नवरात्रि भारत में सबसे जीवंत त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार करोड़ों लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। “नवरात्रि” शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है, “नव” जिसका अर्थ है नौ और “रात्रि” जिसका अर्थ है रात। ये नौ रातें दिव्य स्त्री ऊर्जा की पूजा के लिए समर्पित हैं। यह आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। यह त्यौहार न केवल धार्मिक महत्व बल्कि सांस्कृतिक विविधता का भी प्रतीक है। भारत के विभिन्न राज्यों में यह त्यौहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। इस त्यौहार में आगामी 9 दिनों तक जगत जननी माँ दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों की पूजा की जाती है।
नवरात्रि उत्सव
नवरात्रि का उत्सव अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। लेकिन सभी राज्यों में माँ के प्रति श्रद्धा भाव एक जैसा होता है। यह त्यौहार आम तौर पर पूरे देश में इन तरीकों से मनाया जाता है-
उपवास : नवरात्रि के अवसर पर माँ दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा दिखाने के लिए लोग उपवास रखते हैं। यह उपवास 1 दिन से लेकर 9 दिनों तक हो सकते हैं। कई लोग सख्त उपवास रखते हैं जिसमें वो कुछ भी खाते पीते नहीं हैं।
कन्या पूजन : नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन बच्चियों को घर पर बुलाकर उनका पूजन किया जाता है। उन्हें माँ दुर्गा का स्वरूप माना जाता है, इस दौरान उनके पैर धोए जाते हैं और श्रद्धापूर्वक विशेष भोजन कराया जाता है। इस अनुष्ठान को कन्या पूजन के रूप में जाना जाता है। यह अनुष्ठान दिव्य स्त्री ऊर्जा से आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है।
उत्तर भारत में रामलीला : नवरात्रि के अवसर पर उत्तर भारत में रामलीला का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन विशेष रूप से वाराणसी, चित्रकूट और अयोध्या जैसे स्थानों में लोकप्रिय है। इस आयोजन का समापन दहशरे पर रावण के पुतले के दहन से होता है।
पारंपरिक लोक नृत्य और लोक गीत : नवरात्रि पर कई राज्यों में पारंपरिक लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है। जहां सभी लोग माँ दुर्गा के सम्मान में उत्सव मनाते हुए नृत्य करते हैं। इन नृत्यों में गरबा और डांडिया सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। इनके अलावा कई राज्यों में माँ दुर्गा को समर्पित गीत या भजन भी गाए जाते हैं।
देवी दुर्गा के नौ रूप
नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक रूप देवी के एक अलग पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही त्यौहार के दौरान एक विशिष्ट दिन पर उनका आह्वान किया जाता है। ये नौ रूप हैं:
शैलपुत्री: नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित है, इन्हें पहाड़ों की बेटी कहा जाता है। माँ शैलपुत्री को बैल पर सवार और एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल पकड़े हुए चित्रित किया गया है।
ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन, देवी दुर्गा को तपस्वी रूप ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें एक माला और पानी का बर्तन पकड़े हुए चित्रित किया जाता है।
चंद्रघंटा: तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित है, जिनके माथे पर अर्धचंद्र के आकार की घंटी है। वह अपने दस हाथों में विभिन्न हथियार रखती हैं।
कुष्मांडा: देवी दुर्गा का चौथा रूप माँ कुष्मांडा का है। उनकी आठ भुजाएं हैं और उन्हें माला और अमृत का कलश पकड़े हुए दिखाया जाता है।
स्कंदमाता: नवरात्रि का पांचवां दिन माँ स्कंदमाता को समर्पित है, जो युद्ध के देवता कार्तिकेय की मां हैं। वह अपने बेटे को गोद में लिए नजर आती हैं और उनके चार हाथ चित्रित किए जाते हैं।
कात्यायनी: नवरात्रि के छठे दिन योद्धा देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। उन्हें चार हाथों वाली और तलवार लिए हुए देवी के रूप में दर्शाया गया है।
कालरात्रि: सातवां दिन माँ दुर्गा के उग्र रूप कालरात्रि को समर्पित है। वह काली हैं, साथ ही भयावह रूप वाली हैं, उन्हें अंधकार को दूर करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है।
महागौरी: आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है। उन्हें पवित्रता और शांति की देवी माना जाता है और उन्हें अक्सर सफेद पोशाक में दिखाया जाता है।
सिद्धिदात्री: नवरात्रि का नौवां और अंतिम दिन अलौकिक शक्तियों की दाता सिद्धिदात्री को समर्पित है। उन्हें चार हाथों से चित्रित किया गया है और वह सिद्धों और गंधर्वों से घिरी हुई हैं।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का त्यौहार सनातन धर्मावलंबियों के बीच गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। जिसमें माँ दुर्गा उस दिव्य शक्ति का प्रतीक हैं जिन्होंने राक्षस महिषासुर को परास्त किया था। देवी दुर्गा के नौ रूप विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।