नागौर जिले के एक गरीब परिवार में सात भाई-बहिनों में सबसे बड़ी नर्बदा जब मात्र दो साल की थी, एक दिन बुखार आया पालियो का दंश देकर चला गया।
खेतीहार गरीब पिता पन्नालाल व माता सरजु देवी परिवार का भरण-पोषण भी छोटी सी काश्त से बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे कि पावों से नाकाम बेटी की स्थिति को देख भविष्य की चिंता मे डूब गए। उम्र के साथ नर्बदा की परेशानियां बढ़ती गईं। दोनों पांव पंजे से पीछे की तरफ मुड़े हुए व एक पांव मोटा होने से शरीर एक तरफ झूका हुआ रहता, 3 किलोमीटर दूर स्कूल आने -जाने में बड़ी परेशनी का सामना करना पड़ता था। कर्ज लेकर बच्ची का हर सम्भव उपचार करवाने की कोशिश की लेकिन स्थिति में कुछ सुधार नहीं हुआ। आॅपरेशन ही एक मात्र विकल्प था। गरीबी के चलते आॅपरेशन का भारी भरकम खर्च उठाने में परिवार असमर्थ था। दिव्यांगता से जूझते-जूझते नर्बदा अठारह बरस की हो गई। इसी बीच उम्मीद कि किरण बन एक रिश्तेदार ने नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क पोलियो आपरेशन एवं कृत्रिम अंग वितरण की जानकारी दी। माता-पिता नर्बदा को 2019 मेें संस्थान ले आए। उपचार तीन साल तक चला। ड़ाॅक्टरों ने दोनों पैरो के बारी-बारी से आॅपरेशन कर नर्बदा को कैलिपर के सहारे खड़ा किया। माता-पिता बताते है की हम जहां भी गए वहां से निराशा ही हाथ लगी, बेटी के चलने कि आस छोड़ चूके थे । मगर संस्थान ने बेटी को न सिफ पैरो पर खंड़ा किया बल्कि रोजगार से जोड़ने के लिए 3 माह का निःशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण दे उसे आत्मनिर्भरता की राह पर भी बढ़ाया बनाया। अब कम्प्यूटर में अपना कॅरियर बना वह अपनी अलग पहचान बनाने की ओर अग्रसर है।