24 September 2025

Dussehra 2025: क्यों मनाया जाता है दशहरा? जानें रावण दहन का शुभ मुहूर्त

Start Chat

भारतीय संस्कृति में त्यौहार धर्म और न्याय की शाश्वत परंपरा को जीवित रखने का साधन हैं। नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा की उपासना के पश्चात जब दसवें दिन विजयादशमी का आगमन होता है, तब सम्पूर्ण भारत “सत्य की असत्य पर विजय” और “धर्म की अधर्म पर विजय” का उत्सव मनाता है। यही पर्व दशहरा कहलाता है।

 

दशहरा 2025 तिथि और रावण दहन का मुहूर्त 

साल 2025 में शारदीय नवरात्रि का समापन 1 अक्टूबर 2025 को हो रहा है। इस हिसाब से 2 अक्टूबर 2025 दशहरा मनाया जाएगा। अगर वैदिक पंचांग की बात की जाए तो दशमी तिथि 1 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 1 मिनट पर शुरू होगी और सिका समापन 2 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 10 मिनट पर होगा। सनातन परंपरा में उदयातिथि का महत्व है इसलिए दशहरा का पर्व 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 

ज्योतिषियों के मुताबिक रावण के पुतले का दहन प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद शुरू होता है जो रात्रि के पहले समाप्त हो जाता है। इस हिसाब से शाम 6 बजकर 5 मिनट के बाद रावण दहन करना सही रहेगा। 

 

भगवान श्रीराम की विजय का प्रतीक

त्रेतायुग में जब राक्षसराज रावण ने अपनी शक्ति और अहंकार से त्रिलोक को आतंकित कर दिया था, तब भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में अवतार लिया। लंका के युद्ध में श्रीराम ने रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद का वध कर धर्म की स्थापना की। तभी से हर वर्ष दशहरे के दिन इन राक्षसों के पुतलों का दहन किया जाता है।

देशभर में दशहरे पर विशाल मेले, रामलीलाओं का मंचन और रावण दहन का आयोजन किया जाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी यह संदेश देने का माध्यम है कि अहंकार, अन्याय और अधर्म का अंत निश्चित है।

 

विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का महत्व

भारतीय परंपरा में दशहरा पराक्रम और शौर्य का भी प्रतीक है। इस दिन शस्त्र पूजन की प्राचीन परंपरा है। वीरता और धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र सदैव पवित्र माने गए हैं। भारतीय सेना आज भी इस दिन अपने सभी शस्त्रों की पूजा करती है। सामान्य जन भी अपने कार्य उपकरणों, वाहनों और शस्त्रों की पूजा कर भगवान से सफलता और सुरक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं।

 

महिषासुर मर्दिनी की विजय

विजयादशमी का महत्व केवल भगवान श्रीराम की विजय तक सीमित नहीं है। देवी दुर्गा ने भी इसी दिन महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्त कराया था। माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन महिषासुर का अंत किया। इसलिए माँ को “महिषासुर मर्दिनी” भी कहा जाता है। तभी से नवरात्रि के दसवें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। 

 

देवी अपराजिता की पूजा

शास्त्रों के अनुसार, रावण से युद्ध करने से पहले भगवान श्रीराम ने विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की आराधना की थी। देवी ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया और रामचंद्रजी ने लंका विजय प्राप्त की। तभी से विजयादशमी पर देवी अपराजिता की पूजा की परंपरा है।

 

देवी अपराजिता की पूजा विधि:-

  • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • दोपहर के समय विजय मुहूर्तमें देवी अपराजिता की पूजा करें।
  • देवी को सिंदूर, चूनरी, शृंगार सामग्री, पुष्प, अक्षत, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • देवी के मंत्रों का जाप कर आरती करें।
  • अंत में घी का दीपक जलाकर विजय का आशीर्वाद प्राप्त करें।

 

शमी और अपराजिता पौधे की आराधना

विजयादशमी के दिन शमी और अपराजिता के पौधों की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इन पौधों की आराधना से भगवान राम और माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार पर कोई संकट नहीं आता।

शमी वृक्ष को युद्ध और विजय का प्रतीक माना गया है। महाभारत के समय पांडवों ने अपने शस्त्र शमी वृक्ष में ही छिपाये थे और विजयादशमी के दिन अर्जुन ने उन्हें पुनः प्राप्त कर विराट युद्ध में कुरु सेना के विरुद्ध विजय पाई थी।

दशहरा जीवन का सत्य है। यह हमें सिखाता है कि हर व्यक्ति के भीतर एक रावणछिपा है। अहंकार, क्रोध, लोभ और कामना के रूप में। जब हम इन दुष्प्रवृत्तियों का दहन कर देते हैं, तभी वास्तविक विजय प्राप्त होती है।

जैसे राम ने रावण पर विजय पाई, वैसे ही हमें अपने भीतर की बुराइयों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। यही दशहरे का वास्तविक संदेश है। धर्म का पालन करें, सत्य का साथ दें और जीवन में सदैव विजय प्राप्त करें।

X
राशि = ₹