शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को कहा जाता है। यह एक प्रसिद्ध हिन्दू त्यौहार है। जिसे कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्योतिष में कहा गया है कि पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत झड़ता है। इसलिए इस दिन रात्रि में खुले आसमान के नीचे खीर से भरा हुआ पात्र रखने का विधान है।
सनातन धर्म में मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसलिए इस रात को सुख और समृद्धि प्रदान करने वाली रात माना जाता है। कहा जाता है कि इस रात में धन की देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और हर घर में आशीर्वाद प्रदान करने के लिए जाती हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा के अवसर पर घर की साफ सफाई करके माँ लक्ष्मी की विशेष आराधना की जाती है।
इस साल शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा की शुरुआत 6 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगी। साथ ही पूर्णिमा का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर होगा। ऐसे में शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखने के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करने तथा दीन-दु:खी, निर्धन लोगों को दान देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन खुले आसमान में खीर रखना बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणें चमत्कारिक गुणों से परिपूर्ण होती है।
नवविवाहिता महिलाओं द्वारा किये जाने वाले पूर्णिमा व्रत की शुरुआत शरद पूर्णिमा के त्यौहार से होती है तो यह बेहद शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा का व्रत रखने के साथ ही रात्रि जागरण करते हुए देवी लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से आर्थिक समस्याओं का अंत होता है और धन तथा वैभव की प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन उपवास रखें। स्नान करने के उपरांत चित्त को शांत रखें। इस दिन माँ लक्ष्मी की विधिपूर्वक की पूजा करें। सायंकाल में चन्द्रोदय के पश्चात घी के दीपक जलाएं। आसमान के नीचे रखी हुई खीर को माँ लक्ष्मी को अर्पित करें। साथ ही कुछ देर के लिए चंद्रमा की चाँदनी में बैठें। पूर्णिमा की रात में जब चंद्रमा की रोशनी अपने चरम पर होती है, इस दौरान चंद्रमा के दर्शन जरूर करें।
इस पर्व को मनाने के लिए की भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भगवान कृष्ण की स्तुति में नृत्य करते हैं। भक्ति गीतों और नृत्यों के माध्यम से रास लीला को मंदिरों और घरों में दोहराया जाता है।
सनातन परंपरा में दान देना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि दान ही मनुष्य के मोक्ष का मार्ग है। लोग मन की शांति, मनोकामना पूर्ति, पुण्य की प्राप्ति, ग्रह-दोषों के प्रभाव से मुक्ति और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दान करते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के बीच दान का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि, आपके द्वारा किए दान का लाभ केवल जीवन ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद भी मिलता है।
जब धर्मराज के समक्ष मनुष्य के कर्मों का आकलन किया जाता है तब उसका दान ही काम आता है। लेकिन दान का पुण्य फल आपको तभी प्राप्त होता है जब दान सही समय, सही तरीके और सच्चे मन से किया गया हो।
हिन्दू धर्म के कई ग्रंथों में दान करने और उससे प्राप्त होने वाले फल का विस्तार से उल्लेख मिलता है। कूर्म पुराण में कहा गया है-
स्वर्गायुर्भूतिकामेन तथा पापोपशान्तये।
मुमुक्षुणा च दातव्यं ब्राह्मणेभ्यस्तथाअवहम्।।
अर्थात् स्वर्ग, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य के अभिलाषी और पाप की शांति तथा मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति को ब्राह्मणों और पात्र व्यक्तियों को भरपूर दान करना चाहिए।