ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यकारी और सेवा-दान के लिए विशेष शुभ माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से तप, साधना, पितृ तर्पण और समाज सेवा के लिए आदर्श अवसर प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान, ब्राह्मणों को अन्न-वस्त्र दान तथा जरूरतमंदों की सेवा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है।
ज्येष्ठ मास का यह अंतिम दिन ‘वट सावित्री व्रत‘ और ‘वट पूर्णिमा‘ के रूप में भी कई स्थानों पर श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है, जो दीर्घायु, संतान सुख और वैवाहिक जीवन में समृद्धि प्रदान करता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन ईश्वर कृपा और पितृ तर्पण का अद्भुत संगम है। इस दिन किए गए दान, तप और सेवा कार्य कई गुना पुण्य फल प्रदान करते हैं। यह दिन आत्मिक शांति, संतुलन और आनंद का अनुभव करने का सुअवसर है। ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखने से और सेवा भाव से किए गए कर्मों से जीवन के दोष दूर होते हैं तथा ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त होता है।
दान का महत्व पौराणिक दृष्टि से
पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है—
अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते।
जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते॥
अर्थात, जैसे भूमि पर डाला गया वटवृक्ष का छोटा सा बीज जल से बड़ा होता है, वैसे ही पुण्य वृक्ष भी सेवा और दान से पुष्ट और वटवृक्ष के समान विस्तृत होता है।
दीन-दुखियों और दिव्यांग बच्चों को भोजन कराकर बनें पुण्य के भागी
ज्येष्ठ पूर्णिमा के पावन अवसर पर जरूरतमंद, दिव्यांग और असहाय लोगों को भोजन कराना ईश्वर की कृपा पाने का श्रेष्ठ मार्ग है। नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग, अनाथ और दीन-हीन बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें।