प्रभु श्रीराम की महिमा का वर्णन करना मानो सूर्य के प्रकाश का बखान करना है। उनकी कथा स्वयं में धर्म, भक्ति, करुणा और मर्यादा की अनुपम गाथा है। भारतीय संस्कृति में राम नवमी का विशेष स्थान है, क्योंकि यह दिन भगवान श्रीराम के अवतरण का शुभ अवसर है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जब सूर्यवंश में दशरथ नंदन राम का जन्म हुआ, तब सम्पूर्ण ब्रह्मांड में हर्षोल्लास की लहर दौड़ गई। इस दिव्य पर्व को भक्तगण अपार श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाते हैं।
इस वर्ष राम नवमी का पावन पर्व 6 अप्रैल को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 5 अप्रैल को शाम 7:26 बजे प्रारंभ होगी और 6 अप्रैल को शाम 7:22 बजे समाप्त होगी। इसी कारण, पंचांग के अनुसार राम नवमी 6 अप्रैल को मनाई जाएगी। देश भर के मंदिरों में भी इसी दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी।
राम नवमी सत्य की स्थापना का संदेश देने वाला पर्व है। श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ, जो स्वयं साकेतधाम कहलाता है। श्रीहरि ने दशरथ और कौशल्या के पुत्र के रूप में अवतार लेकर मानव मात्र को आदर्श जीवन का मार्ग दिखाया। शास्त्रों में वर्णित है कि जब पृथ्वी अधर्म और राक्षसी शक्तियों से पीड़ित हुई, तब भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लेकर इस धरा को पवित्र किया।
भगवान श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम‘ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने जीवनभर सत्य और धर्म की राह पर चलते हुए लोककल्याण का कार्य किया। एक पुत्र, एक राजा, एक पति, एक भाई और एक मित्र के रूप में उन्होंने जो आदर्श स्थापित किए, वे युगों-युगों तक अनुकरणीय रहेंगे। वनवास की कठिनाइयाँ हों या रावण के साथ महासंग्राम, हर परिस्थिति में उन्होंने धर्म और संयम का पालन किया।
वाल्मीकि रामायण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, अयोध्या के राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि वशिष्ठ के निर्देशानुसार उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ कुंड से प्राप्त खीर को तीनों रानियों – कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को वितरित किया गया, जिसके फलस्वरूप श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म होते ही अयोध्या नगरी आनंद और उत्सव से भर उठी।
राम नवमी के दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रीरामचरितमानस, रामायण पाठ, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ कर भगवान राम को भोग अर्पित किया जाता है। मंदिरों में श्रीराम की झाँकियाँ सजाई जाती हैं, जिनमें राम जन्म से लेकर राम राज्याभिषेक तक के दृश्य दिखाए जाते हैं। इस दिन कई स्थानों पर शोभा यात्राएँ भी निकाली जाती हैं। भक्तगण उपवास रखते हैं और भगवान राम का ध्यान कर अपने जीवन को पावन बनाते हैं।
भगवान श्रीराम की भक्ति जीवन में अनुशासन, मर्यादा और कर्तव्यपरायणता को स्थापित करने का साधन है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने ‘रामचरितमानस‘ में लिखा है—
रामहि केवल प्रेमु पियारा। जानि लेहु जो जान निहारा।।
अर्थात, भगवान राम को केवल प्रेम प्रिय है। जो प्रेम और भक्ति से उन्हें पुकारता है, वे उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं। यही कारण है कि श्रीराम आज भी करोड़ों भक्तों के हृदय में बसते हैं।
राम नवमी केवल भगवान राम के जन्म की खुशी ही नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को जीवन में अपनाने का भी अवसर है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सत्य, न्याय, करुणा और धर्म का पालन ही वास्तविक विजय है।
राम नवमी का पावन पर्व हर भक्त को श्रीराम के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व केवल भक्ति का नहीं, बल्कि आत्मपरिष्कार का भी अवसर है। जो भी श्रद्धा और प्रेम से श्रीराम का स्मरण करता है, उसे जीवन में सफलता, शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। अतः आइए, इस पावन अवसर पर हम श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारें और समाज में धर्म, सत्य और न्याय की स्थापना करें।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
जय श्रीराम!