11 August 2025

श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025 : नंद के आनंद भवन में जन्मे मुरलीधर, जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

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श्रावण मास की पूर्णिमा के बाद जब भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि आती है, तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक अलौकिक उल्लास छा जाता है। यही वह पावन रात्रि होती है जब यशोदा के आँगन में लीलामय बालकृष्ण जन्म लेते हैं। यह दिन केवल एक अवतरण की स्मृति नहीं, बल्कि धर्म, भक्ति और प्रेम की एक अनंत धारा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami), भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के जन्मोत्सव के रूप में दुनिया भर में मनाई जाती है।

 

कब है श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025; जानिए शुभ मुहूर्त ? (Shri Krishna Janmashtami 2025)

 

इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई जाएगी। द्रिक पंचांग के अनुसार अष्टमी का शुभ मुहूर्त 15 अगस्त को रात 11:49 बजे से शुरू होगा और अगले दिन 16 अगस्त को रात 09:34 बजे समाप्त होगा। सनातन परंपरा में उदयातिथि का महत्व है इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और दही हांडी उत्सव १६ अगस्त को मनाया जाएगा।  

 

क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी? (Why Do We Celebrate Janmashtami?) 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब पृथ्वी पर अधर्म, पाप और अन्याय बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, तब भगवान इस धरती पर धर्म की स्थापना के लिए अवतरित होते हैं।  श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है-

 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

 

अर्थात जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूँ।

 

कलियुग के आरंभ से पहले द्वापर युग में, जब कंस के अत्याचार चरम पर थे और पृथ्वी ने भगवान से रक्षा की गुहार लगाई, तब श्रीहरि ने वासुदेव और देवकी के पुत्र रूप में जन्म लेने का संकल्प किया। कारागार की चारदीवारी में अंधकारमयी आधी रात, तेज बारिश, गगनभेदी गड़गड़ाहट और प्रकृति की मौन साक्षी के बीच, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में, मथुरा के कारागार में श्रीकृष्ण का दिव्य अवतरण हुआ। भगवान श्री कृष्ण का अवतरण भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को हुआ था इसलिए हर साल इसी तिथि पर प्रभु का अवतरण दिवस श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। 

 

भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाएं (Shri Krishna bal Leelas)

जन्म लेते ही भगवान ने अपने पिता वासुदेव से कहा कि उन्हें गोकुल ले जाया जाए, जहाँ वे नंद बाबा और यशोदा मैया के लाड़ले बनें। गोकुल की गलियों में नटखट कान्हा की बाल लीलाएं आज भी भक्तों के हृदय में जीवित हैं। जिनमें माखन चुराना, गोपियों संग रास रचाना, कालिया नाग पर नृत्य, यशोदा के साथ बाल-हठ, और गोवर्धन पूजा जैसे प्रसंग जनमानस में अमिट छाप छोड़ते हैं।

 

उनकी एक-एक लीला में आध्यात्मिक रहस्य छिपे हैं। माखन चोरी केवल बालमन की चंचलता नहीं, बल्कि भक्त के हृदय रूपी माखन को चुराने का प्रतीक है। कालिया नाग का दमन अहंकार रूपी विष को नष्ट करने की प्रेरणा है। गोवर्धन धारण सामूहिक विश्वास और भक्ति की शक्ति का प्रतीक है।

 

कैसे मनाएं श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व ? (How to celebrate Shri Krishna Janmashtami festival)

इस दिन प्रातः काल उठते ही स्नान करें और भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद रात्रि के पूजन के लिए भगवान कृष्ण का झूला सुगंधित पुष्पों से सजाएं। इसके बाद मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का दूध, दही, घी, शहद, बूरा, पंचामृत एवं गंगाजल से अभिषेक करें, साथ ही नवीन सुंदर वस्त्र पहनाकर श्रृंगार करें। पूरे मन के साथ शंख घड़ियाल बजाते हुए भगवान की पूजा करें साथ ही मक्खन, मिश्री, पंजीरी का भोग अर्पित करें, अंत में आरती करके पूजन समाप्त करें और प्रणाम करके सुखी-समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मांगें। 

 

जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व (Spritiual Importance of Janmashtami)

भगवान श्री कृष्ण केवल एक अवतार नहीं, वह एक भाव हैं – प्रेम के, करुणा के, ज्ञान के और मोक्ष के। श्रीमद्भगवद्गीता, जो कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को दिया गया उपदेश है- आज भी मानवता के लिए जीवन का सर्वोत्तम मार्गदर्शन है। उसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, भक्ति और ज्ञान के समन्वय से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाया।

 

जन्माष्टमी कैसे मनाएं?

भारतवर्ष में जन्माष्टमी का उत्सव अत्यंत श्रद्धा, उल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हर मंदिर, हर गली, हर घर श्रीकृष्णमय हो जाता है। मथुरा, गोकुल, वृंदावन, द्वारका, और उज्जैन जैसे तीर्थों में तो इस पर्व की छटा अद्भुत होती है। ऐसे मनाएं जन्माष्टमी का पर्व-

 

  • व्रत और उपवास: श्रद्धालु दिनभर व्रत रखते हैं, फलाहार करते हैं और भगवान की कथाओं का श्रवण करते हैं।

 

  • झाँकियाँ और लीलाएं: श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित झाँकियाँ सजाई जाती हैं, जिनमें बाललीलाएं, रासलीला जैसे दृश्य जीवंत कर दिए जाते हैं।

 

  • दही-हांडी उत्सव: विशेष रूप से महाराष्ट्र में दही-हांडी की परंपरा है, जहाँ माखन चुराने की लीला को युवकों की टोली द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

 

  • अभिषेक: जैसे ही रात में  श्रीकृष्ण जन्म का समय होता है। मंदिरों में शंख, घंटियों और भजनों की गूंज के साथ बाल गोपाल का अभिषेक, श्रृंगार और झूला अर्पित किया जाता है।

 

  • कीर्तन और भजन: श्रीकृष्ण के गुणगान में भक्त पूरी रात भजन-कीर्तन करते हैं, नृत्य करते हैं और उनके नामस्मरण में लीन रहते हैं।

 

जब हम कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं, तो यह केवल घटना का स्मरण नहीं है, यह आत्मा के भीतर छुपे ‘कृष्ण तत्व’ को जाग्रत करने का समय है। जब हम श्रीकृष्ण के जीवन को आत्मसात करते हैं, तभी वह वास्तव में हमारे जीवन में अवतार लेते हैं।

 

तो आइए, इस जन्माष्टमी पर हम भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में शीश नवाएं और कहें –

 

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् !

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