इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है। जिसमें सभी लोग अपने दिवंगत परिजनों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनका तर्पण कर रहे हैं और भगवान से उनको मोक्ष प्रदान करने की प्रार्थना कर रहे हैं। इस दुनिया में ज्यादातर व्यक्ति अपने परिजनों के लिए मोक्ष की कामना करते हैं। कई बार देखा जाता है कि सनातन धर्म में मुक्ति और मोक्ष को एक ही मान लिया जाता है। किवदंतियों में कहा जाता है कि जो व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार मोक्ष एक ऐसी अवस्था है जिसे प्राप्त करते ही व्यक्ति दु:खों से मुक्त हो जाता है। लेकिनकई विद्वानों के अनुसार यह पूरी तरह से सही नहीं है। उनके अनुसार, मुक्ति और मोक्ष दोनों अलग-अलग हैं, आइए दोनों के बीच अंतर को जानते हैं।
मुक्ति :
इस मृत्युलोक में रह रहे किसी व्यक्ति की जब मृत्य हो जाती है तो उसके परिजनों द्वारा उसकी सद्गति के लिए श्राद्ध तर्पण किया जाता है। यह श्राद्ध कर्म घर पर, नदियों के तटों पर या बिहार स्थित गया जी में किया जाता है। कहा जाता है की कर्मों के अनुसार व्यक्ति को 84 लाख योनियों में जन्म लेना होता है। उसके बाद उसे मनुष्य का शरीर दोबारा प्राप्त होता है। इन योनियों में जन्म लेने से मुक्त होने को ही मुक्ति कहा जाता है। लेकिन इसे मोक्ष नहीं कहा जा सकता। मोक्ष इससे भी बढ़कर है।
मोक्ष :
मोक्ष का उल्लेख वेदों और पुराणों के साथ ही कई सनातन धर्मग्रंथों में किया जाता है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि मोक्ष प्राप्त करने के उपरांत व्यक्ति इस जीवन के चक्र से छुटकारा प्राप्त कर लेता है। उसे बार-बार इस संसार में नहीं आना पड़ता। वह भगवान के आधीन एक ऐसी जगह पर पहुंच जाता है जो दु:खों से परे है। लेकिन इस जीवन में मोक्ष मिलना आसान नहीं है। मोक्ष का अर्थ ही है खुद को प्राप्त कर लेना। खुद को प्राप्त कर लेने से मतलब है इस सांसारिक मायाजाल के समस्त बंधनों से मुक्ति।
मृत्यु के बाद नहीं होती मोक्ष की प्राप्ति :
लोगों के बीच यह आम धारणा है कि मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। व्यक्ति मृत्यु के बाद भी किसी अन्य योनि में फिर से जन्म लेकर इस संसार में विचरण करता रहता है। अगर आपने सच्चे मन से भगवान की उपासना की है तो आपके कष्टों का निवारण हो सकता है, लेकिन यह मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को खुद प्रयास करना होता है। खुद को प्राप्त करना होता है। भगवान इस कार्य में लोगों का सहयोग करते हैं। इसके अलावा यदि व्यक्ति के परिजन नि:स्वार्थ भाव से अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने के लिए मोक्षदायी नगरी गया जी में भगवान से प्रार्थना करते है तो भी व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
मोक्ष क्या है?
मोक्ष एक ऐसी दशा है जहां किसी भी चीज का आभाव नहीं रहता। मोक्ष की कल्पना स्वर्ग-नरक आदि की कल्पना से परे है। स्वर्ग की कल्पना में यह कहा जाता है कि मनुष्य अपने किए हुए पुण्यों का फल भोगने के उपरांत फिर इसी मृत्यलोक में आकर जन्म लेता है। जिससे वह फिर से सांसारिक मायाजाल में फंस जाएगा। लेकिन मोक्ष की कल्पना में यह नहीं है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि सभी प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही मोक्ष है।