22 November 2023

इस दिन मनाई जाएगी देव दीपावली, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

देव दीपावली, जिसे “देवताओं की दिवाली” कहा जाता है, हिंदू कार्तिक महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह दिन आमतौर पर मुख्य दिवाली समारोह के 15 दिन बाद आता है। देव दीपावली का त्यौहार हिंदू पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व रखता है। यह त्यौहार हर साल गंगा नदी के तट पर स्थित पवित्र शहर वाराणसी में उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

देव दीपावली से जुड़ी कथा प्राचीन काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि इस दिन त्रिपुर राक्षस को भगवान शिव ने हराया था। इस राक्षस के वध के उपरांत देवताओं ने शाम को दीये जलाए थे। इसीलिए इसे देव दीपावली भी कहा जाता है। 

 

इस दिन मनाई जाएगी देव दीपावली

इस साल 26 नवंबर को देव दीपावली मनाई जाएगी। देव दीपावली का शुभ मुहूर्त दोपहर 3.53 मिनट से 27 नवंबर को दोपहर 2.45 मिनट तक रहेगा।

 

त्रिपुर राक्षस की कहानी 

एक बार त्रिपुर राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्षों तक पुण्य का कार्य किया। इस दौरान उसने कठोर तपस्या की। उसकी कठोर तपस्या से देवता भयभीत हो गए। इसलिए देवताओं ने उसकी तपस्या भंग करने के लिए तरह तरह के उपाय किए; लेकिन वो उसकी तपस्या भंग नहीं कर पाए। इसके बाद विधि के विधान के अनुसार, उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी राक्षस के सामने प्रकट हुए। उन्होंने उससे वरदान मांगने को कहा। इस पर त्रिपुर राक्षस ने कहा, हे प्रभु! आप मुझे ऐसा वरदान दें कि मेरी मृत्यु न किसी देवता और न ही मनुष्यों के द्वारा हो सके। इस पर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा और वो अंतर्ध्यान हो गए। 

इस वरदान के प्रभाव से त्रिपुर राक्षस शक्तिशाली हो गया और उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उससे जीव जंतुओं से लेकर मनुष्यों तक, हर कोई परेशान हो गया। उसने अपनी शक्ति के घमंड में कैलास पर्वत पर धावा बोल दिया। वहां उसने भगवान शिव को युद्ध के लिए ललकारा। जिसके बाद शिव जी और त्रिपुर राक्षस के बीच भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला। जब युद्ध का परिणाम निकलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा था तब महादेव की सहायता के लिए भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी पहुंचे। इसके बाद देवाधिदेव महादेव ने दोनों देवताओं की सहायता से त्रिपुर राक्षस का संहार किया और इस दुनिया को उसके भय से मुक्त कराया। जिस दिन भगवान ने राक्षस का वध किया था, उस दिन पूर्णिमा की तिथि थी। इसलिए इस दिन देवताओं द्वारा इस विजय के उपलक्ष्य में “देव दीपावली” मनाई जाती है। 

 

वाराणसी में मनाई जाती है देव दीपावली

देव दीपावली का त्यौहार आमतौर पर वाराणसी में मनाया जाता है। इसकी तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है, जिसमें गंगा के किनारे घाटों और मंदिरों की सफाई और सजावट की जाती है। इस भव्य दृश्य को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु वाराणसी में एकत्रित होते हैं। देव दीपावली के दौरान शहर रंगों, रोशनी और आध्यात्मिकता का एक जीवंत चित्रपट बन जाता है।

देव दिवाली के दिन, वाराणसी में गंगा नदी के घाट हजारों मिट्टी के दीयों से जीवंत हो उठते हैं। इन दीयों की रोशनी से गंगा के किनारे एक मनमोहक दृश्य पैदा होता है। भक्त विस्तृत अनुष्ठान करते हैं, जिसमें नदी में प्रार्थना और आरती शामिल है। वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है और भजनों और घंटियों की ध्वनि हवा में गूंज उठती है।

देव दीपावली की भव्यता वाराणसी में बेजोड़ होती है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न हिस्सों में भी छोटे पैमाने पर धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है और पूजा की जाती है। साथ ही अंधेरे पर प्रकाश की जीत के प्रतीक के रूप में दीये जलाए जाते हैं।

देव दीपावली सिर्फ देवताओं का उत्सव नहीं है; यह भक्तों के लिए आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक विकास का भी समय है। यह परमात्मा से जुड़ने, आशीर्वाद पाने और अपने जीवन में बुराई पर अच्छाई की विजय को प्रतिबिंबित करने का एक अवसर है। यह त्यौहार लोगों को अज्ञानता और नकारात्मकता के अंधेरे को दूर करके ज्ञान, करुणा और प्रेम की रोशनी अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।