21 August 2025

इन फूलों के बिना अधूरी है श्राद्ध पूजा, पितृ तर्पण में जरूर करें शामिल

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सनातन धर्म की महान परंपरा में श्राद्ध पक्ष को अत्यंत पावन और पुण्यकारी माना गया है। यह कालखंड प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अमावस्या तक चलता है, जिसे पितृ पक्ष या महालय पक्ष भी कहा जाता है। यह समय अपनी जड़ों और अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और स्मरण का सजीव प्रतीक है।

 

शास्त्रों में कहा गया है-

ऋणानुबंधेन पुत्रोत्पत्ति:

अर्थात् प्रत्येक जीव का जन्म अपने पितरों से गहरे संबंधों और ऋणों के बंधन से होता है। इसीलिए श्राद्ध कर्म के द्वारा हम केवल पितरों की आत्मा की शांति ही नहीं करते, बल्कि अपने जीवन से उन ऋणों का भी कुछ अंश चुकाते हैं।

 

श्राद्ध में पुष्पों का विशेष स्थान

श्राद्ध कर्म में अन्न, जल, कुशा और तिल के साथ पुष्पों का भी विशेष महत्व है। पुष्प भावना और सात्विकता का प्रतीक होते हैं। हर पूजा में अलग-अलग फूलों का प्रयोग होता है, परंतु श्राद्ध के लिए कुछ विशेष पुष्पों का ही विधान है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि यदि तर्पण में उचित पुष्पों का प्रयोग न किया जाए तो श्राद्ध अधूरा माना जाता है। इसलिए इस पावन कर्म में पुष्पों का चयन अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

 

 काश के फूल

श्राद्ध कर्म में सबसे अधिक महत्व काश (कुशा) के फूलों का माना गया है। सफेद रंग के इस पुष्प के पीछे गहन आध्यात्मिक रहस्य छिपा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कुशा की उत्पत्ति भगवान विष्णु के रोम से हुई। इसीलिए कुश और उससे जुड़े पुष्प अत्यंत पवित्र और देवतुल्य माने जाते हैं। काश का फूल भी उसी सात्त्विक ऊर्जा का प्रतीक है। जब शरद ऋतु का आगमन होता है और धरती पर काश के सफेद पुष्प लहलहाने लगते हैं, तो इसे देवताओं और पितरों के आगमन का संकेत माना जाता है। काश के पुष्पों को श्राद्ध में अर्पित करने से माना जाता है कि पितर प्रसन्न होकर वंशजों को दीर्घायु, सुख-समृद्धि और संतति सुख का आशीर्वाद देते हैं।

 

अन्य पुष्प जिनका प्रयोग किया जा सकता है

यदि किसी कारणवश काश के फूल उपलब्ध न हों, तो शास्त्रों में कुछ विकल्प भी बताए गए हैं। इनमें मालती, जूही, चम्पा जैसे श्वेत पुष्पों का प्रयोग किया जा सकता है। इन फूलों की शांति और पवित्रता पितरों को प्रसन्न करती है। श्वेत पुष्प सात्विकता और शुद्ध भाव का प्रतीक हैं। श्राद्ध कर्म में इनका प्रयोग करने से पूजा पूर्ण मानी जाती है।

 

श्राद्ध में वर्जित पुष्प

जैसे कुछ पुष्प अनिवार्य माने गए हैं, वैसे ही कुछ पुष्पों का प्रयोग श्राद्ध कर्म में पूर्णतः वर्जित है। जिनमें कदम्ब, करवीर, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, तुलसी, भृंगराज तथा लाल और काले रंग के सभी पुष्पों को अर्पित करना निषिद्ध है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि इन पुष्पों की उग्र गंध और तामसिक प्रवृत्ति पितरों को अप्रसन्न कर देती है। ऐसे पुष्प अर्पित करने से पितर अन्न-जल ग्रहण नहीं करते और अतृप्त होकर लौट जाते हैं। इसका दुष्प्रभाव परिवार पर पड़ता है और जीवन में बाधाएँ बढ़ती हैं।

 

पुष्प और भाव का रहस्य

पुष्प मनुष्य की भावना और श्रद्धा का माध्यम हैं। जब हम पवित्र भाव से श्वेत काश के पुष्प पितरों को अर्पित करते हैं, तो वह हमारे मन की भक्ति और कृतज्ञता का वाहक बन जाता है। इसीलिए श्राद्ध कर्म में केवल पुष्प नहीं, बल्कि श्रद्धा ही मूल है। शास्त्रों ने भी कहा है –

 

श्रद्धया देयंअश्रद्धया अदेयं

अर्थात् बिना श्रद्धा के किया गया दान या अर्पण व्यर्थ है।

 

श्राद्ध और काश के पुष्प

काश के फूल केवल श्राद्ध कर्म की पूर्णता का साधन नहीं, बल्कि पितरों और वंशजों के बीच एक आध्यात्मिक सेतु हैं। जब ये पुष्प तर्पण में अर्पित होते हैं, तो मानो श्वेत तरंगों की तरह पितरों तक हमारी भावना पहुँच जाती है। धरती पर लहलहाते काश के फूल जब श्राद्ध में प्रयोग होते हैं, तो वे पितरों के प्रति हमारी विनम्र प्रार्थना और आभार बन जाते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में इनके बिना श्राद्ध को अधूरा माना गया है।

श्राद्ध पक्ष अपने पितरों के प्रति प्रेम, आदर और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिव्य अवसर है। इस कालखंड में किया गया तर्पण और अर्पण न केवल पितरों को शांति प्रदान करता है, बल्कि वंशजों के जीवन में भी मंगलकारी प्रभाव डालता है। काश के पुष्पों का प्रयोग इस कर्मकांड का अनिवार्य अंग है, क्योंकि ये पवित्रता, सात्विकता और पितरों की कृपा का प्रतीक हैं। साथ ही, जिन पुष्पों को वर्जित बताया गया है, उनका प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए।

इस श्राद्ध पक्ष में हम सभी अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव से पुष्प अर्पित करें और उनसे यह प्रार्थना करें कि वे सदा हमारे जीवन को अपने आशीर्वाद से आलोकित करते रहें।

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