23 March 2024

Holi 2024: 24 या 25 मार्च कब है होली? जानें सही तारीख, होलिका दहन पूजा विधि, कथा, फाग उत्सव और लट्ठमार होली 

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख भारतीय त्यौहार है। जो आम तौर पर फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है। होली को रंगों, स्वादिष्ट व्यंजनों तथा हंसीखुशी के त्यौहार के रूप में जाना जाता है। भारत का यह त्यौहार अब धीरेधीरे पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है। कुछ सालों पहले तक यह त्यौहार प्रमुख रूप से भारत और नेपाल में मनाया जाता था। 

इस त्यौहार के पहले दिन होलिका जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन के नाम से भी जाना जाता है। उसके अगले दिन विभिन्न प्रकार के रंगों और गुलाल से लोग होली खेलते हैं। इस दौरान बड़ेबच्चे, महिलाएं-पुरुष एक दूसरे को रंग लगाते हैं और इस भव्य उत्सव का आनंद उठाते हैं। होली के दिन एक दूसरे को रंगने और गानेबजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग एक दूसरे से मिलने के लिए घरों पर जाते हैं गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।

रागरंग के इस लोकप्रिय पर्व को वसंत का संदेशवाहक माना जाता है। इस त्यौहार के दौरान संगीत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग दिन भर फाग गाते हैं और उत्सव मनाते हैं। फाल्गुन माह में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को फाल्गुनी भी कहा जाता है।

 

इस दिन मनाई जाएगी होली

साल 2024 में फाल्गुन पूर्णिमा 24 और 25 मार्च में पड़ रही है। ऐसे में होली का यह त्यौहार 25 मार्च को मनाया जाएगा। जबकि होलिका दहन 24 मार्च को किया जाएगा। 

 

होली का इतिहास 

होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है। इतिहासकारों का मानना है कि हजारों साल पहले इस त्यौहार को भारतीय उपमहाद्वीप में आर्यों के द्वारा मनाया जाता था। होली का विस्तृत वर्णन सनातन धर्म के कई ग्रंथों में मिलता है। इनमें जैमिनी ऋषि द्वारा रचित पूर्व मीमांसासूत्र और कथा गार्ह्यसूत्र प्रमुख हैं। इसके अलावा नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों में भी होली का वर्णन मिलता है, जहां इस पर्व को रंग, गुलाल, संगीत और उत्सव का पर्व बताया गया है। 

 

श्री कृष्ण ने शुरू किया था फाग उत्सव 

होली के दौरान फाग उत्सव का शुभारंभ सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण ने किया था। होलिका दहन के बाद रंग उत्सव मनाने की शुरुआत भी भगवान कृष्ण ने ही की थी। भगवान कृष्ण ने राधा के साथ रंगों की होली खेली थी, उनकी इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रंग पंचमी मनाई जाती है। 

 

लट्ठमार होली 

भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा और आस पास के क्षेत्रों में कुछ दिनों पहले ही होली की शुरुआत हो जाती है। मथुरा, वृंदावन और बरसाना में होली के अनेकों रंग दिखाई देते हैं। यहां की होली को देखने के लिए देश विदेश लोग यहां पहुंचते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। 

लट्ठमार होली में महिलाएं मजाकिया अंदाज में पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं। इस होली में भाग लेने वाली महिलाओं को हुरियारिन तथा पुरुषों को हुरियारा कहा जाता है। लट्ठमार होली में पुरूषों और महिलाओं के बीच संगीत की प्रतियोगिता भी होती है।

 

होलिका दहन पूजा विधि

फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन करने की परंपरा है। इसके लिए लोग एक सप्ताह पहले से किसी विशेष जगह पर लकड़ियां और कंडे एकत्र करना शुरू कर देते हैं। इस सामग्री को ही होलिका दहन के रूप में जलाया जाता है। 

होलिका दहन करने के लिए सबसे पहले जलाऊ सामग्री को एक जगह इकट्ठा कर लें। इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। गाय के गोबर से होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं बनाएं। पूजा करने के लिए थाली में रोली, फूल, हल्दी, कच्चा सूत, बताशे, फल और एक कलश में पानी भरकर रखें। इसके बाद भगवान का ध्यान करके होलिका की पूजा करें और होलिका को अक्षत अर्पण करें। इसके बाद प्रह्लाद का नाम लेकर होलिका पर पुष्प अर्पित करें। अंत में कच्चा सूत लपेटते हुए होलिका की परिकमा करें। अंत में गुलाल डालकर जल अर्पित करें और होलिका में आग लगाएं। 

 

होलिका दहन कथा 

होलिका दहन की कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से सबसे ज्यादा प्रचिलित कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की है। हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था; जो खुद को ईश्वर से भी बड़ा मानता था। इसलिए उसने सभी को उसकी ही पूजा करने का आदेश दे डाला था। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं थी इसलिए उसने कई बार अपने पुत्र को भगवान विष्णु की आराधना करने से मना किया। उसके कई बार कहने के के बावजूद प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति बंद नहीं की।

जब हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से कह कहकर थक गया और पुत्र ने भगवान विष्णु की पूजा बंद नहीं की; तब उसने प्रह्लाद मारने की योजना बना ली। लेकिन हिरण्यकश्यप को इसमें भी निराशा ही हाथ लगी। बारबार प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से बच जाता। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसको अग्नि कभी जला नहीं सकेगी। हिरण्यकश्यप के कहे अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में बैठ गई। लेकिन जैसे ही उसने प्रह्लाद हो आग में मारने का प्रयत्न किया वैसे ही उसका वरदान निष्फल हो गया और उस अग्नि में होलिका जलकर खाक हो गई जबकि भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के सकुशल बच गया।

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

प्रश्न : साल 2024 में होली कब मनाई जाएगी?

उत्तर : इस साल होली 25 मार्च को मनाई जाएगी, जबकि होलिका दहन 24 मार्च को किया जाएगा। 

 

प्रश्न : होली के त्यौहार की कहानी किससे संबंधित है?

उत्तर : होली के त्यौहार की कहानी हिरण्यकश्यप, उसके बेटे प्रह्लाद और होलिका से संबंधित है। 

 

प्रश्न : प्रसिद्ध ‘लट्ठमार होलीकहां खेली जाती है?

उत्तर : प्रसिद्ध ‘लट्ठमार होलीउत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के बरसाना में खेली जाती है।