28 November 2025

इस दिन से लगने जा रहा है खरमास 2025, इन बातों का रखें ध्यान

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हिंदू धर्म में समय का प्रत्येक क्षण ईश्वर की देन माना गया है। वर्ष के बारह महीनों में से कुछ काल विशेष रूप से पुण्यदायक माने जाते हैं, तो कुछ अवधि को शास्त्रों में वर्जनाओं और संयम का समय बताया गया है। इन्हीं में से एक काल है खरमास। जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।

यद्यपि इसे आमजन मांगलिक कार्यों के निषेध का समय मानते हैं, किंतु शास्त्रों में इसके पीछे एक अत्यंत गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य विद्यमान है। यह वह महीना है, जो हमें बाहरी जगत से हटाकर भीतर के प्रभु से जोड़ता है; सांसारिक उत्सवों से दूर कर आत्मा के उत्सव में प्रवेश कराता है।

 

खरमास का आरंभ और महत्व

खरमास तब लगता है जब सूर्य देव धनु या मीन राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवधि में सूर्य अपनी उत्तम गति में नहीं माने जाते, इसी कारण इसे अस्थिरता का काल कहा गया है। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से यह अस्थिरता हमारे भीतर की वृत्तियों को संयमित करने का आह्वान करती है।

धर्मग्रंथों में कहा गया है कि इस समय भगवान विष्णु स्वयं तपस्वी रूप धारण करते हैं और साधकों से भी उपवास, जप, ध्यान और सत्कर्मों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। खरमास हमें स्मरण कराता है कि जीवन केवल उत्सवों, शोभा और भोगों का नाम नहीं है; वरन् आंतरिक शांति, आत्मसाधना और ईश्वर-स्मरण ही मनुष्य जन्म का सर्वोच्च उद्देश्य है।

 

कब से शुरू हो रहा है खरमास 

इस साल सूर्य देव 16 दिसम्बर को मीन राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। इसलिए इसी दिन से खरमास की शुरुआत मानी जाएगी। साथ ही खरमास का समापन 14 जनवरी को मकर संक्रांति की शुरुआत से होगा।

 

खरमास की पौराणिक कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव सात घोड़ों से संचालित रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड का चक्कर लगाते हैं। इस निरंतर यात्रा के कारण, उनके घोड़े बहुत थक जाते हैं और प्यासे हो जाते हैं। सूर्य देव अपने घोड़ों की दयनीय स्थिति देखकर दुखी होते हैं। वे उन्हें एक तालाब के पास ले जाते हैं, लेकिन रथ को रोकना संभव नहीं होता। तब उन्हें तालाब के पास दो गधे (खर) दिखाई देते हैं। सूर्य देव अपने घोड़ों को आराम देने के लिए तालाब के पास छोड़ देते हैं और रथ में घोड़ों की जगह गधों को जोड़ देते हैं।

गधों की धीमी गति के कारण सूर्य देव का रथ भी धीमा हो जाता है। यह एक महीने की अवधि गधों द्वारा रथ खींचने की होती है, जिसे “खरमास” कहा जाता है। इस अवधि में सूर्य देव का तेज कमजोर हो जाता है। क्योंकि हिंदू धर्म में सूर्य को अति विशिष्ट माना जाता है, उनकी कमजोर स्थिति को अशुभ माना जाता है, इसीलिए इस दौरान मांगलिक और शुभ कार्यों पर रोक लगा दी जाती है। एक महीने बाद, घोड़े आराम कर चुके होते हैं और सूर्य देव फिर से गधों को छोड़कर घोड़ों को रथ में जोड़ लेते हैं। इसके बाद सूर्य देव फिर से तेज गति से यात्रा करते हैं और मकर संक्रांति के बाद शुभ कार्य शुरू होते हैं। 

 

खरमास में क्या करें?

यह महीना धर्म, संयम और साधना का माह है। इसलिए इस अवधि में किए गए सत्कर्मों का अत्यधिक पुण्य मिलता है। कुछ श्रेष्ठ आचरण जो इस काल में विशेष रूप से अनुकरणीय हैं…

  • हर दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘श्री हरि विष्णु’ नाम का जप अत्यंत फलदायी माना गया है।
  • श्रीमद् भागवत महापुराण तथा श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ आत्मा को पवित्र करता है।
  • सप्ताह में एक दिन अथवा मास में कुछ निश्चित तिथियों पर उपवास करने से मन स्थिर होता है और देवकृपा बढ़ती है।
  • गरीब, असहाय, वृद्ध और पशु-पक्षियों के प्रति करुणा इस महीने में विशेष पुण्यप्रद मानी जाती है।
  • मांस-मद्य, क्रोध, दिखावा, अपशब्द और अन्य पाप कर्मों से दूर रहकर पवित्र जीवन अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।

 

खरमास में क्या न करें?

