सनातन परंपरा में मुख्य तौर पर भगवान विष्णु के दस अवतार माने जाते हैं, उनमें से नरसिंह अवतार भगवान विष्णु का चौथा अवतार है। कहा जाता है कि जब यह धरती हिरण्यकश्यप नाम के असुर के आतंक से आतंकित हो गई थी तब भगवान विष्णु इस रूप में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध करके इस धरती को उसके भय से मुक्त कराया।
भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार
पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु के इस अवतार के बारे में विस्तार से बताया गया है। कहा जाता है कि सनकादिक ऋषियों के श्राप के कारण कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। जिनका नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष था। दोनों ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और दोनों से वरदान मांगने को कहा। इस पर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसे न कोई मनुष्य मार पाए न ही पशु, न ही वह घर के अंदर मृत्य को प्राप्त हो और न ही घर के बाहर, उसे न ही दिन में मारा जा सके और न ही रात्रि में। ब्रह्मा जी ने विधि के विधान के अनुसार उसे ये वरदान दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए। ब्रह्मा जी के इस वरदान ने हिरण्यकश्यप को अजेय बना दिया।
हिरण्यकश्यप के घर एक बच्चे जा जन्म हुआ, जिसका नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था और वह अपने प्रभु की आराधना में लीन रहता था। यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी क्योंकि वह भगवान विष्णु को अपना प्रतिद्वंदी मानता था और उसने हर जगह भगवान विष्णु की पूजा करने पर रोक लगा रखी थी। हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र को भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए मना किया, लेकिन प्रह्लाद ने उसकी बात नहीं मानी। जिसके बाद उसने अपनी बहन के साथ मिलकर उसको मारने का षड्यन्त्र रचा।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुंचाएगी। वह आग में नहीं जलेगी। इस पर हिरण्यकश्यप ने उसे इस बात के लिए मना लिया कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए। उसने ऐसा ही किया। वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठ गई। भगवान के प्रताप से अग्नि में भी प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ लेकिन उसकी बुआ होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई।
जब हिरण्यकश्यप प्रह्लाद से परेशान हो गया तब उसने प्रह्लाद को भगवान विष्णु के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए चुनौती दी। इस पर प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप से कहा कि भगवान विष्णु हर क्षण हर जगह विद्यमान हैं। यहां तक कि इस महल के स्तंभों में भी उपस्थित हैं। यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने महल के स्तंभ पर जोर से प्रहार किया। तो स्तंभ से भगवान विष्णु नरसिंह के भयानक रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने महल की दलहीज पर ले जाकर हिरण्यकश्यप का वध किया और उसके प्रकोप से इस संसार को मुक्त कराया। इस तरह से भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार अवतरित हुआ।
नरसिंह जयंती
हर साल नरसिंह भगवान के प्राकट्य दिवस को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। नरसिंह भगवान की यह जयंती वैशाख मास की चतुर्दशी को मनाई जाती है। जिसमें धर्मावलंबी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और भगवान की पूजा करते हैं, साथ ही उनसे सुखी और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: नरसिंह भगवान विष्णु का कौन से अवतार हैं?
उत्तर: नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं।
प्रश्न: नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध कहां किया था?
उत्तर: हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्य कहीं नहीं होगी। लेकिन उसे घर की दलहीज पर अमरता का वरदान प्राप्त नहीं था। इसलिए नरसिंह भगवान ने महल की दलहीज पर उसका वध किया था।