गरीबी सबसे विकराल समस्याओं में से एक है जिसका आज दुनिया सामना कर रही है। आज दुनिया में अरबों लोग ऐसे हैं जो पैसे की कमी के कारण अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। साल 2022 के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के अनुसार, दुनिया के 111 देशों में 120 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
लेकिन दूसरे स्तर पर यह भी देखा जा रहा है कि कई देशों ने गरीबी खत्म करने में प्रगति की है। लेकिन फिर भी वैश्विक स्तर पर गरीबी की समस्या को खत्म करने के लिए बहुत सारे प्रयास किए जाने बाकी हैं।
अगर भारत की गरीबी की तुलना दुनिया के अन्य देशों से की जाए तो भारत ने अपनी गरीबी के स्तर में सकारात्मक सुधार किया है। अगर 2022 में जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक की रिपोर्ट पर नजर डालें तो भारत लगभग 41.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में सफल रहा है।
गरीबी रेखा क्या है?
अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो गरीबी रेखा मौद्रिक आय की वह सीमा है जो किसी व्यक्ति को जीवन जीने की बुनियादी सुविधाओं को वहन करने के लिए होनी चाहिए। वैश्विक स्तर पर, जो भी व्यक्ति $2.15 (लगभग 180 रुपये) प्रति दिन के हिसाब से भी कम कमाता है वो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला माना जाता है। यह राशि विश्व बैंक द्वारा साल 2022 में जारी की गई थी।
कई देशों की आर्थिक स्थिति के आधार पर बुनियादी जरूरतों के हिसाब से गरीबी रेखा एक देश से दूसरे देश में भिन्न हो सकती है। भारत सरकार द्वारा देश में गरीबी रेखा की सीमा शहरी क्षेत्रों के लिए 1,286 रुपये प्रति माह और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 1,059.42 रुपये प्रति माह निर्धारित की गई है।
भारत में गरीबी
बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने देश में गरीबी को कम करने में काफी हद तक सफलता पाई है। अगर पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो देश का एमपीआई (बहुआयामी गरीबी सूचकांक) तेजी से गिरा है। भारत का एमपीआई साल 2005-2006 में 0.283 से घटकर 2015-2016 में 0.122 और 2019-2020 में 0.069 हो गया है। इन आंकड़ों से हमें ज्ञात होता है कि देश में गरीबी का प्रतिशत 2005-2006 में 55.1% से घटकर 2015-2016 में 27.7% और 2015-2016 में 16.4% हो गया है।
हालांकि, भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश के लिए 16.4% का आंकड़ा भी बेहद बड़ा है। यह प्रतिशत स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि देश में अब भी लगभग 22.99 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
एमपीआई (बहुआयामी गरीबी सूचकांक) से पता चलता है कि विकासशील देशों में गरीबों की सबसे बड़ी संख्या पाई जाती है। अगर गरीबों की संख्या की बात करें तो उप सहारा अफ्रीका में सबसे ज्यादा गरीब जनसंख्या रहती है जिसमें 57.9 करोड़ लोग शामिल हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा गरीबों के मामले में 38.5 करोड़ लोगों के साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्र का स्थान आता है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में, भारत वह देश है जहां सबसे अधिक गरीब आबादी रहती है।
अभी तक की एमपीआई (बहुआयामी गरीबी सूचकांक) रिपोर्ट में कोरोना महामारी के बाद के आंकड़ों को शामिल नहीं किया गया है। इसलिए इसकी संभावना है कि वास्तव में गरीब लोगों की संख्या आंकड़ों से ज्यादा हो सकती है। कोरोना महामारी का विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था और लोगों की आय पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।
इसलिए सरकार और अन्य लोगों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे समाज के इन कमजोर वर्गों की मदद करने का प्रयास करें। लेकिन हम उनकी मदद कैसे करें? इस बारे में जानने से पहले, आइए देश में लोगों के गरीबी रेखा से नीचे होने के कुछ कारणों पर गौर करें-
