उमा | सफलता की कहानियाँ | निःशुल्क नारायण कृत्रिम अंग वितरण

कृत्रिम पांव से पूरी हुई
उमा की उम्मीद

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सफलता की कहानी: उमा

कुदरत का खेल भी निराला है, जब दुःख देता है तो इतना की व्यक्ति पूरी तरह टूट जाता हैं, और सुख की बात करे तो खुशियों की बौछार भी बेशुमार करता हैं।
ऐसा ही कुछ हुआ शिरपुर (महाराष्ट्र) निवासी गोपाल-जाग्रति के साथ भी। वे बताते है कि तीन बेटियों के बीच बड़ी बेटी उमा पंवार 11 वर्षीय का जन्म  शारीरिक विकृति के साथ हुआ। बेटी के जन्म से ख़ुशी तो हुई लेकिन इससे दोगुना दुःख हुआ।  जन्मजात दांया पांव घुटने के निचे से बिना हड्डी के लौथड़ अथवा तिरछा मुड़ा हुआ हैं। यह देख माता-पिता एवं परिजनों के होश उड़ गए। परन्तु नियति के आगे कर भी क्या सकते थे। अपना बुरा नसीब मान बेटी की परवरिश में लग गए। उमा की बढ़ती उम्र उसके और परिजनों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं थी। उसको एक जगह से दूसरी जगह पर आने-जाने के लिए हमेशा एक जन को साथ ही रहना पड़ता था। औरों को देख उमा पीड़ा से रोती रहती थी।

नजदीकिय विद्यालय में दाखिला लेने पर स्कुल से नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क सेवा कार्यों की जानकारी मिली। तो माता-पिता एवं उमा को उम्मीद बंधी। गोपाल ऑटो चलाकर घर का गुजारा चलाते है,परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने से विधायक अमरिज पटेल ने उदयपुर का किराया दे संस्थान भेजा। यहां आने पर विशेष डॉक्टर्स द्वारा जांच कर 27 दिसम्बर 2020 में पांव का ऑपरेशन कर घुटने के निचे से पांव काटा गया । उपचार निरंतर चलता रहा। करीब 2 साल बाद 25 अगस्त 2023 को माप शिविर में पांव का माप लिया गया।

पुनः दूसरी बार शिरपुर में कृत्रिम अंग वितरण शिविर में 20 अक्टूबर में निःशुल्क कृत्रिम पांव तैयार कर पहनाया गया। पांव पहनते ही उमा के चेहरे पर रौनक आ गई।
परिजन बताते है कि उमा को कृत्रिम पांव पहन घर में इधर-उधर चलने के साथ दौड़ते हुए देख जो ख़ुशी संस्थान ने दी है उसे हम शब्दों में बया नहीं कर सकते। हृदय से आभार।