30 December 2023

जानें कैसे हुई नया साल मनाने की शुरुआत, क्यों लिया जाता है संकल्प?

साल 2023 विदा ले रहा है और हम जल्द ही नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं। इस दौरान दुनिया भर में नए साल का स्वागत धूमधाम से किया जाएगा। हर साल की पहली तारीख को धरती पर रह रहे ज्यादातर लोगों द्वारा नया साल मनाया जाता है। इस दौरान लोग नृत्य और भोजन का आनंद लेते हैं साथ ही एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं। 

नया साल मनाने की शुरुआत मेसोपोटामिया की बेबिलोनियाई सभ्यता के लोगों ने की थी। नए साल को मनाने का इतिहास 5 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। बेबीलोन की सभ्यता में रहने वाले लोग इस उत्सव को 12 दिनों तक मनाते थे। इस दौरान लोग एक दूसरे से मिलते थे और बधाइयां देते थे। साल का पहला दिन ‘कर’ अदा करने के संकल्प का दिन भी माना जाता था। इस दिन लोग खुद से वादा करते थे कि वो जल्द ही अपने ‘कर’ का भुगतान कर देंगे और अपने सगे संबधियों के साथ मधुर संबंध रखेंगे। नए साल पर संकल्प लेने की परंपरा भी बहुत पुरानी है। चीनी लोग नए साल पर संकल्प लेने को अच्छे भाग्य का संकेत मानते हैं। यह प्रथा चीन में हजारों सालों से चली आ रही है। साथ ही रोम में रहने वाले लोग साल के पहले दिन भगवान की आराधना में विश्वास करते है। 

 

नया साल मनाने की शुरुआत

नया साल मनाने की शुरुआत करने में रोमन लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है। कहा जाता है कि 45 ईसा पूर्व रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का उपयोग होता था। तब उस कैलेंडर में 10 महीने होते थे। उस समय 8 दिनों का सप्ताह और 310 दिनों का साल माना जाता था। लेकिन बाद में खगोलविदों द्वारा इस गणना में बदलाव किए गए और जनवरी को कैलेंडर का पहला महीना माना गया। साथ ही 1 जनवरी को साल का पहला दिन माना गया। 1 जनवरी को साल का पहला दिन मनाने की शुरुआत सर्वप्रथम 1582 में हुई। 

 

रोमन शासक ने घोषित किया था 1 जनवरी को साल का पहला दिन

रोमन शासक जूलियस सीजर ने कैलेंडर में महत्वपूर्ण बदलाव करवाए। उसके अंतर्गत ही खगोलविदों ने 1 जनवरी को साल का पहला दिन माना था। साथ ही साल में 365 दिन घोषित किए गए थे। वर्ष में 310 दिन होने की सोच को जूलियस सीजर ने खत्म कर दिया और लोगों को बताया गया कि साल में 365 दिन होते हैं। 365 दिनों के आधार पर ही साल को 12 महीनों में विभक्त कर दिया गया था। 

जनवरी को ऐसे माना गया साल का पहला महीना

अगर इतिहास में देखा जाए तो 1582 के पहले नया साल का पहला महीना वसंत ऋतु के दौरान शुरू माना जाता था। लेकिन बाद में वसंत ऋतु के दौरान आने वाले माह मार्च का नाम रोमन देवता मार्स के नाम पर रख दिया गया। इन्हें रोमन साम्राज्य में युद्ध का देवता माना जाता था। जबकि जनवरी का नाम रोमन देवता जेनस के नाम पर रखा गया। जेनस को रोम के लोग पवित्र देवता मानते थे, इसलिए उनके नाम पर रखे गए महीने को साल का पहला माह माना गया। 

 

ग्रेगोरियन कैलेंडर का निर्माण

रोमन राजा जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर नए कैलेंडर का निर्माण करवाया। यह कैलेंडर जीसस क्राइस्ट के जन्म से 46 साल पहले ही बना लिया गया था। इस कैलेंडर का निर्माण तब के विख्यात खगोलविदों ने सूर्य की गणना के आधार पर किया था। ग्रेगोरियन कैलेंडर सूर्य चक्र पर आधारित है। इसलिए यह कैलंडर 365 दिन का है। जबकि चंद्र चक्र पर आधारित कैलेंडर 354 दिन का होता है। 

 

ऐसे अस्तित्व में आया लीप ईयर

जब ग्रेगोरियन कैलेंडर बनकर तैयार हो गया तब पोप ग्रेगरी ने राजा जूलियस सीजर को इसमें कमियां बताईं। इसके बाद खगोलविदों द्वारा उस कैलेंडर का एक बार फिर से गहन अध्ययन किया गया। जिसके बाद खगोलविदों ने बताया कि एक साल 365 दिन, 5 घंटे और 46 मिनट का होता है। इसी को आधार मानकर फिर से गणनाएं की गईं और हर चौथा साल लीप ईयर के रूप में सामने आया। जिसके आधार पर रोमन कैलेंडर की जगह ग्रेगरियन कैलेंडर का निर्माण हुआ। 

 

सबसे पहले यहां मनाया जाता है नया साल

दुनिया में सबसे पहले नया साल टोंगा के प्रशांत द्वीप में मनाया जाता है। भौगोलिक स्थिति की वजह से इस द्वीप पर सूर्य सबसे पहले उगता है। टोंगा का समय भारत के समय से लगभग 7 घंटा 30 मिनट आगे है। इसलिए भारत में नया साल लगभग  7 घंटा 30 मिनट बाद मनाया जाएगा।

अगर नव वर्ष की बात करें तो हर साल अलग-अलग धर्म और सभ्यताओं के आधार पर अलग-अलग नया साल मनाया जाता है। इन सब के बावजूद पूरी दुनिया में 1 जनवरी को एकसाथ नए साल का पहला दिन माना जाता है जनवरी से शुरू होने वाले साल को ही नव वर्ष माना जाता है।