03 April 2024

इसलिए धरती पर भगवान विष्णु ने लिया था कूर्म अवतार

कूर्म अवतार को भगवान विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है। इस अवतार का उल्लेख सनातन धर्म के कई ग्रंथों में मिलता है। ज्यादातर ग्रंथों में कहा गया है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तब भगवान विष्णु ने कछुए का रूप लेकर अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को संभाला था। इस अवतार के लिए ज्यादातर ग्रंथों में माना जाता है कि कूर्म से मानव जीवन की शुरुआत हुई है। 

 

समुद्र मंथन के लिए लिया था भगवान विष्णु ने कूर्म का अवतार 

देवराज इन्द्र का शौर्य बहुत ज्यादा था। जिसे देखकर ऋषि दुर्वासा नें उन्हें परिजात पुष्प की माला भेंट की। परंतु इन्द्र ने उस माला को ग्रहण नहीं किया और उन्होंने माला को अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया। लेकिन ऐरावत ने भी उस पुष्प हार को धारण करने के बजाय जमीन पर फेंक दिया। यह देखकर ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर देवताओं को श्राप दे दिया। उनके श्राप के तेज के कारण देवताओं ने अपनी शक्ति खो दी। इससे निराश होकर वो भगवान ब्रह्मा के पास मार्गदर्शन हेतु पहुंचे। 

सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास पहुंचकर पूरी कहानी बताई। इस पर ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी। इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंच गए। भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि सभी मिलकर क्षीर सागर का मंथन करें। जिससे उन्हें कई रत्न मिलेंगे। रत्नों के साथ अमृत भी मिलेगा, जिसे पीने से देवताओं की खोई हुई शक्ति उन्हें वापस मिल जाएगी और सभी देवता सदैव के लिए अमर हो जाएंगे। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की बात मानकर समुद्र का मंथन करने की तैयारी करने लगे। तभी उन्हें एहसास हुआ कि समुद्र मंथन वो अकेले नहीं कर सकते हैं। इसलिए इस कार्य में राक्षसों का सहारा लेना भी जरूरी था। लेकिन देवता पहले इसके लिए तैयार नहीं थे। जिसके बाद भगवान विष्णु ने देवताओं को समझाया। इसके बाद असुर भी अमृत के लालच में समुद्र मंथन में भाग लेने के लिए तैयार हो गए। इस विशाल कार्य को करने के लिए मंदार पर्वत को मथनी के डंडे के रूप में प्रयोग किया गया जबकि नागराजवासुकी (नागराज शेषनाग के छोटे भाई) को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। 

देवता और असुर मिलकर समुद्र का मंथन करने लगे। मंदार पर्वत के एक ओर देवता थे तो वहीं दूसरी तरफ असुर थे। मंथन चल ही रहा था कि इस मंथन से सबसे पहले घातक विष निकला। जिससे सभी परेशान होने लगे। जब इस जहर से दुनिया पर खतरा आ गया तब भगवान शिव ने उस जहर का सेवन किया और उसे अपने कंठ पर रोक लिया। जिसके कारण उनका गला नीला पड़ गया। इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा गया। समुद्र का मंथन करते करते मंदार पर्वत डूबने लगा, तब भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लिया और अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को धारण कर लिया; उस कछुए के पीठ का व्यास एक लाख योजन था। इसके बाद समुद्र से कामधेनु प्रकट हुईं। साथ ही अमृत कलश लिए हुए भगवान धन्वतरि प्रकट हुए। यही अमृत बाद में देवताओं ने ग्रहण किया और सदैव के लिए अमरत्व प्राप्त किया। इस तरह से भगवान विष्णु का कूर्म अवतार हुआ।