिक पूर्णिमा पर आइए, नारायण सेवा संस्थान के माध्यम से पुष्कर के पवित्र सरोवर में दीपदान कीजिए, ताकि आपकी भक्ति का प्रकाश किसी और के अंधकार को दूर कर सके और भविष्य में आपके जीवन में जो भी अंधकार आ सकता है, वहाँ भी ईश्वर कृपा से आपका जीवन रोशन और सुखमय हो, साथ ही संसार में प्रेम व सेवा की ज्योति प्रज्वलित होती रहे।