03 April 2024

सृष्टि और शास्त्रों के उद्धार के लिए मत्स्य के रूप में अवतरित हुए थे भगवान विष्णु, जानें मत्स्य अवतार की कथा

इस जगत में भगवान विष्णु को सृष्टि का संचालक माना जाता है। पुराणों में उनके दस अवतारों का वर्णन किया गया है, जिसमें से 9 अवतार अभी तक हो चुके हैं जबकि दसवां अवतार होना बाकी है। इन अवतारों में सबसे पहला अवतार मत्स्य का है। इस अवतार में भगवान पृथ्वी में तब अवतरित हुए जब धरती में प्रलय आने में कुछ ही समय बचा हुआ था। तब उन्होंने सृष्टि के उद्धार के लिए यह रूप धारण किया था। 

भगवान विष्णु के जिन भी अवतारों का शास्त्रों में वर्णन मिलता है उनमें कुछ न कुछ उद्देश्य अवश्य छिपा हुआ है। पौराणिक ग्रंथों में ऋषि एवं मुनियों द्वारा भगवान विष्णु के अवतारों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। जिसका भक्तों द्वारा आज भी श्रवण किया जाता है। आज हम भगवान विष्णु के प्रथम अवतार के बारे में जानेंगे कि कैसे उन्होंने इस संसार को प्रलय से बचाया। 

 

हयग्रीव की कथा 

इस सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा ने चारों वेदों की रचना की थी। एक बार ब्रह्मा जी निद्रामग्न थे। तभी हयग्रीव नामक दैत्य वेदों को चुराकर ले गया। जैस ही वेद हयग्रीव के पास पहुंचे, इस जगत में पाप और अधर्म छा गया।

 

इसलिए भगवान विष्णु ने धारण किया था मत्स्य रूप 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, धरती पर एक प्रतापी राजा हुआ करते थे, जिनका नाम सत्यव्रत था। एक बार वो कृतमाला नदी में स्नान करने के लिए पहुंचे। स्नान के उपरांत जब वो अपनी अंजली में जल भरकर सूर्य देव को अर्घ्य दे रहे थे तभी उनके हाथ में जल के साथ एक मछली आ गई।  सत्यव्रत ने मछली को गौर से देखा और उसे नदी के जल में पुनः छोड़ दिया। इस पर मछली ने राजा से कहा कि इस नदी में बड़े-बड़े जीव रहते हैं, वो मुझे खा जाएंगे। कृपया मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए। मछली की मीठी बातों से राजा का हृदय पसीज गया और राजा उस मछली को अपने कमंडल में रखकर घर ले आए। 

अगले दिन जब राजा सत्यव्रत सोकर उठे तब मछली का शरीर इतना बड़ा हो चुका था कि कमंडल भी छोटा पड़ने लगा। तब मछली ने कहा, हे राजन! मुझे इस कमंडल में रहने में कठिनाई हो रही है, यदि मेरे रहने के लिए कोई और स्थान हो तो खोजिए। तब राजा सत्यव्रत ने उस मछली को कमंडल से निकालकर बड़े मटके में रख दिया। एक रात और बीतने के बाद मटका भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा। ऐसा प्रतिदिन होने लगा और मछली का आकार इतना बढ़ गया कि उसे तालाब में डालना पड़ा। कुछ दिनों बाद वह तालाब भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा। तब राजा के आदेशानुसार उसे समुद्र में डाल दिया गया। इसके बाद कुछ दिन और बीते, उसके बाद राजा ने देखा कि उस मछली के लिए समुद्र भी छोटा पड़ गया। तब राजा सत्यव्रत हाथ जोड़कर मछली के सामने खड़े हो गए और उन्होंने उस मछली से पूछा कि आप कौन हैं?’ तब भगवान विष्णु ने अपना परिचय दिया और सत्यव्रत को बताया कि मैंने इस धरती में हयग्रीव नामक दैत्य का वध करने के लिए अवतार लिया है। हयग्रीव ने छल कपट से वेदों को चुरा लिया है, जिससे चारों तरफ अज्ञानता और अधर्म फैल गया है। भगवान विष्णु ने सत्यव्रत को बताया कि आज से ठीक 7 दिन बाद धरती पर प्रलय आएगा जो बेहद भयानक और खतरनाक होगा। प्रलय में सम्पूर्ण पृथ्वी जल से मग्न हो जाएगी। इस संसार में जल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा। तब आपके पास एक नाव पहुंचेगी, उस नाव में आप सृष्टि सृजन के सभी बीज, जरूरी अनाज, औषधि के अलावा सप्त ऋषियों को लेकर उसमें सवार हो जाएं। जब आप यह कर लेंगे तब मैं एक बार फिर आपसे मिलूंगा। 

सत्यव्रत ने भगवान का आदेश स्वीकार कर लिया। जब सातवें दिन प्रलय आने लगा तब समुद्र का पानी सभी जगह फैलने लगा। सब कुछ जलमग्न होने लगा। तब राजा सत्यव्रत को एक नाव दिखी। भगवान के आदेश के अनुसार सत्यव्रत ने सभी जरूरी चीजों के साथ सप्तऋषियों को सम्मानपूर्वक नाव पर चढ़ाया। उस समय समुद्र का वेग इतना था कि पानी में नाव अपने आप चलने लगी। चारों तरफ धरती जलमग्न हो चुकी थी, पानी के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। इसी बीच सत्यव्रत को मत्स्य के रूप में भगवान विष्णु दिखे। इस बीच राजा सत्यव्रत और मत्स्य रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु के बीच संवाद हुआयह संवाद आज भी मतस्यपुराण के रूप में उपलब्ध है। भगवान विष्णु के दर्शन पाकर राजा सत्यव्रत और सप्तऋषि धन्य हो गए। जब प्रलय का प्रकोप समाप्त हुआ तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव का वध करके उससे सभी वेद वापस ले लिए और इस सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी को सौंप दिए। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य का रूप धारण करके इस सृष्टि तथा वेदों को नष्ट होने से बचाया, साथ ही इस जगत के प्राणियों का कल्याण किया।