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बड़ी आबादी
142 करोड़ से भी ज्यादा आबादी के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है। भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या दर चिंता का विषय है। बड़ी जनसंख्या के कारण देश को अक्सर संसाधनों की कमी से जूझना पड़ता है। जिसके परिणामस्वरूप देश में बेरोजगारी और खराब स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं जैसी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जिसके पीछे प्रमुख कारण देश की अर्थव्यवस्था का जनसंख्या की वृद्धि दर के हिसाब से न बढ़ना है।
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अमीर और गरीब के बीच अंतर
भले ही भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन गरीबी देश में अभी भी एक बड़ा मुद्दा है जिससे यह राष्ट्र लगातार जूझ रहा है। इसका मुख्य कारण देश में अमीरों और गरीबों के बीच असमानता की खाई है।
विश्व असमानता डेटाबेस (डब्ल्यूआईडी) की 2021 की रिपोर्ट में भारत को ‘अत्यधिक असमानता वाले देशों’ की श्रेणी में रखा गया है। पुराने आंकड़ों में यह अनुमान लगाया गया था कि साल 2020 तक भारत के निचले आधे हिस्से की आय हिस्सेदारी देश की कुल आय में केवल 13% तक पहुंच पाएगी। देश के शीर्ष 10% लोगों ने देश की 57% आय पर कब्जा कर रखा है और देश के शीर्ष 1% अमीर लोगों की आय राष्ट्रीय आय का 22% है।
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पानी, उचित पोषण और स्वच्छता तक पहुंच का अभाव
विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर निगरानी रखने वाली संस्था एसओएफआई ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया है कि 2019-2021 के दौरान भारत में लगभग 56 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा से पीड़ित थे। यह संख्या दुनिया के कुल खाद्य असुरक्षित लोगों का 37% है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि इन लोगों में से 5 साल से कम उम्र के हर तीन में से एक बच्चा या तो बौना है या उसका वजन औसत से कम है।
आज के परिदृश्य की बात की जाए तो भोजन, पानी और स्वच्छता की कमी देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। यह कमी गरीब लोगों की उत्पादकता और स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और समाज में उनके उत्थान को रोकती है।
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शिक्षा की कमी
अगर पिछले कुछ सालों की बात करें तो भारत अपनी साक्षरता दर बढ़ाने में सफल रहा है। अगर वर्तमान में देश की साक्षरता दर की बात करें तो यह 77.7% से अधिक है। हालांकि इन आकड़ों से यह पता चलता है कि अब भी 5 में से एक व्यक्ति के पास शिक्षा की बुनियादी पहुंच का आभाव है। शिक्षा के आभाव का प्रभाव लोगों के ऊपर नकारात्मक रूप से पड़ता है। कम पढ़े लिखे या अनपढ़ लोग अक्सर कम आय वाली नौकरी करते हैं या कई बार तो ऐसा होता है कि उन्हें नौकरी करने का मौका ही नहीं मिलता। जिससे उनकी जीवनशैली प्रभावित होती है और उनके उत्थान में बाधा आती है।
बीते कुछ सालों में भारत सरकार ने ‘शिक्षा के अधिकार’ अधिनियम के तहत बच्चों की शिक्षा (6 से 14 वर्ष तक) को अनिवार्य करने जैसे कुछ सराहनीय प्रयास किए हैं। लेकिन इसके बावजूद स्कूलों में उपस्थिति की कमी, शिक्षा की कम गुणवत्ता, ड्रॉप आउट में वृद्धि आदि की समस्याएं हैं। जिनसे देश लगातार जूझ रह है। इन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
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बेरोजगारी
