पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। हर एकादशी की तरह यह एकादशी भी भगवान विष्णु के लिए समर्पित है। कहा जाता है कि इस एकादशी के व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार की पौष पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी 2024 को पड़ रही है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से सभी कष्टों से निजात मिलती है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन उपवास रखने और दीन, दु:खी और निर्धन लोगों को दान देने से यज्ञ कराने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि
पौष पुत्रदा एकादशी पर इस जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन प्रातः काल जल्द उठें और स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर विधिपूर्वक पूजा करें। पूजा में जल, तुलसी दल, तिल, पीले फूल, पंचामृत आदि शामिल करें। दिन में भगवान विष्णु के नाम का जाप करें। इसके बाद संध्या काल में आरती करके फलाहार कर सकते हैं। व्रत का पारण अगले दिन करें।
संतान की कामना के लिए करें उपासना
यह एकादशी संतान प्राप्ति के लिए मनाई जाती है। इसलिए इस दिन पति-पत्नी दोनों को संयुक्त रूप से भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए और संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। भगवान की उपासना करने के बाद दीन-हीन, असहाय लोगों को श्रद्धानुसार दान दें और जगत के कल्याण के लिए प्रार्थना करें।
पौष पुत्रदा एकादशी पर दान का महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी पर दान का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के बाद दीन, दु:खी, दिव्यांगों को दान दें। दानवीरों को मुख्य तौर पर अन्न, भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा का दान करना चाहिए।
अन्न और भोजन : अन्न और भोजन का दान सभी दानों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन अन्न और भोजन का बड़ा महत्व है, इसलिए पौष पुत्रदा एकादशी के दिन अनाज, चावल, शक्कर, गुड और तेल का दान करना चाहिए। इसके साथ ही निर्धन बच्चों को सम्मानपूर्वक भोजन कराना चाहिए। ऐसा करने से धन लाभ होता है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है और दान करने वाले व्यक्ति के ऊपर मां अन्नपूर्णा की कृपा होती है।
वस्त्र दान : पौष पुत्रदा एकादशी पर वस्त्र दान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि ठंड के मौसम में एकादशी के दिन दीन-हीन, असहाय लोगों को कंबल और स्वेटर का दान करना चाहिए। ऐसा करने दानकर्ताओं को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शिक्षा दान : इस दिन जरुरतमंद बच्चों को शिक्षा से संबंधित सामग्री भी दान करना चाहिए। गरीब और निर्धन बच्चों को कॉपी, किताब, पेंसिल, पेन, स्कूली बैग इत्यादि वितरित करें। इसके अलावा अगर सक्षम हों तो एकादशी के पुण्य वाले दिन में किसी निर्धन बच्चे को शिक्षित करने के लिए उसकी जिम्मेदारी उठाने का संकल्प लें।
व्रत कथा
द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे भगवन! आप मुझे पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व के बारे में बताएं। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “पौष पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत करने से जीवन में सकारात्मक शक्ति का संचार होता है। साथ ही समस्त प्रकार के दुखों एवं संकटों का निवारण होता है।”
हे धर्मराज! भद्रावती नामक शहर में राजा सुकेतुमान राज करता था। वह एक कुशल शासक था, साथ ही बहुत बड़ा दानवीर था। अपने राजा के व्यवहार से प्रजा हमेशा प्रसन्न रहती थी। इस सब के बावजूद राजा परेशान रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा वन की ओर जा रहे थे। वन में भटकते-भटकते राजा एक ऋषि के पास जा पहुंचे। उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया। ऋषि ने अपनी शक्ति से राजा के दु:खी मन को भांप लिया। तब ऋषि ने राजा से दु:खी होने का कारण पूछा। तब राजा सुकेतुमान ने कहा, भगवान की कृपा से मेरे पास सब कुछ है। लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है। अगर मेरी कोई संतान न रही तो मेरे पूर्वजों का पिंडदान और तर्पण कौन करेगा?
ऋषि ने राजा को उपाय सुझाते हुए कहा, हे राजन! आप पौष माह के शुल्क पक्ष की एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करें। इस व्रत के पुण्य प्रताप से आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी। राजा ऋषि को प्रणाम करके वहां से चले गए। अपने महल में पहुंचकर राजा और उनकी धर्म पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। जिसके फलस्वरूप राजा सुकेतुमान को पुत्र रत्न की प्राप्त हुई।