यह अवधि संयम का काल है, इसलिए इस काल में इन चीजों को करने की मनाही है-

  • विवाह, गृह-प्रवेश, नामकरण, यज्ञोपवीत आदि संस्कार न करें। 
  • अनावश्यक खर्च, भोग-विलास, आडंबर और यात्रा से बचा जाए।
  • क्रोध, विवाद, झूठ और छल जैसी नकारात्मक वृत्तियों के चंगुल में न फँसें।

 

सूर्य देव को जल अर्पित करने का तरीका

  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें, यदि पास में नदी या तालाब है तो वहाँ स्नान कर सकते हैं। 
  • एक तांबे का लोटा लें। उसमें स्वच्छ जल भरकर उसमें लाल पुष्प डालें।
  • सूर्य देव को पूरे मन के साथ जल अर्पित करें। लोटे से जल अर्पित करते समय सूर्य देव के मंत्र का जप करें।
  • जल अर्पित करने के उपरांत सूर्य देव को प्रणाम करें। 

 

इन चीजों के दान से आएगी समृद्धि

खरमास में दान पुण्य का विशेष महत्व है। इसलिए इस महीने में दीन-हीन, असहाय, निर्धन लोगों को दान देना बेहद फलदायी माना जाता है। भोजन दान, मूंग-मसूर की दाल, गुड़ व लाल चंदन का दान करने से साधक को विशेष लाभ होता है। भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके जीवन से सभी तरह की बाधाएं दूर होती हैं। खरमास पर नारायण सेवा संस्थान के भोजन दान सेवा प्रकल्प से जुड़कर पुण्य लाभ प्राप्त करें। 

 

खरमास बाहरी शुभ कार्यों के रुकने का समय अवश्य है, परन्तु भीतरी शुभता के जागरण का सबसे उत्तम अवसर भी है। यह काल हमें प्रभु के निकट ले जाता है, आत्मा को निर्मल बनाता है और जीवन में नई शक्ति का संचार करता है। जब यह महीना समाप्त होता है, तो मनुष्य केवल नए कार्यों के लिए ही तैयार नहीं होता, बल्कि एक नई चेतना, नई ऊर्जा और नवसंकल्प के साथ आगे बढ़ता है। जो भक्त इस अवधि में श्रद्धा, तप, उपासना, दान-पुण्य और सेवा में रत रहता है, वह जीवन में हरि-कृपा, सद्बुद्धि और आंतरिक शांति का अमृत अवश्य प्राप्त करता है।

 

खरमास 2025 : अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

 

1. खरमास क्या है?

खरमास हिंदू पंचांग में एक अशुभ महीना माना जाता है, जो तब शुरू होता है जब सूर्य देव धनु या मीन राशि (देवगुरु बृहस्पति की राशियों) में प्रवेश करते हैं। इस दौरान सूर्य का तेज कम हो जाता है और शुभ कार्यों में बाधा आती है।

2. साल 2025-26 में खरमास कब-कब लग रहा है?

  • पहला खरमास: 14 मार्च 2025 से 13 अप्रैल 2025 तक (मीन राशि में)
  • दूसरा खरमास: 16 दिसंबर 2025 से 14 जनवरी 2026 तक (धनु राशि में, मकर संक्रांति पर समाप्त)

3. खरमास में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?

इस दौरान शादी-विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, नामकरण, नया व्यवसाय शुरू करना, नया घर या वाहन खरीदना जैसे सभी मांगलिक एवं शुभ कार्य वर्जित होते हैं।

4. खरमास में क्या करना शुभ होता है?

यह समय पूजा-पाठ, मंत्र जप, दान-पुण्य, गंगा स्नान, भागवत-रामायण पाठ, हनुमान चालीसा पढ़ने और भगवान सूर्य एवं विष्णु की उपासना के लिए बहुत उत्तम होता है। दान करने से विशेष फल मिलता है।

5. खरमास खत्म होने के बाद शुभ कार्य कब से शुरू होंगे?

दिसंबर वाला खरमास 14 जनवरी 2026 को मकर संक्रांति पर खत्म होगा, उसके अगले दिन से विवाह आदि शुभ मुहूर्त शुरू हो जाएंगे। मार्च वाला 14 अप्रैल 2025 (मेष संक्रांति) से खत्म होगा।

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