21 January 2024

पौष पूर्णिमा: धार्मिक मान्यताएं, दान का महत्व और व्रत कथा

पौष पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह हर साल पौष मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। इसलिए इसे “दान पूर्णिमा” भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन दीन-हीन, असहाय लोगों को दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मत्स्य पुराण में पूर्णिमा का उल्लेख करते हुए कहा गया है- 

 

पूर्णिमा तु सदा शुभं सर्वार्थसाधनं च ।

पूर्णिमा तु सदा शुभं सर्वपापनाशनं च ।।

 

अर्थात् पूर्णिमा हमेशा शुभ होती है और यह सभी कार्यों के लिए साधन है। पूर्णिमा सभी पापों का नाश करती है।

 

पौष माह की पूर्णिमा पर चंद्रमा पूर्ण आकार में होता है, इस रात में चंद्रमा की शीतलता देखते ही बनती है। इस दिन मुख्य तौर पर भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन विधिवत पूजा करने और जरूरतमंदों को दान देने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा पर अलग-अलग परंपराओं में अलग-अलग तरीके से पूजा की जाती है। 

 

धार्मिक मान्यताएं

पौष पूर्णिमा को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु का अवतार हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

 

पौष पूर्णिमा का महत्व

धार्मिक मान्यताओं में पौष पूर्णिमा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जो जातक पौष पूर्णिमा पर व्रत रखते हैं और माँ लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उनके घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।

 

पूर्णिमा पर दान का महत्व 

हिन्दू धर्म में पूर्णिमा पर दान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि दान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। दान से व्यक्ति का मन निर्मल होता है और उसे शांति मिलती है। दान का उल्लेख करते हुए श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-

 

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।

देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।

 

अर्थात् “दान देना मनुष्य का कर्तव्य है” ऐसे भाव से जो दान अनुपकारी को दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है।

दान कई प्रकार से दिया जाता है। लेकिन पौष पूर्णिमा पर दानवीर भामाशाहों को मुख्य तौर पर अन्न, भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा का दान करना चाहिए। 

भोजन और अन्न दान: हिन्दू धर्म में अन्न और भोजन दान को मुख्य तौर श्रेष्ठ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन दीन, दु:खी और असहाय लोगों को भोजन कराने का बड़ा महत्व है। पूर्णिमा के दिन निर्धन और दिव्यांग बच्चों को सम्मानपूर्वक भोजन कराना चाहिए। ऐसा करने से धन लाभ होता है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है। साथ ही भोजन कराने वाले दानवीर के ऊपर मां अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है।

वस्त्र दान: पौष पूर्णिमा पर वस्त्र दान का भी विशेष महत्व है। यह पूर्णिमा शरद ऋतु में आती है। इसलिए इस दिन गर्म वस्त्रों का दान करना चाहिए।  

शिक्षा दान: किसी बच्चे को शिक्षित करना या उसे कोई नया कौशल सिखाना सबसे अच्छा दान माना जाता है। इस दिन निर्धन बच्चों को कॉपी, किताब, पेंसिल, पेन, स्कूली बैग इत्यादि वितरित करना चाहिए। साथ ही यदि हो सके तो पूर्णिमा के पुण्यदायी अवसर पर  किसी निर्धन बच्चे को शिक्षित करने के लिए संकल्प लेना चाहिए। 

 

व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिका नामक नगरी में चंद्रहाश नामक राजा राज करता था। उसी नगर में धनेश्वर नामक ब्राम्हण अपनी पत्नी के साथ रहता था। घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी। परंतु उसे इस बात का बहुत दु:ख था कि उनकी कोई संतान नहीं है। एक बार गांव में एक योगी आया और उसने ब्राम्हण का घर छोड़कर आसपास के सभी घरों से भिक्षा ली और गंगा किनारे जाकर भोजन करने लगा। भिक्षा के अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी के पास पहुंचा और इसका कारण पूछा।

योगी ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि नि:संतान के घर की भीख पतितों के अन्न के समान होती है और जो पतितों के घर का अन्न खाता है वो भी पतित हो जाता है। पतित हो जाने के भय से वह उस ब्राह्मण के घर से भिक्षा नहीं लेता था। इसे सुन धनेश्वर बेहद दुखी हुआ और उसने योगी से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा।

उन्होंने बताया कि तुम मां चण्डी की अराधना करो, इसे सुन वह चण्डी की अराधना करने के लिए वन में चला गया और नियमित रूप से चण्डी की अराधना कर उपवास करने लगा। इससे प्रसन्न होकर मां चण्डी ने सोलहवें दिन ब्राह्मण को स्वप्न में दर्शन दिया और पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। उन्होंने कहा कि यदि तुम दोनों लगातार 32 पूर्णिमा व्रत करोगे तो तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी। इस प्रकार पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है।