मानव जीवन में चलना, फिरना और अपने कार्य स्वयं करना जितना स्वाभाविक लगता है, उतना ही यह किसी दिव्यांग व्यक्ति के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है। किसी दुर्घटना या जन्मजात कारणों से जब किसी व्यक्ति का हाथ या पैर काम नहीं करता, तो उसके जीवन का आत्मविश्वास टूट जाता है। लेकिन उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान ऐसे ही असंख्य जीवनों में फिर से मुस्कान और आत्मनिर्भरता की ज्योति जला रहा है और अब यह संस्थान जापानी तकनीक की मदद से इस मिशन को और भी आधुनिक, सटीक और प्रभावशाली बना रहा है।
नारायण सेवा संस्थान का उद्देश्य दिव्यांगों को स्वाभिमान के साथ जीने की शक्ति देना है। पिछले चार दशकों से यह संस्थान निःस्वार्थ भाव से समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और दिव्यांग वर्ग की सेवा कर रहा है। यहाँ हर वह व्यक्ति जिसका हाथ या पैर किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण खो गया हो, उसे पूरी तरह नि:शुल्क कृत्रिम अंग उपलब्ध कराया जाता है।
अब संस्थान ने इस सेवा को और बेहतर बनाने के लिए जापान की अत्याधुनिक 3D तकनीक को अपनाया है। यह तकनीक पारंपरिक कृत्रिम अंग निर्माण की तुलना में कई गुना अधिक सटीक, हल्की और उपयोगकर्ता के अनुकूल है। जहाँ पहले कृत्रिम पैर या हाथ का वजन अधिक होता था और उसका संतुलन बनाए रखना मुश्किल होता था, वहीं जापानी तकनीक से बने अंग अब शरीर के वजन और चाल के अनुसार खुद को एडजस्ट कर लेते हैं, साथ ही अधिक लचीले, टिकाऊ और आरामदायक होते हैं, और प्राकृतिक अंगों जैसे कार्य करने में सक्षम होते हैं।
इस तकनीक से तैयार कृत्रिम अंग पहनने वाला व्यक्ति न केवल सहजता से चल-फिर सकता है, बल्कि सीढ़ियाँ चढ़ना, साइकिल चलाना, खेलना या हल्का व्यायाम करना भी संभव हो जाता है।
संस्थान में आधुनिक उपकरणों की मदद से सबसे पहले मरीज के अंग का सटीक मापन किया जाता है। इसके बाद विशेषज्ञ टीम जापानी तकनीक वाले 3D सिस्टम के माध्यम से कृत्रिम अंग को इस तरह बनाती है कि वह व्यक्ति के शरीर के साथ पूरी तरह संतुलित रहे। कृत्रिम अंग फिट करने के बाद फिजियोथेरेपी और वॉकिंग ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि व्यक्ति उसे आत्मविश्वास से उपयोग करना सीख सके। इस पूरी प्रक्रिया में मरीज से कहीं भी कोई पैसा नहीं लिया जाता। इस दौरान मरीज के भोजन, रहने और उपचार की सारी व्यवस्था भी संस्थान की ओर से की जाती है।
हर माह देश के कोने-कोने से हजारों लोग नारायण सेवा संस्थान पहुँचते हैं, कुछ दुर्घटनाओं के बाद उम्मीद खो चुके, तो कुछ जन्म से दिव्यांग। लेकिन यहाँ आने के बाद उनकी जिंदगी बदल जाती है। कई ऐसे उदाहरण हैं जहाँ किसी व्यक्ति ने वर्षों तक चलना छोड़ दिया था, पर संस्थान से कृत्रिम पैर लगवाने के बाद आज वह आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार का सहारा बन गया है। संस्थान के डॉक्टरों का कहना है कि जापानी तकनीक से बने कृत्रिम अंगों ने न केवल कार्यक्षमता बढ़ाई है बल्कि मरीजों की रिकवरी का समय भी घटा दिया है।
नारायण सेवा संस्थान केवल चिकित्सा का केंद्र नहीं, बल्कि मानवता की प्रयोगशाला है। यहाँ हर कार्य; चाहे वह सर्जरी हो, फिजियोथेरेपी हो, या कृत्रिम अंग निर्माण; सब कुछ सेवा और करुणा के भाव से किया जाता है। संस्थान का यह सेवा प्रकल्प आज पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अनुकरणीय बन गया है। यह बताता है कि तकनीक और सेवा का संगम जब सही उद्देश्य से होता है, तो वह समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति को भी सशक्त बना सकता है।
कई बार एक छोटा कदम किसी का पूरा जीवन बदल देता है। नारायण सेवा संस्थान के द्वारा दिया जाने वाला हर कृत्रिम पैर किसी के लिए फिर से चलने की शक्ति, किसी के लिए जीवन की दिशा, और किसी के लिए आत्मसम्मान की पहचान बन जाता है।
यह सिर्फ मशीनों से बनी तकनीक नहीं, बल्कि सेवा, दया और नवाचार की जीवंत मिसाल है।
नारायण सेवा संस्थान ने दिखाया है कि जब विज्ञान और नि:स्वार्थ सेवा एक साथ चलते हैं, तो चमत्कार होता है। जापानी तकनीक की मदद से संस्थान हर वर्ष हजारों लोगों को नई जिंदगी दे रहा है, वह भी पूर्णतः निःशुल्क। यह सेवा प्रकल्प केवल दिव्यांगों के जीवन को नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच को बदल रहा है।