सनातन धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष महत्व है, और उनमें से इंदिरा एकादशी पितृ उद्धार और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है। यह एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन व्रत और सेवा करने से पितरों को स्वर्ग प्राप्त होता है और साधक को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
इंदिरा एकादशी का व्रत करने से न केवल स्वयं के लिए पुण्य अर्जित होता है, बल्कि अपने पितरों के निमित्त किए गए कर्मों का फल उन्हें ऊर्ध्वलोक तक पहुंचाता है। यह तिथि विशेष रूप से श्राद्ध पक्ष में आती है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
इंदिरा एकादशी का पौराणिक प्रसंग और महत्व
पद्म पुराण के अनुसार सतयुग में महिष्मती नगरी के राजा इन्द्रसेन ने इंदिरा एकादशी का व्रत कर अपने पितरों को स्वर्गलोक में स्थान दिलाया था। एक बार राजा ने देखा कि उनके पिता यमलोक में पीड़ा भोग रहे थे। नारद मुनि के निर्देश पर उन्होंने इंदिरा एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उनके पिता स्वर्गलोक में चले गए और स्वयं राजा इन्द्रसेन भी मोक्ष के अधिकारी बने।
यह व्रत व्यक्ति के पूर्वजों की आत्मा को शांति देता है और साधक के जीवन से दरिद्रता, रोग, संकट और पापों का नाश करता है।
दान और सेवा का महत्व
इंदिरा एकादशी केवल व्रत और उपवास का ही नहीं, बल्कि दान, सेवा और श्रद्धा का विशेष दिवस है। इस दिन किया गया जल, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान जातक को असीम शांति देता है।
सनातन परंपरा में दान बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है-
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥
धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है।
इंदिरा एकादशी पर दान
इस पुण्य तिथि पर असहाय, दिव्यांग, जरूरतमंद और वृद्धजनों को भोजन, वस्त्र, औषधि, और शिक्षा का दान करना विशेष फलदायी होता है। नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें और अपने पितरों के निमित्त यह दिव्य पुण्य प्राप्त करें।