30 September 2025

Govardhan Puja 2025: गोवर्धन पूजा कब है? जानें तिथि और पूजा विधि

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भारतवर्ष की गौरवशाली परंपरा में पांच दिवसीय दीपावली पर्व का चौथा दिन गोवर्धन पूजा अथवा अन्नकूट महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन प्रकृति, अन्न और पशुधन के प्रति हमारी गहरी कृतज्ञता का उत्सव है। जिस प्रकार दीपावली अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व है, उसी प्रकार गोवर्धन पूजा प्रकृति और पशुधन को समर्पित त्यौहार है।

 

गोवर्धन पूजा 2025 कब है?

साल 2025 में गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर को मनाई जाएगी। दीवापली के बाद प्रतिपदा तिथि का आरंभ 21 अक्टूबर को सायं 5 बजकर 54 मिनट पर होगा और प्रतिपदा तिथि का समापन 22 अक्टूबर शाम 8 बजकर 16 मिनट पर होगा। सनातन परंपरा में उदयातिथि का महत्व है और पूजा सुबह के समय होती है इसलिए पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06:30 बजे से 08:47 बजे तक रहेगा। इस दिन सभी भक्त गाय के गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाकर भगवान कृष्ण और गायों के साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। 

 

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह पर्व हमें प्रकृति, अन्न और गौ माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना सिखाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि सच्चा व्यक्ति वही है जो जीवों की रक्षा करे। इस दिन अन्नकूट महोत्सव मनाकर अन्न के महत्व को स्मरण किया जाता है और गौसेवा को धर्म का अंग माना जाता है। गोवर्धन पूजा हमें यह भी सिखाती है कि अहंकार का नाश और विनम्रता का वास ही जीवन को सार्थक बनाता है। यह उत्सव पर्यावरण और समाज के प्रति जिम्मेदारी का संदेश भी है। गोवर्धन पूजा मानव और प्रकृति के अटूट संबंध का पावन प्रतीक है।

 

गोवर्धन पूजा पौराणिक कथा

वृंदावन में हर वर्ष ग्रामीणजन इंद्र देव की पूजा करते थे ताकि वर्षा समय पर हो और खेती अच्छी हो। किंतु बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि वर्षा का कारण इंद्र देव का अहंकार नहीं, बल्कि प्रकृति की देन है। जब ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा त्याग दी और गोवर्धन की पूजा करने लगे, तो इंद्र क्रोधित हो उठे। उन्होंने ब्रज पर मूसलधार वर्षा करवाई, जिससे पूरा गाँव डूबने की कगार पर पहुँच गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज को बचाया। सात दिनों तक ब्रजवासी पर्वत की शरण में रहे और देवराज इंद्र का घमंड चूर हुआ।

 

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा का मुख्य उद्देश्य है प्रकृति और अन्न के प्रति आभार प्रकट करना तथा भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना है। इस दिन पूजा करने के लिए निम्नलिखित चीजों का पालन करें- 

  • स्नान और शुद्धि: प्रातःकाल स्नान कर घर-आँगन की सफाई करें। घर को पूरी तरह से स्वच्छ करें।
  • गोवर्धन प्रतीक की स्थापना: आँगन या पूजा स्थल पर गोबर अथवा मिट्टी से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाएं। इसे रंगोली, पुष्प और दीपों से सजाएँ।
  • अन्नकूट और 56 भोग: इस दिन विभिन्न व्यंजन बनाकर, विशेषकर अन्नकूट (भात, मिठाइयाँ, सब्जियाँ, नमकीन, पूड़ी, खीर आदि), भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करें। 56 भोग का विधान भी इसी दिन का हिस्सा है।
  • गोपूजन: गाय और बछड़ों को स्नान कराएँ, फूलों से सजाएँ और गुड़-घास खिलाएँ और उनकी पूजा करें।
  • आरती और भोग वितरण: अंत में गोवर्धन पर्वत, श्रीकृष्ण और गौ माता की आरती करें। अर्पित भोग को प्रसाद रूप में सभी में वितरित करें।
  • गोवर्धन परिक्रमा: जहाँ संभव हो, गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना अत्यंत शुभ माना गया है। लाखों श्रद्धालु इस दिन ब्रजभूमि पहुँचकर गोवर्धन परिक्रमा करते हैं। 

 

इस दिन क्या न करें

  • किसी का अपमान, विवाद या तर्क-वितर्क न करें।
  • इस दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें। 
  • पूजा के समय काले या नीले रंग के वस्त्र धारण न करें। 
  • मुख्य द्वार या खिड़की लंबे समय तक बंद नहीं करें। 
  • मांस, मदिरा या अन्य तामसिक चीजों से दूर रहें। 
  • पेड़-पौधे न काटें क्योंकि यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का दिन है।
  • अन्न का अपव्यय न करें, क्योंकि यह दिन अन्नकूट और अन्न की महत्ता का प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा उत्सव के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि हमें प्रकृति को पूजना चाहिए क्योंकि यही हमें जीवन प्रदान करती है। पर्वत, नदियाँ और पशुधन का संरक्षण कर ही हम सच्चे अर्थों में ईश्वर की आराधना कर सकते हैं। इस गोवर्धन पूजा पर हम न केवल पारंपरिक रीति-रिवाज निभाएँ, बल्कि अन्न का सम्मान, गौसेवा और प्रकृति की रक्षा का संकल्प भी लें। यही इस पर्व का वास्तविक संदेश है और यही हमारी संस्कृति की सच्ची पहचान है।

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