सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह दिन आत्मशुद्धि, पापों के नाश और ईश्वर की कृपा प्राप्ति का उत्तम अवसर प्रदान करता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘कामदा एकादशी‘ कहा जाता है, जिसका अर्थ है इच्छाओं की पूर्ति करने वाली एकादशी। यह व्रत भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम माना जाता है।
मान्यता है कि जो लोग कामदा एकादशी के दिन पूजा-पाठ और दान-पुण्य करते हैं, उन्हें पापों से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है। जो लोग इस शुभ दिन व्रत रखते हैं, उन्हें वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य मिलता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 7 अप्रैल 2025 को रात 8 बजे से शुरू होगी और अगले दिन 8 अप्रैल 2025 को रात 9 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के नियम के आधार पर, इस बार कामदा एकादशी 8 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। इस व्रत का पारण अगले दिन, यानी 9 अप्रैल 2025 को करना शुभ माना जाएगा। पारण का उचित समय प्रातः 6 बजकर 2 मिनट से लेकर 8 बजकर 34 मिनट के बीच रहेगा।
कामदा एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन में किसी विशेष इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं।
पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि भोगीपुर नामक नगर में राजा पुंडरीक का शासन था। वहाँ ललित नामक एक गंधर्व अपनी पत्नी ललिता के साथ निवास करता था। एक दिन, दरबार में प्रस्तुति के दौरान, ललित का ध्यान अपनी पत्नी की ओर होने के कारण उसकी गायन में त्रुटि हो गई। राजा ने क्रोधित होकर उसे राक्षस बनने का श्राप दिया। ललिता ने अपने पति को श्राप से मुक्त कराने के लिए शृंगी ऋषि से उपाय पूछा। ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। ललिता ने श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया, जिसके फलस्वरूप ललित को श्राप से मुक्ति मिली और वह अपने गंधर्व रूप में वापस आ गया।
कामदा एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और पुण्य की वृद्धि होती है। दान करने से न केवल दाता को लाभ मिलता है, बल्कि समाज में भी सद्भावना और सहयोग की भावना बढ़ती है।
दान करने का उलख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। कूर्मपुराण में कहा गया है-
स्वर्गायुर्भूतिकामेन तथा पापोपशान्तये।
मुमुक्षुणा च दातव्यं ब्राह्मणेभ्यस्तथाअवहम्।।
अर्थात् स्वर्ग, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य के अभिलाषी और पाप की शांति तथा मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति को ब्राह्मणों और पात्र व्यक्तियों को भरपूर दान करना चाहिए।
• सात्त्विकता का पालन: व्रत के दौरान मन, वचन और कर्म से सात्त्विकता का पालन करें।
• अहिंसा: किसी भी जीव को कष्ट न पहुँचाएँ और अहिंसा के मार्ग पर चलें।
• सदाचार: सत्य, दया, करुणा और क्षमा जैसे गुणों का विकास करें।
• ध्यान और साधना: भगवान के ध्यान और साधना में समय व्यतीत करें, जिससे मन की चंचलता कम हो और एकाग्रता बढ़े।
कामदा एकादशी व्रत आत्मशुद्धि, पापों के नाश और इच्छाओं की पूर्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त को जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत का पालन कर और दीन-हीन, असहाय लोगों को दान देकर भक्त अपने जीवन को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर कर सकते हैं और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।