17 March 2024

आमलकी एकादशी 2024 : जानें आमलकी एकादशी महत्व, एवं पूजा विधि

आमलकी एकादशी 2024 

सनातन धर्म में आमलकी एकादशी बेहद शुभ मानी जाती है। यह तिथि फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन पड़ती है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना के लिए समर्पित है। कहा जाता है कि आमलकी एकादशी के पुण्यकारी अवसर पर भगवान नारायण की पूजा करने से उपासक को मनचाहा वरदान मिलता है। साथ ही घर में सुख समृद्धि आती है।

 

आमलकी एकादशी का महत्व

आमलकी एकादशी के व्रत को शास्त्रों में अत्यधिक शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सौभाग्य, समृद्धि और खुशी की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से सभी प्रकार के पाप धुल जाते हैं और पूजा करने वाले को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का भी महत्व है। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु को आंवले के फल चढ़ाने से अच्छे स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो लोग जीवन में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं उन्हें आमलकी एकादशी की व्रत जरूर रखना चाहिए।

 

सनातन परंपरा के धार्मिक ग्रंथों में आमलकी एकादशी पर आंवले का महिमा का वर्णन किया गया है-

फाल्गुने मासि शुक्लायां एकादश्यां जनार्दन:।

वसत्यामलकीवृक्षे लक्ष्म्या सह जगत्पति:।।

 

तत्र संपूज्य देवेशं शक्त्या कुर्यात् प्रदक्षिणां।

उपोष्य विधिवत् कल्पं विष्णुलोके महीयते।।

 

अर्थात् आमलकी एकादशी वाले दिन स्वयं भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के साथ आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं। इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करने से भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं और उपासक को धन-दौलत में बढ़ोत्तरी का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

 

आमलकी एकादशी पर रखें इन चीजों का ध्यान

आमलकी एकादशी के शुभ अवसर पर भगवान विष्णु के भक्त दूसरे की निंदा, छल-कपट, लालच, द्वेष की भावनाओं से दूर रहें। इस दिन गहरे काले रंग के वस्त्र न पहने और चावल तथा भारी खाद्य पदार्थों के सेवन से परहेज करें। इस दिन रात्रि के समय भगवान विष्णु का भजन करें।

 

आमलकी एकादशी की पूजा विधि 

आमलकी एकादशी के दिन प्रातः काल में उठें और सबसे पहले स्नान करें। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें साथ ही सूर्यदेव को जल से अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष जाकर व्रत का संकल लें। इसके बाद अपने पूजा कक्ष को स्वच्छ करके एक वेदी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। भगवान को पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके बाद भगवान को चंदन लगाएं और पीले फूलों की माला अर्पित करें। विधि विधान से पूजा करें। पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं, जिसमें तुलसी के पत्ते अवश्य शामिल करें। अंत में भगवान नारायण की आरती करें। उन्हें साष्टांग प्रणाम करें और उनका ध्यान करें। अगले दिन सुबह पूजा-पाठ के बाद अपना व्रत खोलें।

 

आमलकी एकादशी पूजन मंत्र-

 

ॐ नारायणाय विद्महे। 

वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।