भाद्रपद पूर्णिमा हिंदू धर्म में विशेष रूप से पुण्यकारी, सेवा भाव और दान करने के लिए उत्तम दिन माना गया है। यह दिन आश्विन मास के आरंभ का संकेत देता है और पितृ तर्पण, स्नान, दान और समाज सेवा का अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कई गुना बढ़कर फल प्रदान करता है। भाद्रपद मास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय महीना माना गया है और इस पूर्णिमा पर श्रीहरि की पूजा तथा गरीबों, दिव्यांगों की सेवा से जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक संतुलन की प्राप्ति होती है।
भाद्रपद पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा का दिन आत्मिक शांति, मोक्ष प्राप्ति और पितृ दोष निवारण का भी उत्तम काल माना गया है। इस दिन किए गए सेवा और दान के कर्म जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाते हैं और ईश्वर कृपा प्राप्त होती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन किया गया स्नान, ब्राह्मण सेवा, पितृ तर्पण, दान और दिव्यांगों को भोजन कराने से सभी प्रकार के दुख और दरिद्रता दूर होती है तथा ईश्वर का अनुग्रह जीवन में बना रहता है।
दान का महत्व पौराणिक दृष्टि से
अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते।
जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते॥
अर्थात जैसे वट वृक्ष का छोटा बीज जल से सिंचित होकर विशाल वृक्ष बन जाता है, वैसे ही दान और सेवा के छोटे-छोटे प्रयास भी जीवन में पुण्य और सौभाग्य का वटवृक्ष बन जाते हैं।
दीन-दुखियों और दिव्यांग बच्चों को भोजन कराकर बनें पुण्य के भागी
भाद्रपद पूर्णिमा के पावन दिन दिव्यांग, असहाय, अनाथ और निर्धन बच्चों को भोजन कराना ईश्वर कृपा पाने का सबसे सरल और प्रभावशाली मार्ग है। नारायण सेवा संस्थान के दिव्यांग बच्चों को आजीवन भोजन (वर्ष में एक दिन) कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें और इस पुण्यकारी अवसर का लाभ उठाएं।