अंशुल सिंह | सफलता की कहानियाँ | निःशुल्क नारायण कृत्रिम अंग वितरण
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अंशुल को मिली नई जिंदगी

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सफलता की कहानी: अंशुल सिंह

 

(म.प्र ) ग्वालियर की भितरवार तहसील निवासी दीवान सिंह मांझी और हेमलता देवी पहली संताने के रूप में बेटे के होने से बेहद खुश थे। लेकिन यह खुशी कुछ ही पल में दुःख में तब तब्दील हो गई। जब बेटे अंशुल को पन्द्रह दिन बाद दाँए पांव में दवाईयों के दुष्प्रभाव के कारण गैंग्रीन हो गया। जिसके कारण उसका पैर काटवाना पड़ा। इससे परिजनों को काफी क्षति पंहुची।

एक दिन मित्र से उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क कृत्रिम अंग वितरण और सेवा प्रकल्पों की जानकारी मिली। तो माता-पिता बिना समय गंवाए अंशुल को संस्थान में ले आए। जहां उसका संस्थान डॉक्टर्स द्वारा निःशुल्क जांच कर पैर का माप लिया गया। करीब 2 दिन पश्चात् अंशुल को कृत्रिम अंग पहना कर चलने फिरने का अभ्यास करवाया गया। अब अंशुल अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है, चल-फिर सकता है और अन्य बच्चों के साथ खेल भी सकता है।

बच्चे को चलता-फिरता देखकर माता-पिता काफी खुश है। वे कहते हैं कि हमनें कभी नहीं सोचा था की अंशुल खड़ा हो चल पायेगा लेकिन संस्थान ने इस नेक कार्य को कर अंशुल को एक नई जिंदगी दी  हैं । हम संस्थान के सहदैव आभारी रहेंगे।

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