Shradh Paksha 2025: पितृ पक्ष की तिथि, महत्व और पूजा विधि
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श्राद्ध कर्म क्या है?

 

इस भवसागर से मुक्त हो चुके पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में जो विधिपूर्वक श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, दान आदि किया जाता है उसे श्राद्ध कर्म कहा जाता है। जिसका उद्देश्य अपने पितृगणों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और स्मरण भाव प्रकट करना है। “श्राद्ध” शब्द स्वयं श्रद्धा से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है, सच्चे मन से, विश्वासपूर्वक और प्रेमपूर्वक किया गया कर्म।

 

शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य केवल इस देह से ही नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के संचित पुण्यों और संस्कारों से भी बंधा होता है। जिस देह, ज्ञान, संस्कार और जीवन का हमें वरदान मिला है, वह पितृऋण से अनुप्राणित है। श्राद्ध कर्म के माध्यम से जातक अपने इस पितृऋण का आंशिक निर्वहन करते हैं।

श्राद्ध तिथि तर्पण

पावन पितृ पक्ष में गया जी को शास्त्रों में पितरों की मुक्ति का सर्वोत्तम तीर्थ बताया गया है। नारायण सेवा संस्थान इसी पुण्यभूमि पर श्रद्धालुओं के लिए श्राद्ध तिथि तर्पण की व्यवस्था कर रहा है। वेद-पुराणों में वर्णन है कि श्राद्ध तिथि पर विधिपूर्वक तर्पण कराने से पितरों की आत्मा को शांति, तृप्ति और दिव्य लोक की प्राप्ति होती है।

तर्पण से संतुष्ट होकर पितर अपनी संतति को आशीर्वाद प्रदान करते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस पवित्र अवसर पर श्रद्धाभाव से अपने पितरों का श्राद्ध तिथि तर्पण करवाकर उन्हें जल, अन्न और तर्पण अर्पित करें।

ब्राह्मण एवं दीन - दु:खीजन भोजन

गया जी की पावन धरती पर श्राद्ध कर्म के अवसर पर ब्राह्मण एवं दीन-दुखियों का भोजन एक महान पुण्यकर्म माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि पवित्र मन से ब्राह्मणों को सत्कारपूर्वक भोजन कराना और दीन-दुखियों को अन्न दान देना, पितरों की आत्मा को तृप्त करता है।

यह श्रद्धा और धर्म की जीवंत अभिव्यक्ति है। गया जी में ब्राह्मणों और दीन-दु:खीजनों को तृप्तिदायक भोजन अर्पित कर, पितरों के मोक्ष की कामना करें।

भागवत मूल पाठ

पितृ पक्ष के पावन अवसर पर नारायण सेवा संस्थान गया जी की तपोभूमि पर सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत मूल पाठ का आयोजन करने जा रहा है। शास्त्रों में वर्णन है कि जो संतति अपने पितरों के उद्धार हेतु इस पुण्य कार्य में भाग लेती है, वे पितृ ऋण से मुक्त होकर ईश्वर की कृपा प्राप्त करती है।

श्रद्धाभाव से अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना हेतु श्रीमद् भागवत पाठ करवाएं और पुण्य लाभ प्राप्त करें।

श्राद्ध का सार

श्राद्ध पितृऋण से मुक्त होने और पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिव्य विधान है। श्राद्ध पक्ष के पवित्र पंद्रह दिन पितृलोक के द्वार खुलने का काल माने जाते हैं। इस अवधि में तर्पण, पिंडदान और अन्न-भोजन दान आदि के द्वारा पितरों को जल, अन्न और दक्षिणा अर्पित करने से वे संतुष्ट होकर संतानों को अखंड सुख, समृद्धि और आयु का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध का यह पावन समय आत्मा को धर्म, परंपरा और अध्यात्म से जोड़ने वाली पुण्य यात्रा है। इस कालखंड में लोग केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी वंशपरंपरा और समस्त पितरों के आशीर्वाद से जीवनयात्रा पूर्ण करते हैं।

पितरों की तृप्ति से खुलेगा मोक्ष का द्वार

नारायण सेवा संस्थान श्रद्धालुओं को इस श्राद्ध पक्ष पर गया जी में आयोजित श्राद्ध तिथि तर्पण, ब्राह्मण भोजन सेवा और सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत मूल पाठ का पुण्य अवसर प्रदान कर रहा है। इस पवित्र कालखंड में अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतु आस्था और श्रद्धा से भाग लें और पितृ ऋण से मुक्त होकर मंगल जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करें।

इस बार के श्राद्ध पक्ष में 7 सितबर को चंद्र ग्रहण जबकि 22 सितंबर को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। धर्मशास्त्रों के अनुसार ग्रहण की समाप्ति के बाद किया गया दान कई गुना फलदायी होता है। विद्वानों का कहना है कि ग्रहण के इस दुर्लभ संयोग में श्रद्धा से किया गया तर्पण एवं दान पीढ़ियों का कल्याण करता है।
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