पितृ पक्ष का समापन सर्व पितृ अमावस्या पर होता है, जिसे पितरों की विदाई का दिन माना जाता है। इस दिन अपने ज्ञात-अज्ञात पितरों के मोक्ष, उनकी आत्मा की शांति और भगवान की कृपा के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान करना अत्यंत पुण्यकारी बताया गया है।
पितृ पक्ष में श्रीमद्भागवत मूलपाठ का पाठ पितरों को शांति और मोक्ष दिलाने का एक पवित्र साधन है। इस ग्रंथ की भक्ति भरी कथाएं और उपदेश आत्मा को शुद्ध करते हैं, जिससे पितरों को तृप्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। जानें इस आध्यात्मिक अनुष्ठान की महत्ता!
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह कालखंड भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक रहता है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस पुण्य समय में पितृ देव पृथ्वी पर अपने वंशजों के समीप आते हैं और उनसे तृप्ति की अपेक्षा रखते हैं।
गया जी, मोक्षदायिनी भूमि, जहां भगवान विष्णु और गयासुर की कथा आस्था को प्रेरित करती है। विष्णुपद मंदिर और पितृपक्ष मेला पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं।
यह शुभ दिन भगवान विष्णु की उपासना और भक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। हर एकादशी का अपना अलग महत्व और फल होता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण एकादशी है ‘इंदिरा एकादशी’, जो पितृ पक्ष के दौरान आती है।
रामायण कथा में वनवास के दौरान माता सीता ने फाल्गु नदी तट पर ससुर राजा दशरथ का पिंडदान क्यों किया? दशरथ की आत्मा की विनती पर स्त्री-श्राद्ध का प्राचीन रहस्य।
जानें ये गूढ़ कथा और महिलाओं के पितृकर्म अधिकार की प्रेरणादायक कहानी!
इस भवसागर से मुक्त हो चुके पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में जो विधिपूर्वक श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, दान आदि किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। इसे महालय और पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
यह दिन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन से ही श्राद्ध पक्ष का शुभारंभ होता है इसलिए सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह पूर्णिमा बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
परिवर्तिनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है। यह एकादशी हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
साल 2025 में श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। यह इस बार 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक चलेगा। इसे महालय पक्ष के रूप में भी जाना जाता है। श्राद्ध पितरों के प्रति सच्ची श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है।
भाद्रपद अमावस्या 2025, जो 23 अगस्त को मनाई जाती है, श्राद्ध और तर्पण अनुष्ठान करने और कुशा घास एकत्र करने का एक पवित्र दिन है। हिंदू शास्त्रों में बताए गए अनुसार, गरीबों को अनाज और भोजन दान करके इसके आध्यात्मिक महत्व को अपनाएँ।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) के जन्म के उत्सव के रूप में भारत के साथ पूरी दुनिया में मनाया जाता है।