28 August 2023

इसलिए किया जाता है श्राद्ध, पितरों की आत्मा को मिलती है असीम शांति

अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष समय पर विधिपूर्वक जो भी क्रिया कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। इसे महालय और पितृ पक्ष भी कहा जाता है। हमें यह जन्म हमारे पूर्वजों के द्वारा ही प्राप्त हुआ है, इसलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा करना हमारा कर्तव्य है। श्राद्ध का वर्णन सनातन धर्म के कई ग्रंथों में किया गया है। जिसमें ब्रह्म, विष्णु, वायु, वराह और मत्स्य पुराण प्रमुख हैं। इनके अलावा महाभारत और मनुस्मृति में भी श्राद्ध का वर्णन मिलता है।

 

श्राद्ध क्या है?

श्राद्ध की शुरुआत वैदिक काल से हुई है। इस संसार से जा चुके व्यक्ति के लिए शास्त्रसम्मत विधि द्वारा जो भी श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, दान आदि किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। इसके अलावा ब्रह्म पुराण में श्राद्ध का उल्लेख करते हुए कहा गया है, “जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है।”

 

श्राद्ध के देवता

शास्त्रों एवं ग्रंथों में वसु, रुद्र और आदित्य को श्राद्ध का देवता बताया गया है। 

 

इसलिए किया जाता है श्राद्ध

हर व्यक्ति के तीन पूर्वजों पिता, दादा और परदादा को क्रम से वसु, रुद्र और आदित्य माना जाता है। पूर्वजों के श्राद्ध के समय वे ही सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। श्राद्ध कर्म के दौरान जो भी मंत्र उच्चारित किए जाते है या आहुतियां दी जाती हैं वह ये सभी अन्य पितरों तक ले जाते हैं। माना जाता है कि पिता, दादा और परदादा श्राद्ध कराने वाले व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके रीति-रिवाजों के अनुसार कराये गये श्राद्ध-कर्म से तृप्त होकर परिवार को सुख-समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। 

 

श्राद्ध और पितर में संबंध 

जिस मृत व्यक्ति को देवलोक गए हुए एक साल हो जाता है उसे ‘पितर’ कहा जाता है। श्राद्ध पितरों तक आहार पहुंचाने का एक साधन है। मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान आहार पाकर पितर विभिन्न माध्यमों से हमारे निकट आते हैं और तृप्त होने पर घर के लोगों को आशीर्वाद देते हैं।

 

श्राद्ध के लिए पूजा सामग्री एवं पूजा विधि 

श्राद्ध की पूजा कराने के लिए एक अच्छा ब्राह्मण बेहद जरूरी है। इसके साथ ही तिल, उड़द, चावल, जौ, जल, जड़युक्त सब्जी और फल का होना बेहद जरूरी है। श्राद्ध की पूजा के दौरान पुत्री का पुत्र, तिल, कम्बल या कुश शुद्धिकारक माने गए हैं। पूजा करते समय सफाई रखें, क्रोध न करें। इसके साथ ही श्राद्ध कर्म करते समय जल्दबाजी बिल्कुल भी न करें। ऐसा करने से पितर क्रोधित हो जाते हैं। श्राद्ध कर्म हमेशा अपरान्ह के समय ही कराना चाहिए, साथ ही उदारता के साथ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। 

 

इन बातों का रखें ध्यान

श्राद्ध में कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ वर्जित हैं। जैसे- मसूर, राजमा, कोदो, चना, अलसी, बासी भोजन और समुद्र जल से बने नमक का उपयोग करना वर्जित है। इसके साथ ही भैंस, उंटनी, भेड़ और एक खुरवाले पशु के दूध का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के दिन दही और घी का इस्तेमाल भी वर्जित होता है। श्राद्ध किसी दूसरे के घर में नहीं किया जा सकता। इस पूजा को हमेशा अपने घर में ही करना चाहिए। अगर आपके पास खुद का घर नहीं है तो श्राद्ध ऐसी भूमि पर करना चाहिए जो सार्वजनिक हो। 

 

श्राद्ध में कुश एवं तिल का महत्व

कहा जाता है कि कुश और तिल दोनों भगवान विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि कुश में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का वास होता है। कुश का अग्रभाग देवताओं का माना जाता है। मध्य भाग मनुष्यों का और जड़ पितरों की मानी जाती है। तिल पितरों को प्रिय होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।

 

श्राद्ध में पिंड का महत्व 

श्राद्ध कर्म में दूध, तिल और पके हुए चावल को मिलाकर पिंड बनाया जाता है। यह पिंड पिता, दादा और परदादा के शरीरों का प्रतीक होता है। यह प्रतीकात्मक क्रिया आत्माओं की तृप्ति के लिए की जाती है।

 

श्राद्ध में कौओं का महत्व 

सनातन धर्म में माना जाता है कि मरने के बाद व्यक्ति सबसे पहले कौए के रूप में जन्म लेता है। इसलिए श्राद्ध पक्ष में कौओं का विशेष महत्व बताया गया है। हर साल श्राद्ध पक्ष में कौओं को खाना खिलाने के तौर पर अपने पितरों को खाना खिलाया जाता है। श्राद्ध कर्म करने वाला व्यक्ति थाली में खाना परोसकर कौओं का आवाहन करता है। साथ में पीने के लिए पानी भी रखा जाता है। जब कोई कौआ खाना खाने के लिए आ जाता है तो माना जाता है कि पूर्वज भोजन ग्रहण करने के लिए आए हैं। अगर कौआ खाना खाने नहीं आते हैं तो माना जाता है कि पूर्वज नाराज है। ऐसे में पूर्वजों को मनाया जाता है और उनसे माफी मांगी जाती है। 

 

साल 2023 में श्राद्ध की तिथियां

इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है और 14 अक्‍टूबर 2023 को यह समाप्‍त होंगे। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विन मास की अमावस्‍या तक चलते हैं। 

श्राद्ध पक्ष के दौरान हमें पूरे मन के साथ अपने पूर्वजों को याद करना चाहिए और उनकी आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पुण्य कर्म करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष हमें अपनी जड़ों और पूर्वजों के साथ शाश्वत बंधन की मार्मिक याद दिलाता है। श्रद्धा का यह समय जीवन के चक्र और कृतज्ञता के महत्व पर जोर देता है और संबंध के सार को आगे बढ़ाता है।