मकर संक्रांति के पर्व से सूर्य देव की गति उत्तरायण हो जाती है। इसलिए इस दिन को उत्तरायण पर्व के नाम से जाना जाता है। सूर्य देव की इस गति को सनातन परंपरा में बेहद शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि यह देवताओं का समय होता है। जब सूर्य भगवान की गति उत्तरायण होती है तब दिन बड़ा होने लगता है और रात छोटी होने लगती है। उत्तरायण की पवित्रता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था तो उन्होंने इच्छा मृत्यु के वरदान के बल पर अपने प्राण त्यागने के लिए मना कर दिया था। इसके बाद जब सूर्य उत्तरायण हुए थे तब उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
क्या होता है उत्तरायण
आमतौर पर खगोलीय गणना के अनुसार सूर्य की दो स्थितियां बताई जाती हैं, जिन्हें उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है। दोनों की अवधि समान होती है अर्थात 6 महीने सूर्य उत्तरायण होते हैं तो अगले 6 महीने दक्षिणायन। सूर्य भगवान जब उत्तर दिशा की ओर गमन करते हुए मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करते हैं तो उसे उत्तरायण कहा जाता है। इसी तरह जब सूर्य भगवान दक्षिण दिशा की ओर गमन करते हैं और कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करते हैं, इसे दक्षिणायन कहा जाता है। उत्तरायण में दिन के बड़े होने से इसे ज्यादा शुभ माना जाता है। इस समय को प्रकाश का समय कहा जाता है। जबकि दक्षिणायन में रात बड़ी होती है।
इसलिए मकर संक्रांति पर ही होता है उत्तरायण
अगर सूर्यदेव की गति को देखें तो वो 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर होते हैं। इस दौरान मकर रेखा पर उनकी किरणें सीधी पड़ती हैं। इस स्थिति को दक्षिण अयनांत की स्थिति कहा जाता है। इसके बाद 14 या 15 जनवरी को सूर्यदेव धनु राशि से निकालकर मकर राशि में प्रवेश कर जाते हैं। मकर राशि में प्रवेश करने के कारण ही इस दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसी के साथ उत्तरायण का प्रारंभ हो जाता है जो अगले 6 माह तक चलता है।
इसलिए शुभ माना जाता है उत्तरायण
उत्तरायण को उजाले का समय कहा जाता है। उत्तरायण के 6 माह में दिन बड़े होते हैं इसलिए इस समय में लोगों की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है। इसे देवताओं का समय माना जाता है और पुण्य काल के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस समय दान, यज्ञ या मांगलिक कार्यों को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में महत्वपूर्ण ग्रंथ श्री मद भगवत गीता में कहा गया है कि उत्तरायण काल में शरीर का त्याग करने पर सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उत्तरायण पर पतंग उड़ाने की परंपरा
सूर्य देव के उत्तरायण होने पर भारत में पतंग उड़ाने की परंपरा प्रचिलित है। इस दिन देवलोक के दरवाजे खुले होते है इसलिए देवताओं तक अपनी भक्ति और श्रद्धा को पहुंचाने के लिए लोग पतंग उड़ाते हैं। कहा जाता है कि जिसकी जितनी ऊंची पतंग उड़ती है उसके ऊपर भगवान की उतनी ज्यादा कृपा होती है। उत्तरायण में पतंग उड़ाने का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में भी किया है। उन्होंने लिखा है, “‘राम इक दिन चंग उड़ाई। इंद्रलोक में पहुंची जाई।” अर्थात् मकर संक्राति के पावन अवसर पर एक बार भगवान श्रीराम पतंग उड़ा रहे थे। उस समय उनकी पतंग उड़ते-उड़ते इंद्रलोक तक पहुंच गई। उस समय देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत की पत्नी को वो पतंग बहुत अच्छी लगी। जिसके बाद उस सुंदर पतंग के धागे को तोड़कर उन्होंने पतंग अपने पास रख ली।