पौष पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और पुण्यकारी तिथि मानी जाती है। यह दिन विशेष रूप से स्नान, पूजा-अर्चना, दान, तप और सेवा कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना गया है। पौष माह की पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन चंद्र देव अपने पूर्ण तेज के साथ आकाश में विराजमान होते हैं और आध्यात्मिक ऊर्जा का विशेष संचार होता है। शास्त्रों के अनुसार, पौष पूर्णिमा पर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी की उपासना करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
इस दिन प्रातःकाल पवित्र नदियों में स्नान करने, सूर्यदेव को अर्घ्य देने और दीपदान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि पौष पूर्णिमा पर किया गया प्रत्येक शुभ कर्म अक्षय पुण्य प्रदान करता है और मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करता है।
पौष पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पौष पूर्णिमा के दिन गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र जल स्रोत में स्नान करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और अंतःकरण निर्मल होता है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा एवं उन्हें अर्घ्य देने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में कहा गया है कि पौष माह में किया गया दान और सेवा सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक फलदायी होता है। इस दिन भगवान विष्णु का स्मरण, जप और ध्यान करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और आत्मिक उन्नति का मार्ग खुलता है।
दान का महत्व
सनातन धर्म में दान को कलियुग का सबसे श्रेष्ठ साधन बताया गया है। विशेष रूप से पौष पूर्णिमा पर किया गया दान विशेष पुण्य प्रदान करता है। धर्मग्रंथों में दान की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा गया है-
तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते।
द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे॥
अर्थात् सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान ही मनुष्य के कल्याण का सर्वोत्तम साधन है।
दीन-दुखियों और दिव्यांग बच्चों को भोजन कराकर बनें पुण्य के भागी
पौष पूर्णिमा का दिन सेवा और मानवता के भाव को जाग्रत करने का श्रेष्ठ अवसर है। कहा जाता है कि इस पावन तिथि पर भूखे को भोजन कराने से भगवान विष्णु स्वयं प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त पर विशेष कृपा बरसाते हैं। पौष पूर्णिमा के पुण्यकारी अवसर पर दीन-दुखियों, असहायों और दिव्यांग बच्चों को भोजन कराएं और प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करें।