श्रावण मास… हिन्दू पंचांग का वह पुण्यकाल जब आकाश से अमृत बरसता है, धरती हरियाली से सजी होती है और भक्तों के हृदय में भगवान शिव की आराधना की अग्नि प्रज्वलित होती है। यह महीना केवल ऋतु परिवर्तन का संकेत नहीं, बल्कि आत्मा को ईश्वर की ओर मोड़ देने का वह मार्ग है, जिसमें भक्ति, व्रत, संयम और तप का संगम होता है। श्रद्धालु इस पूरे मास में भोलेनाथ की उपासना करते हैं, जलाभिषेक करते हैं। इस माह में ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष से धरती गुंजायमान रहती है।
शिव पुराण, स्कंद पुराण और अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में सावन माह का विशेष उल्लेख किया गया है। यह मास विशेषतः भगवान शिव को समर्पित है क्योंकिइसी कालखंड में समुद्र मंथन हुआ था और शिवजी ने विषपान कर सृष्टि को विनाश से बचाया था। इस कारण उन्हें ‘नीलकंठ’ नाम से भी जाना गया। उस विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने श्रावण मास में उन्हें गंगाजल अर्पित किया था। तब से यह परंपरा आरंभ हुई कि श्रावण में भक्तजन शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध, दही, शहद और गंगाजल चढ़ाकर भोलेनाथ की आराधना करते हैं।
भगवान शिव का स्वरूप ही इतना मोहक और अद्वितीय है कि उनके प्रति स्वतः ही श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। वे संहार के देवता हैं, परंतु उनके भीतर करुणा की अविरल धारा बहती है। जो भी सच्चे हृदय से उन्हें पुकारता है, वे उसके समीप आ जाते हैं। सावन मास में शिवालयों में उमड़ने वाली भीड़ इस बात की साक्षी है कि उनके प्रति भक्तों का प्रेम अद्भुत है.
श्रावण मास में अनेक भक्त सोमवार का व्रत रखते हैं। यह व्रत न केवल शिवजी को प्रसन्न करने का माध्यम है, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मानुशासन का भी प्रतीक है। व्रतधारी व्यक्ति दिनभर निर्जल या फलाहार रहकर भगवान शिव का ध्यान करता है, कथा सुनता है और रात्रि में दीप जलाकर शिव महिमा का गुणगान करता है। सोमवार व्रत की कथा, जो पार्वती जी के व्रत से जुड़ी है, यह बताती है कि कैसे शिवजी प्रसन्न होकर इच्छित वरदान प्रदान करते हैं।
सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाना सबसे प्रिय कार्यों में माना गया है। यह धरामणिक क्रिया के साथ ही एक आध्यात्मिक साधना है। जब कोई भक्त ‘ॐ नमः शिवाय’ के उच्चारण के साथ जल चढ़ाता है, तो वह अपनी सारी चिंताओं को शिवचरणों में समर्पित कर देता है। रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, शिव चालीसा, रुद्राष्टक का पाठ इस माह में विशेष फलदायी होता है।
श्रावण में उत्तर भारत में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्त्व है। लाखों कांवड़िए गंगाजल लेने हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, देवघर आदि स्थानों की यात्रा करते हैं और उसे पैदल लाकर अपने गांव या शहर के शिवालय में चढ़ाते हैं। यह एक भक्त के समर्पण, सेवा और तप का प्रतीक है।
सावन माह पुण्य कमाने का एक श्रेष्ठ अवसर है। इस मास में किया गया दान सौगुना फल देने वाला माना गया है। शिवपुराण एवं स्कंदपुराण में उल्लेख है कि श्रावण मास में अन्न दान से समस्त पापों का नाश होता है और शिवकृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि सावन में दिया गया दान सीधे शिव को अर्पित होता है। यह दान न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
सावन मास में नारायण सेवा संस्थान के दीन-हीन, असहाय दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने के सेवा प्रकल्प में सहयोग करें।
सावन वह अवसर है जब सृष्टि की सबसे सरल आराधना जिसे भगवान शिव की पूजा कहा जाता है, सबसे प्रभावी रूप लेती है। भोलेनाथ की महिमा अनंत है, और सावन उसका जीवंत उत्सव है। इस मास में की गई साधना जीवन को न केवल धार्मिकता से भर देती है, बल्कि अंतःकरण को भी शुद्ध करती है।
तो आइए, इस सावन में शिव नाम का संकीर्तन करें, सेवा करें, संयम रखें और जलाभिषेक के साथ अपनी श्रद्धा को शिव चरणों में समर्पित करें।
हर हर महादेव!