20 March 2023

चैत्र नवरात्रि । नवरात्रि पर्व की मान्यताएं एवं महत्त्व।

नवरात्रि क्या है?

पृथ्वी की सूर्य परिक्रमा काल में साल की 4 ऋतु संधियां होती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार इन सभी संधिकाल में नवरात्र मनाये जाते है जो नवरात्रि नाम से भी प्रसिद्ध है। नवरात्रि पर्व मनाने का विधान देवी भागवत तथा अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। नवरात्र यानी नौ रातों का समूह। ‘नवरात्र’ शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियों) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया था इसलिए सभी बड़े त्यौहार दीपावली, होलिका, नवरात्र और शिवरात्रि को रात में ही मनाने का विधान है। हिंदू पंचांग के 4 पवित्र माह चैत्र, आषाढ, अश्विन और माघ में नवरात्र आते है। इनमें चैत्र और अश्विन माह के नवरात्र सबसे प्रमुख माने जाते है। साथ ही चैत्र नवरात्र को बड़ी नवरात्रि या बसंत नवरात्रि और आश्विन नवरात्र को छोटी नवरात्रि या शारदीय नवरात्रि भी कहा जाता हैं। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से 9 दिन अर्थात नवमी तक बसंत नवरात्र होते है और इसके ठीक 6 महीने बाद आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से महानवमी अर्थात विजयादशमी के 1 दिन पूर्व तक शारदीय नवरात्र होते है। इसके अलावा आषाढ़ और माघ मास के नवरात्र गुप्त रहते है। और इनके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में भगवान शंकर व देवी शक्ति की उपासना की जाती है। 

 

नवरात्रि पर्व की मान्यताएं एवं महत्त्व।

पौराणिक कथाओं अनुसार भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती ने ही दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में अवतार लिया था और उन्हें ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामो से जाना जाता है। नवरात्रि का शुभ त्यौहार देवी माँ के सभी नौ रूपों की भक्ति को ही समर्पित है और ये समय मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए सबसे श्रेष्ठ समझा जाता है इसलिए भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए नवरात्रि के दिनों में विशेष पूजा पाठ और कन्या पूजन करते हैं। माना जाता है इन दिनों में देवी माँ स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है और नौ दिनो तक अपने भक्तों के बीच ही रहती हैं। 

साथ ही ऋतु संधियों के समय अक्सर रोगाणु आक्रमण की संभावना ज़्यादा होती है। इन संधिकाल में शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं इसलिए इस समय स्वस्थ रहने और तन-मन को शुद्ध रखने के साथ अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए नवरात्रि में कई विधि विधान किये जाते है और रूपक द्वारा हमारे शरीर को 9 मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसलिए शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारु रूप से क्रियाशील रखने के लिए 9 द्वारों की शुद्धि का पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है। इस विशेष काल में देवी माँ की आराधना के साथ सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर स्वस्थ रहता है, तन व मन को शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती हैं और शरीर में बुद्धि और उत्तम विचारों का आगमन होता है जिससे इंसान निरोगी होकर दीर्घ आयु और सुख प्राप्त करता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए 9 दिन 9 दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।

 

नवरात्रि पर कन्या पूजन होता है सबसे महत्वपूर्ण।

नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की अराधना के साथ कन्या पूजन का भी विधान है जिसका शास्त्रों में विशेष महत्व भी बताया गया है। कन्याओं को देवी मां का साक्षात स्वरूप माना गया है इसलिए कन्या पूजन के बिना नवरात्रि व्रत अधूरा माना जाता है। देवी पुराण के अनुसार देवी माँ व्रत,पूजा और हवन से कई अधिक प्रसन्न कन्या पूजन से होती है। कहा जाता है की नवरात्रि में कन्या एक तरह की अव्यक्त ऊर्जा का प्रतीक होती है और उनका पूजन करने से यह ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। इसलिए कन्या पूजन करने से देवी माँ की विशेष कृपा प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यतानुसार एक विशेष उम्र तक की कन्याओं का पूजन करना अधिक फलदायी माना गया है। इसलिए कन्या पूजन में 2 वर्ष की कन्या को कुंआरी, 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, 4 वर्ष की कन्या कल्याणी, 5 वर्ष की कन्या रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या कालिका, 7 वर्ष की कन्या चंडिका, 8 वर्ष की कन्या शाम्भवी, 9 वर्ष की कन्या दुर्गा और 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा के रूप में पूजा जाता है।

 

कैसे किया जाता है कन्या पूजन ?

कन्‍या पूजन करने के लिए 9 कन्याओं को घर पर भोजन का आमंत्रण दिया जाता है और उनके आगमन से पहले घर को साफ़ किया जाता है। कन्याओं के आगमन पर उनका स्वागत किया जाता है और उनके पैर धोकर उन्हें स्वच्छ आसन पर बिठाया जाता है। कन्याओं के साथ एक बालक को भी भोजन करवाया जाता है जिसे बटुक भैरव और लंगूरा के रूप में पूजा जाता है। देवी की सेवा के लिए भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ के साथ एक-एक भैरव को रखा हुआ है इसलिए कन्याओं के साथ बालक को पूजने का भी विधान है। इसके पश्चात् सभी की पूजा कर उन्हें भोजन परोसा जाता है। भोजन संपन्न होने के बाद  कन्‍याओं को उपहार भी दिया जाता है। उपहार स्वरुप श्रंगार सामग्री, खिलौने, फल आदि के साथ सामर्थ्य अनुसार धन भी दिया जाता है। और अंत में उनका आशीर्वाद लेकर विदा किया जाता है। कन्या पूजन से माता रानी प्रसन्न होकर भक्तों को मनोवांछित फल का आशीर्वाद देती है। 

चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर नारायण सेवा संस्थान 501 देवी स्वरुप दिव्यांग कन्याओं का निःशुल्क ऑपरेशन कर उनका कन्या पूजन करेगी और उनके जीवन को दिव्यांगता मुक्त करेगी।