जन्मजात दिव्यांगता से
मुक्त हुई सुमित्रा !

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सुमित्रा को मिला नवजीवन

 

पहली संतान के रूप मे बेटी ने जन्म लिया पूरे परिवार में खुशीयों का माहौल था। लक्ष्मी रूप मानकर परिजनों एवं सगे-सम्बन्धीयों ने मीठाईयाँ बाट खुशीयाँ मनाई, परन्तु परिजनों की खुशीयाँ नियति को रास न आई, बेटी का जन्म तो हुआ परन्तु शारीरीक दिव्यांगता के साथ।

परिजनों को पता चला कि दोनों पांव एड़ी से ऊपर की ओर उठे हुए व कमजोर है तो सभी के दिल तिलमिला उठे¬¬। जो रंगीन सपने सजाए सब बिखर गए। यह दासता मध्य प्रदेश मंदसौर निवासी राकेश शर्मा के बेटी की हैं।

ड़ाॅक्टरों ने दिलासा देते हुए कहां की दुःखी मत हो सब ठीक हो जाएगा। ठीक होने की आस लिए बेटी की परवरिश में लग गए। बेटी का नाम सुमित्रा रखा। राकेश किराणे की दूकान कर घर का गुजारा चला रहे है। बेटी के कुछ बड़े होने पर माता-पिता ने आस-पास के अस्पतालों में बहुत उपचार करवाया परन्तु कहीं से भी ठीक होने के आसार नहीं दिखे। दिव्यांगता के साथ उम्र भी बढ़ने लगी, उपचार कि आस में सुमित्रा सात बरस कि हो गई, कहीं से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

इसी बीच उम्मीद की किरण बन दूकान पर बेठी बेटी को देख गाॅव के एक मित्र ने नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क पोलियो सुधार आॅपरेशन के बारे में जानकारी देते हुए संस्थान जाने की सलाह दी। यह सुन आस जगी। पहली बार सितम्बर माह में संस्थान आए। दो माह में दोनों पांवो के दो सफल आॅपरेशन और विजिंग कर सुमित्रा को अपने पैरो पर खड़ा कर दिया। नवम्बर माह में दोनों पांवो में विशेष कैलिपर्स तैयार कर पहनाए।

बेटी को दूसरे बच्चों कि तरह आराम से चलते-खेलते देख माता-पिता कि आंखांे से खुशी के आँसू छलक पडे़। संस्थान का आभार व्यक्त करते हुए बताते है कि यह उपकार हम जिन्दगीभर नहीं भूलेंगे।