शनि जयंती हिन्दू धर्म में न्याय और कर्म के देवता भगवान शनिदेव के प्राकट्य दिवस के रूप में अत्यंत श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जाती है। यह दिन आध्यात्मिक दृष्टि से तप, सेवा और आत्मनिरीक्षण के लिए सर्वोत्तम माना गया है। शनि देव को कर्मफलदाता कहा गया है। वे व्यक्ति के कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। अतः इस दिन पुण्य कर्म, विशेष रूप से स्नान, जप, ध्यान और दान, जीवन में आने वाले दोषों और संकटों से मुक्ति दिलाने में सहायक माने जाते हैं।
इस बार की शनि जयंती विशेष महत्व की है क्योंकि यह विकारी भावनाओं और सांसारिक अशांति से उबरने के लिए एक उपयुक्त अवसर लेकर आई है। यह दिन उन सभी साधकों के लिए कल्याणकारी है जो अपने जीवन से दुःख, दरिद्रता, रोग और बाधाओं को दूर करना चाहते हैं।
शनि जयंती का आध्यात्मिक महत्व
भगवान शनिदेव न्याय के प्रतीक हैं, परंतु वे अत्यंत दयालु और करुणामयी भी हैं। इस दिन विधिवत व्रत, पूजा-अर्चना और सेवा के माध्यम से उनकी कृपा सहज ही प्राप्त की जा सकती है। विशेष रूप से दीन-दुखियों, दिव्यांगों और असहायों की सेवा शनि जयंती पर महान पुण्य प्रदान करती है।
शास्त्रों में वर्णित है कि शनिदेव उस भक्त पर विशेष अनुग्रह करते हैं जो स्वार्थ रहित सेवा करता है और ईश्वर को समर्पित होकर दान करता है।
दान का शास्त्रीय महत्व
श्रीमद्भगवद्गीता में दान की सात्त्विक भावना का उल्लेख करते हुए कहा गया है-
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्॥
अर्थात जो दान केवल कर्तव्य समझकर, बिना किसी प्रतिफल की आशा किए, योग्य समय, स्थान और पात्र को श्रद्धापूर्वक दिया जाए — वही दान सात्त्विक कहा गया है।
शनि जयंती पर ऐसे सात्त्विक दान का फल अनेक गुना होता है। यह शनि दोष, पितृ दोष, ग्रहदोष तथा जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है।
दिव्यांग बच्चों और जरूरतमंदों को कराएं भोजन
यह दिन असहाय, दीन-दुखियों, दिव्यांगों और जरूरतमंदों को भोजन कराना ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। शनि जयंती के पावन अवसर पर नारायण सेवा संस्थान के दीन-हीन, असहाय, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने के सेवा प्रकल्प में सहयोग करके पुण्य के भागी बनें।