छोटी सी फुंसी ने
छीने दोनों पांव

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संस्थान ने कृत्रिम पांव पहना खड़ा किया

 

एक छोटी सी फुंसी व जहरीले मच्छर के काटने से जिन्दगी इस कदर लाचार हो गई की एक जगह से दूसरी जगह जाने हेतू सोचकर ही जी तड़प उठता।

2016 में बांए और 2021 में दांए पांव में गैंग्रीन रोग के होने से दोनों पांव कटवाने पडे़। यह दुःख और दर्दभरी दासता बसहिया, महाराजगंज (उ.प्र) निवासी दिनेश निशाद (36) की है। ट्रक चलाकर अपने छः सदस्यीय परिवार का गुजारा करते हुए खुश थे कि एकाएक जिन्दगी की राह में रोड़ा खड़ा हो गया। वे अपने साथ पूरी घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं

कि 2016 में बांए पांव में एक छोटी फुंसी हुई जिसने धीरे-धीरे घाव का रूप लिया और पांव में सड़न हो गई। उपचार के दौरान बांया पांव कटवाना पड़ा। इलाज में पैसे भी बहुत खर्च हुए, काम-काज छूट गया । परिवार कि स्थिति खराब होते देख दिनेश ने एक साल बाद पुनः एक पांव के सहारे जिन्दगी शूरू कि क्योकि घर में कोई कमाने वाला नहीं था। धीरे – धीरे समय बीतता गया और 2021 में बरसाद के दिनों में काठमांडू की एक होटल पर रात रूके थे, वहां शाम काल बन दिनेश के जीवन में ऐसी आई कि वहां पर किसी जहरीले मच्छर ने दूसरे पांव पर काट लिया। इसके एक सप्ताह बाद पांव में जलन होने लगी तो गोरखपुर मेडिकल अस्पताल में दिखाया जहां से पता चला की पांव में जहर फैलने और गैंग्रीन रोग हो गया है, अगर तत्काल इस पांव को भी नहीं काटा गया तो मौत भी हो सकती हैं। डाॅक्टरो के अनुसार बचाव का एक मात्र विकल्प दूसरे पांव को भी काटना ही था। यह सुन परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। र कार दूसरा पांव भी कटवाना पड़ा। कुदरत की कूरता भी ऐसी की एक पांव तो पहले ही छीन लिया था, अब दूसरा पांव भी छीन घीसटने को मजबूर कर दिया। नौ साल से मौत से बत्तर जिन्दगी जी रहे दिनेश भगवान से अब मौत की भीख मांगने को मजबूर हो गए।

परिवार आर्थिक संकटों से जुझ रहा था कि इसी बीच कहीं से 30 सितम्बर को गोरखपुर में आयोजित नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क सेवा शिविर की मिली जानकारी से एक आस जागी। शिविर में दोनों पैरों का माप ले एक माह बाद 29 अक्टूम्बर को संस्थान का पुनः शिविर लगा जिसमें संस्थान ने विशेष कृत्रिम पांव तैयार कर फिट किए और चलने फिरने की ट्रेनिग दे न सिर्फ चलने लायक बनाया बल्कि दौड़ने और खेलने लायक बना दोनों पैरों पर कृत्रिम सहारे के खड़ा किया।

दिनेश बताते हैं कि संस्थान दिव्यांगों के लिए सोच बहुत अच्छा कार्य कर रही हंै। मैं पीछले नौ सालों से उठ नहीं पाता था संस्थान ने मुझे कृत्रिम पांव के सहारे उठा कर दोनों पांवो पर चलने लायक बना दिया संस्थान का बहुत धन्यवाद।