सनातन धर्म में एकादशी तिथियां पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का विशेष साधन मानी गई हैं। इन्हीं में से अजा एकादशी का स्थान अत्यंत पुण्यदायी और कल्याणकारी है। यह एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन व्रत, जप, तप और सेवा करने से जीवन के समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।
अजा एकादशी का पौराणिक प्रसंग और महत्व
पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, अजा एकादशी का व्रत करने से राजा हरिशचंद्र जैसे सत्यप्रिय और धर्मनिष्ठ पुरुष को भी अपने पापों से मुक्ति मिली थी। राजा हरिशचंद्र सत्य के मार्ग पर अडिग रहने के कारण अनेक दुखों और कष्टों में फंसे रहे। महर्षि गौतम के उपदेश से उन्होंने अजा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप नष्ट हो गए और उन्हें खोया हुआ राज्य, परिवार और सम्मान पुनः प्राप्त हुआ।
यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी है, जो जीवन के दुख, दरिद्रता और मानसिक क्लेश से त्रस्त हैं। अजा एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और मोक्ष का मार्ग खुलता है।
दान और सेवा का महत्व
अजा एकादशी का दिन केवल व्रत और उपवास तक ही सीमित नहीं है। इस दिन दान और सेवा का महत्व अत्यंत बढ़ जाता है। इस दिन किया गया दान करोड़ों यज्ञों और तीर्थों के स्नान के समान फलदायी होता है। शास्त्रों में भी कहा गया है—
दातव्यं भोक्तव्यं धर्म्यं च सदैव हि।
दत्तं हि सुकृतं लोके परं ब्रह्म न संशयः॥
अर्थात्, दान और सेवा जीवन का धर्म है। यह सुकृति (पुण्य) लोक और परलोक दोनों में कल्याणकारी है।
अजा एकादशी पर दान और सेवा का पुण्य
अजा एकादशी पर जरूरतमंद, दिव्यांग, असहाय और निर्धन लोगों को अन्न, वस्त्र, औषधि, शिक्षा और भोजन का दान करने से जीवन में पुण्य का भंडार भर जाता है। नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें और इस पावन तिथि का अक्षय पुण्य लाभ प्राप्त करें।