13 April 2024

जानिए, क्यों लेना पड़ा था भगवान विष्णु को वराह अवतार?

सनातन परंपरा में मुख्यतः भगवान विष्णु के दस अवतार माने जाते हैं उनमें से वराह अवतार तीसरा अवतार है। जब भी इस धरती में धर्म की हानि होती है तब भगवान अपने नए अवतार में इस पृथ्वी को बचाने के लिए अवतरित होते हैं। भगवान विष्णु पृथ्वी को राक्षस हिरण्याक्ष से बचाने के लिए तीसरी बार इस धरती पर अवतरित हुए थे। हिरण्याक्ष ने इस धरती को रसातल में छिपा दिया था।

 

वराह अवतार से जुड़ी पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, बैकुंठ धाम में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल थे। दोनों ने एक बार सनकादिक ऋषियों (सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार) को अंदर जाने से रोक दिया। इस पर सनकादिक ऋषि बेहद क्रोधित हो गए। उन्होंने द्वारपालों से कहा, “भगवान विष्णु के समीप रहने के कारण तुम लोगों में अहंकार आ गया है और अहंकारी का वास बैकुण्ठ में नहीं हो सकता।” उन्होंने दोनों द्वारापालों को श्राप दिया कि दोनों अब राक्षसों का जीवन जियो। इस श्राप के प्रभाव से दोनों दिति के पुत्र हुए, ये दोनों कालांतर में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के नाम से जाने गए।

दोनों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। उनके तप से सृष्टि के विधान के अनुरूप  ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप के आग्रह पर उसको वरदान दिया कि उसकी मृत्यु न दिन में होगी, न रात में, न घर के भीतर, न ही बाहर। साथ ही हिरण्याक्ष को वरदान मिला कि वह सदा अजेय रहेगा। ऐसा वरदान प्राप्त करते ही दोनों भाई धरती पर उत्पात मचाने लगे। जो भी पूजा पाठ और यज्ञ कर्म करता उनको हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष खूब प्रताड़ित करते थे। दोनों भाइयों ने इंद्रलोक पर विजय प्राप्त की। इंद्रलोक पर विजय पताका फहराने के बाद हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को भी अपने कब्जे में ले लिया। अपनी शाक्ति के अहंकार में उसने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया।

अपनी शक्ति के मद में चूर हिरण्याक्ष एक बार वरुण नगर में पहुंच गया। वहां उसने वरुण देव को युद्ध करने की चुनौती दे डाली। इस पर वरुण देव ने हिरण्याक्ष से कहा कि उनके भीतर अब युद्ध करने की कोई लालसा नहीं बची है। अगर उसे युद्ध करना ही है तो भगवान विष्णु से युद्ध करके उनसे अपना लोहा मनवा सकता है। हिरण्याक्ष राक्षस को वरुण देव की बात ठीक लगी। वह भगवान विष्णु से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा।

वरुण देव और हिरण्याक्ष राक्षस के बीच हुए वार्तालाप को देखकर सभी देवता चिंतित हो गए। सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास पहुंचकर हिरण्याक्ष से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। देवताओं की परेशानी को देखते हुए ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया और उनकी नासिका से भगवान विष्णु के वराह अवतार की उत्पत्ति हुई। इस तरह भगवान विष्णु के वराह अवतार ने जन्म लिया। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से धरती को बचाने की प्रार्थना की।

उधर हिरण्याक्ष राक्षस भगवान विष्णु को खोजते हुए देवर्षि नारद से मिला, उसने देवर्षि नारद से भगवान विष्णु का पता पूछा, ताकि वह उनको युद्ध के लिए ललकार सके। इस पर देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि भगवान विष्णु ने इस समय वराह अवतार धारण किया हुआ है और वो पृथ्वी को बचाने के लिए समुद्र में गए हुए हैं।

यह सुनकर हिरण्याक्ष तुरंत ही समुद्र की ओर चला गया। हिरण्याक्ष ने ही पृथ्वी को समुद्र में छिपा रखा था। हिरण्याक्ष जैसे ही समुद्र में पहुंचा तो उसने देखा कि भगवान विष्णु वराह अवतार में पृथ्वी को अपने साथ ले जा रहे है। यह देखते ही वह क्रोधित हो गया। इस बीच भगवान विष्णु और हिरण्याक्ष के बीच भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया और पृथ्वी को समुद्र से उठाकर उसके मूल स्थान पर रख दिया।

हिरण्याक्ष का वध करने के उपरांत ब्रह्मा जी सहित समस्त देवतागणों ने आकाश से पुष्पवर्षा करके भगवान विष्णु की स्तुति की।

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

प्रश्न: वराह का क्या अर्थ होता है?

उत्तर: वराह शब्द शूकर यानी सुअर के लिए प्रयुक्त होता है। पृथ्वी को हिरण्याक्ष के कहर से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी नासिका से वराह अवतार में जन्म लिया था।

प्रश्न: वराह अवतार भगवान विष्णु का कौन सा अवतार है?

उत्तर: वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है।

प्रश्न: भगवान विष्णु के वराह अवतार ने इस पृथ्वी को कैसे बचाया?

उत्तर: भगवान विष्णु के वराह अवतार ने इस पृथ्वी को अपने दातों में धारण करके उसके मूल स्थान पर स्थापित किया।