27 October 2023

शरद पूर्णिमा के दिन ये काम करने से मिलेगी पापों से मुक्ति

सनातन परंपरा का पवित्र त्यौहार शरद पूर्णिमा इस बार 28 अक्टूबर को मनाया जाएगा। धर्मावलंबियों के बीच इस पर्व का खासा महत्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करने जाते हैं। साथ ही पूजा एवं दान पुण्य भी करते हैं। कहा जाता है कि इससे लोगों को चंद्र देव और माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा पूर्णिमा तिथि पर भगवान सत्यनारायण की भी पूजा की जाती है। 

 

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, इस बार की शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर को प्रातः काल 4:17 बजे से शुरू होकर अगले दिन 29 अक्टूबर को रात 1:53 बजे पर समाप्त होगी। 

 

चन्द्रायण व्रत से मिलेगी सभी पापों से मुक्ति 

शरद पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले व्रत को चंद्रायण व्रत कहा जाता है। जो भी लोग इस दिन व्रत करते हैं उन्हें समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है और वह व्यक्ति पुण्य का भागी होता है। 

 

व्रत करते समय इन बातों का रखें ध्यान 

व्रत का संकल्प लेने वाले व्यक्ति को शरद पूर्णिमा के दिन मन में केवल सकारात्मक और सात्विक विचार ही रखने चाहिए। जमीन पर सोना चाहिए और संध्या के समय भगवान का स्मरण करते हुए भजन करना चाहिए।

 

व्रत विधि 

जो व्यक्ति भी शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रायण व्रत करना चाहते हैं उन्हे सुबह उठते ही स्नान करना चाहिए। इसके बाद जगत के पालनहार भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी का स्मरण करें। घर की साफ सफाई करें और पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने जाएं। 

स्नान से लौटकर घर आयें और दीपक जलाएं। भगवान और तुलसी की पूजा करें। इसके बाद नए कपड़े धारण करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दें। भगवान विष्णु की पूजा करते समय पीले रंग के फल, फूल, वस्त्र अर्पित करें। 

 

दान करें 

इस दिन स्नान के साथ दान करने का भी खासा महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि अगर इस दिन गरीब ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान दिया जाए तो उसका पुण्य प्राप्त होता है। चंद्र देव, लक्ष्मी जी और भगवान विष्णु की कृपा भक्तों पर हमेशा बनी रहती है।  

 

शरद पूर्णिमा व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी तो व्रत पूरा कर लेती थी, लेकिन छोटी बेटी व्रत पूरा नहीं करती थी। वह बीच में ही व्रत तोड़ देती थी। इसका प्रभाव यह हुआ कि छोटी बेटी को संतान प्राप्त होते ही उसकी मौत हो जाती थी। तब उसने पंडितों से इसका कारण जानना चाहा। एक पंडित ने उससे बताया कि तुम बीच में ही अपना व्रत तोड़ देती हो, इसलिए ऐसा हो रहा है। यदि तुम पूरे विधि-विधान से पूर्णिमा का व्रत करोगी तो तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।

उसने पंडितों की सलाह मानते हुए पूर्णिमा का व्रत किया। जिससे उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन एक बार फिर से जन्म लेते ही पुत्र की मृत्यु हो गई। इस पर उसने मरे हुए बच्चे को लकड़ी के पाटे पर लिटा दिया। इसके बाद पाटे को कपड़े से ढंक दिया। जब उसकी बड़ी बहन आई तो उसने वही पाटा उसे बैठने के लिए दिया। जैसे ही बड़ी बहन का लहंगा पाटे से छुआ तो बच्चा जीवित हो उठा और रोने लगा। इस पर बड़ी बहन ने कहा कि यदि मैं इस पाटे पर बैठ जाती तो बच्चा मर जाता। तुम मेरे ऊपर इस बच्चे की मौत का कलंक लगाना चाहती थीं? इस पर छोटी बहन ने कहा कि नहीं! यह बच्चा तो पहले से ही मर चुका था। भगवान की कृपा और तुम्हारे भाग्य के कारण यह फिर से जीवित हो उठा है। 

इसके बाद उन्होंने गांव में सभी से शरद पूर्णिमा के व्रत के महत्व के बारे में बताया और इस व्रत को रखने के लिए आग्रह किया।