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Narayan Seva Sansthan - पापांकुशा एकादशी

आपके द्वारा दिए गए दान से जरूरतमंद दिव्यांग बच्चों को भोजन कराया जाएगा

पापांकुशा एकादशी

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सनातन धर्म की परंपरा में एकादशी व्रतों का जो महत्व है, वह अवर्णनीय है। उन्हीं में से पापांकुशा एकादशी को पापों का नाश करने वाली, मोक्ष प्रदान करने वाली और भगवान श्रीहरि की विशेष कृपा दिलाने वाली तिथि माना गया है। यह पावन एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है।

पापांकुशा का अर्थ है—पापों का अंकुश अर्थात जो सभी पापों का विनाश करती है। इस एकादशी के व्रत और सेवा से साधक के समस्त जन्मों के पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से वह मोक्ष के पथ पर अग्रसर होता है।

 

पापांकुशा एकादशी का पौराणिक प्रसंग और महत्व

पद्म पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत के महत्व को बताते हुए कहा है कि पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को यज्ञ, व्रत, तप और तीर्थ स्नान के समान पुण्य प्राप्त होता है।

इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से व्रत, उपवास, दान और भक्ति करता है, उसके समस्त पाप भगवान विष्णु स्वयं नष्ट करते हैं और उसे श्रीहरि के परम धाम में स्थान प्राप्त होता है।

 

दान और सेवा का महत्व

पापांकुशा एकादशी का व्रत केवल उपवास या जप का ही नहीं, बल्कि सेवा और परोपकार का भी प्रतीक है। इस दिन दीन-हीन, असहाय, जरूरतमंदों, भूखों, दिव्यांगों और वृद्धजनों को अन्न और भोजन दान करने से शतगुणा पुण्य प्राप्त होता है। श्रीमद् भगवद्गीता में दान का उल्लेख करते हुए कहा गया है-

यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्॥

अर्थात, यज्ञ, दान और तपस्या – ये तीनों कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं, बल्कि इन्हें अवश्य करना चाहिए क्योंकि ये मनीषियों को पवित्र करते हैं।

पापांकुशा एकादशी पर दान और सेवा का पुण्य

इस पावन तिथि पर नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग, अनाथ और जरूरतमंद बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें।

पापांकुशा एकादशी

एकादशी पर भोजन कराने के सेवा प्रकल्प में सहयोग करें

आपके द्वारा दिए गए दान से जरूरतमंद दिव्यांग बच्चों को भोजन कराया जाएगा


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