सनातन परंपरा में बसंत पंचमी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना करते हैं और उनसे ज्ञान तथा अच्छे जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं। इस बार बसंत पंचमी का पर्व 14 फरवरी को मनाया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन देश के बहुत सारे गुरुकुलों में नए विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है और वैदिक शिक्षा के लिए उनका पाठ्यक्रम परांभ किया जाता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह पर्व आम तौर पर फरवरी माह में मनाया जाता है। बसंत पंचमी का यह त्यौहार प्राचीन काल से मनाया जा रहा है। पुराने समय में बसंत की शुरुआत को प्रकृति के कायाकल्प के रूप में मनाया जाता था। यह त्यौहार पूरी तरह से ज्ञान, बुद्धि और कला की देवी माँ सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित है। हिन्दू धर्म में देवी सरस्वती को ज्ञान और रचनात्मकता के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। इस दिन को शैक्षिक गतिविधियों और कलात्मक प्रयासों के लिए एक शुभ अवसर माना जाता है। भारत के ज्यादातर स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय और संस्थान इस दिन देवी सरस्वती का मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए विशेष प्रार्थनाएं और समारोह आयोजित करते हैं।
बसंत पंचमी के दिन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रीति रिवाजों का पालन किया जाता है। घरों और मंदिरों को पीले फूलों से सजाया जाता है, फूलों की यह सजावट बसंत की जीवंतता का प्रतीक है। इस दिन सभी छात्र और भक्त पीले रंग की पोशाक पहनते हैं और पूरे मन के साथ माँ सरस्वती की पूजा में भाग लेते हैं।
बसंत पंचमी धर्मिक त्यौहार के साथ-साथ एक सांस्कृतिक उत्सव भी है जो भारतीय परंपराओं की समृद्धता को प्रदर्शित करता है। इस दिन रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की भावना का जश्न मनाने के लिए शैक्षणिक सस्थानों में संगीत, नृत्य प्रदर्शन और कविता पाठ का आयोजन किया जाता है।
बसंत पंचमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर माँ सरस्वती का ध्यान करें। इसके बाद स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें। पीला रंग मां सरस्वती को बेहद प्रिय है। अब चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर मां सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। इसके बाद माँ सरस्वती को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें और पीले रंग का पुष्प, रोली, केसर, हल्दी, चंदन और अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद माँ सरस्वती की वंदना करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर आरती करें। अंत में पीली मिठाई का भोग लगाएं और लोगों को प्रसाद वितरित करें।