25 September 2023

इन लोगों को है श्राद्ध करने का अधिकार

सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का बड़ा महत्व माना जाता है। श्राद्ध पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। इस दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म करते हैं। मान्यता है कि इससे घर के लोगों पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष के दौरान पितृ धरती पर आते हैं। इसलिए उनकी आत्मा की शांति और उद्धार के लिए श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए।

कहा जाता है कि श्राद्ध हमेशा घर के सभी सदस्यों की सहमति पर ज्येष्ठ पुत्र को ही करना चाहिए। लेकिन यदि घर में ज्येष्ठ पुत्र नहीं है तो घर का कनिष्ठ पुत्र या कोई अन्य सदस्य अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है और उन्हें जल अर्पित कर सकता है।

श्राद्ध की महिमा का वर्णन गरुण पुराण में विस्तार से किया गया है। गरुण पुराण सनातन धर्म के 18 पुराणों में से एक है। किसी व्यक्ति के देवलोकगमन पर इस पुराण का घरों में पाठ जरूर किया जाता है। माना जाता है इस पुराण के पाठ से मृत आत्मा को शांति मिलती है।

श्राद्ध का उल्लेख करते हुए गरुण पुराण में कहा गया है, “यदि घर में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र नहीं है तो उनकी अनुपस्थिति में कोई अन्य व्यक्ति पितरों का श्राद्ध कर सकता है, उन्हें जल अर्पित कर सकता है। यदि पुरुष नहीं है तो माहिलाएं भी पितरों का तर्पण कर सकती हैं।”

 

माता सीता ने किया था अपने ससुर का श्राद्ध

वाल्मीकि रामायण में माता सीता के द्वारा उनके ससुर राजा दशरथ के श्राद्ध का उल्लेख किया गया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के दौरान जब प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण जी और माता सीता राजा दशरथ का श्राद्ध करने के लिए गया जी पहुंचे। तब प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी माता सीता को छोड़कर श्राद्ध की सामग्री एकत्र करने के लिए नगर की ओर चले गए। माता सीता फल्गु नदी के किनारे बैठकर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी का इंतजार कर रही थीं। तभी उन्हें उनके ससुर राजा दशरथ की छवि दिखाई दी। राजा दशरथ की आत्मा माता सीता से तर्पण की मांग कर रही थी। तब माता सीता ने फल्गु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर अपने ससुर राजा दशरथ का तर्पण किया। जिसके बाद राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष प्राप्त हुआ।