बेरोजगारी भारत में प्रमुख समस्याओं में एक है। जो कई लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर आने में सबसे बड़ी बाधा है। कोरोना महामारी के कारण पिछले कुछ सालों में बेरोजगारी की दर में तेजी से वृद्धि हुई है। इस दौरान कामगारों ने अपना काम खो दिया। जिससे उनके आय के स्रोतों पर विराम लग गया। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आगामी कुछ सालों में भारत की बेरोजगारी दर में बेतहासा वृद्धि हो सकती है।
ऐसा देखा जाता है कि बेरोजगारी दर में वृद्धि और नौकरी के अवसरों की कमी के कारण लोगों की आय में तेजी से गिरावट देखी जाती है। जिससे उन्हें जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
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प्राकृतिक आपदाएं और जलवायु परिवर्तन
देखा जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण कई लोगों का जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। अगर पिछले दो दशकों की बात करें तो भारत को केरल (2018), उत्तराखंड और कश्मीर (2013) में बाढ़ से लेकर सुनामी (2004) और गुजरात भूकंप (2001) तक विभिन्न प्रकार की त्रासदियों का सामना करना पड़ा है। विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है आगामी कुछ सालों में सूखे में 30% तक की वृद्धि हो सकती है। जिसके कारण पीने के पानी के और सिंचाई के लिए जल की कमी हो सकती है। इनके साथ ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के कारण भारत के कई तटीय शहर जैसे मुंबई, चेन्नई, कोच्चि आदि के 2100 तक जलमग्न होने का खतरा है।
ऐसी आपदाएं न केवल मृत्यु का कारण बन सकती हैं बल्कि आर्थिक विकास में भी बाधा डालती हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। भारत उन तीन देशों में शामिल है जिन्होंने हाल के वर्षों में ऐसी आपदाओं का सबसे अधिक प्रभाव झेला है। बीते वर्षों में देश में 100 करोड़ से ज्यादा लोगों का जीवन प्रभावित हुआ।
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सामाजिक संघर्ष
भारत की गरीबी में जाति व्यवस्था, अंध विश्वास, दहेज और विरासत कानून इत्यादि ने नकारात्मक रूप से योगदान दिया है। भारत के कुछ हिस्सों में अभी भी अस्पृश्यता जैसी प्रथाएं प्रचलित हैं, जहां पिछड़ी जातियों के लोग उत्पीड़ित हैं और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए बुनियादी सुविधाएं या अवसर भी प्राप्त करने में असमर्थ हैं। भले ही भारत धीरे-धीरे इस मानसिकता से आगे बढ़ रहा है; यहां तक कि भारत सरकार के द्वारा ऐसी प्रथाओं के खिलाफ नियम और कानून भी स्थापित किए हैं। लेकिन देश में ऐसी प्रथाओं को पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभी भी लोगों के बीच जागरूकता की आवश्यकता है।
देश से गरीबी को कैसे खत्म किया जा सकता है?
पिछले कुछ दशकों में भारत ने गरीबी दर कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसका श्रेय सरकार, दानदाताओं, दान समूहों और गैर सरकारी संगठनों आदि को जाता है। ये सभी गरीबों की मदद के लिए लगातार काम कर रहे हैं। अन्नपूर्णा, राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, बंधुआ मजदूरी को गैरकानूनी घोषित करना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम आदि जैसी सरकार की पहल और योजनाओं ने कई वंचित व्यक्तियों और परिवारों के उत्थान में मदद की है।
इसके अलावा, कई गैर सरकारी संगठनों और अन्य धर्मार्थ संगठनों ने उन परिवारों तक पहुंचकर उन्हें मदद उपलब्ध करवाई है जिन्हें सहायता की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। नारायण सेवा संस्थान जैसे गैर सरकारी संगठनों ने गरीब परिवार राशन योजना जैसे अपने अभियानों के माध्यम से उन हजारों आदिवासी और ग्रामीण परिवारों को राशन उपलब्ध कराने में मदद की है जो महामारी के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे।
एक व्यक्ति के तौर पर हम समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं। लेकिन कैसे?
यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं जिसके आधार पर कोई भी व्यक्ति वंचितों की मदद के लिए आगे आ सकता है।
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गैर सरकारी संगठनों और सरकारी राहत कोषों को दान देकर
दान सबसे आसान तरीकों में से एक है जिससे कोई भी गरीबों की मदद कर सकता है। आप जितना संभव हो सके किसी एनजीओ और राहत कोष में दान कर सकते हैं। आपका छोटा सा योगदान अंततः किसी के जीवन को बेहतर बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
इस प्रकार के दान का एक अन्य लाभ यह है कि अगर ये दान भारत सरकार के आयकर अधिनियम 80जी से प्रमाणित होते हैं तो उन पर सरकार के द्वारा कर छूट दी जाती है। दान देकर आप सरकार द्वारा कर में छूट प्राप्त कर सकते हैं।
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संसाधनों का दान देकर
भारत में आर्थिक दान के अलावा संसाधनों का दान भी काफी लोकप्रिय है। ऐसे कई गैर सरकारी संगठन हैं जो अन्न, किताबें, कपड़े आदि चीजों का दान स्वीकार करते हैं।
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एनजीओ में स्वयंसेवा करके
यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं जो व्यक्तिगत रूप से दूसरों की मदद करना चाहते हैं, तो स्वयंसेवा आपके लिए एक उत्तम विकल्प हो सकता है। देश में ऐसे कई गैर सरकारी संगठन हैं जो स्वयंसेवकों की सहायता चाहते हैं। ऐसे में आप लोगों की मदद करने के लिए धर्मार्थ संगठन या एनजीओ का चुनाव कर सकते हैं।
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दान संग्रह अभियानों को आयोजित करके
दान संग्रह अभियान एक बेहतरीन तरीका है जिससे वंचित लोगों की जल्द से जल्द मदद की जा सकती है। इसलिए दान संग्रह अभियान को आयोजित करना और उसमें भाग लेना गरीबों की मदद के लिए एक शानदार तरीका हो सकता है।
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गरीबी के संबंध में जागरूकता फैलाकर
लाखों भारतीयों के जीवन में सुधार न कर पाने का एक बड़ा कारण लोगों के बीच जागरूकता की कमी है। गरीब लोग अक्सर उन प्रावधानों और अवसरों से अनजान होते हैं जिनका उपयोग वे स्वयं के उत्थान के लिए कर सकते हैं। इसलिए, आप इन लोगों के बीच जागरूकता फैलाकर और उन अवसरों और योजनाओं के बारे में बारे में बता सकते हैं जो उनके जीवन को बेहतर बनाने में योगदान दे सकें। आपके द्वारा दी गई जानकारी का उपयोग वो स्वयं के उत्थान के लिए कर सकते हैं।
इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी आप लोगों के बीच जागरुकता फैला सकते हैं। साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से अन्य लोगों को गरीबों की मदद और दान के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर वंचित लोगों के डेटा, तथ्यों और कहानियों को साझा करके आप उन लोगों तक पहुंच सकते हैं जो गरीबों को मदद करने के लिए और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए तैयार हैं।
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वंचित बच्चों और वयस्कों को पढ़ाकर
आज की दुनिया में, बुनियादी शिक्षा सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो वंचितों को सशक्त बना सकती है। हालांकि कई बार देखा जाता है कि, जो गरीब लोग अपने जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें अक्सर सीखने और खुद को शिक्षित करने के सपनों को छोड़ना पड़ता है।
एक व्यक्ति के रूप में अपने खाली समय में आप उन्हें पढ़ाकर या नया कौशल सिखाकर उनकी मदद कर सकते हैं। आपके द्वारा प्रदान की गई बुनियादी शिक्षा उनके जीवन में बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
नारायण सेवा संस्थान
यदि आप गरीबों की मदद करने वाले किसी एनजीओ की तलाश में हैं, तो नारायण सेवा संस्थान आपके लिए एक शानदार विकल्प हो सकता है। 1985 में स्थापित यह संगठन दिव्यांगों और समाज के अन्य वंचित वर्गों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है। संस्थान की देश में 480 से अधिक शाखाएं हैं। भारत के अलावा, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, कनाडा, जापान, दक्षिण अफ्रीका, हांगकांग, यूके और यूएसए जैसे देशों में भी संस्थान की वैश्विक उपस्थिति है।
संस्थान के द्वारा गरीबों और वंचितों के उत्थान के लिए की जाने वाली कुछ सेवाएं-
- अपने अस्पतालों के माध्यम से दिव्यांगों और वंचित लोगों का नि:शुल्क उपचार और सुधारात्मक सर्जरी की सुविधा प्रदान करना।
- नारायण चिल्ड्रेन एकेडमी नामक अंग्रेजी माध्यम के सह-शिक्षा विद्यालय के माध्यम से वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
- दिव्यांगों और वंचित लोगों के लिए सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन करना।
- दिव्यांगों और वंचित लोगों के लिए कौशल विकास केंद्र में नि:शुल्क प्रशिक्षण और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना।
- भगवान महावीर निराश्रित बालगृह नामक अनाथालय के माध्यम से अनाथ बच्चों की देखभाल करना।