मार्गशीर्ष अमावस्या हिंदू पंचांग के अनुसार एक अत्यंत पावन और पुण्यदायी तिथि मानी जाती है। इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, स्नान, ध्यान और दान करना विशेष फलदायी होता है। मार्गशीर्ष माह स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता में सर्वश्रेष्ठ मास कहा गया है। इस मास की अमावस्या तिथि पर किए गए सत्कर्म, पितृ कृपा और ईश्वर अनुग्रह का सहज साधन बनते हैं।
यह दिन उन दिवंगत आत्माओं की शांति और तृप्ति के लिए सर्वोत्तम है, जिनके श्राद्ध या तर्पण किसी कारण से नहीं हो पाए। इस दिन तप, सेवा और दान से आत्मा शुद्ध होती है और जीवन में शांति, संतुलन और सुख का संचार होता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
यह दिन संयम, श्रद्धा और सेवा का प्रतीक है। इस दिन गंगा स्नान, पितृ तर्पण, मौन साधना, ब्राह्मण भोजन और जरूरतमंदों की सेवा से मन, आत्मा और घर-परिवार पवित्र और सुखी होते हैं। पुराणों में कहा गया है कि मार्गशीर्ष अमावस्या पर किए गए पुण्यकर्म सौगुना फल देते हैं और घर में सुख, शांति तथा पितृ कृपा का वास होता है।
दान का महत्व श्रीमद्भगवद्गीता में
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।
अर्थात, जो दान बिना किसी स्वार्थ के, उचित समय पर और योग्य पात्र को दिया जाए, वही सात्त्विक दान कहलाता है।
दिव्यांग और असहायों को कराएं भोजन
मार्गशीर्ष अमावस्या के पावन अवसर पर दीन-दुखियों, दिव्यांगों और असहायों को भोजन कराना पितरों की आत्मा की तृप्ति और ईश्वर की कृपा पाने का सरल और श्रेष्ठ उपाय है। नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग, असहाय और बेसहारा बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें और पितृ ऋण से मुक्ति के साथ अपने जीवन में पुण्य, सुख और समृद्धि का संचार करें।